किशनगढ़ शैली विश्व भर में चर्चित राजस्थान की एक खास चित्र शैली है। किशनगढ़ शैली का स्वर्णकाल राजा सावंत सिंह के समय को माना जाता है, राजा सावंत सिंह ही नागरीदास के नाम से विख्यात थे। किशनगढ़ शैली के चित्रों में मुख्यतया कृष्ण और राधा के प्रेम का चित्रण होता था। इन चित्रों में पुरुषों और महिलाओं की विशेषताएं नुकीली नाक और ठुड्डी, गहरी घुमावदार आंखें होती थी। इस शैली को प्रकाश में लाने का श्रेय एरिक डिक्सन व डॉ. फैयाज अली को जाता है। चित्रकार निहालचन्द ने सावंतसिंह व उनकी प्रेयसी बणी-ठणी को राधा व कृष्ण के रूप में चित्रित किया।
किशनगढ़ शैली – Kishangarh Chitra shaili
किशनगढ़ के संस्थापक किशनसिंह(1609 ई.) वल्लभ सम्प्रदाय में दीक्षित थे इसलिए किशनगढ़ शैली में राधा-कृष्ण की लीलाओं का साकार स्वरूप चित्र बहुलता से मिलते है। किशनगढ़ शैली अपनी धार्मिकता के कारण विश्वप्रसिद्ध हुई।
अपने शासनकाल में राजसिंह ने चित्रकार निहालचन्द को चित्रशाला प्रबंधक बनाया। राजा सांवत सिंह के समय में किशनगढ़ की चित्रकला में एक नवीन मोड़ आया। राजा सांवतसिंह का काल (1748-1764 ई.) किशनगढ़ शैली की दृष्टि से स्वर्णयुग कहा जा सकता है।
सांवतसिंह स्वयं एक अच्छा चित्रकार था एवं धार्मिक प्रकृति का व्यक्ति था। ‘नागरीदास’ उपनाम से इन्होने काफी कविताएं लिखी। अपने शासनकाल में एक दासी सुन्दरी का नाम बणी-ठणी था। राजा सामंत सिंह बणी-ठणी को बहुत प्रेम करते थे। नागरीदास जी के काव्य प्रेम, गायन, बणी-ठणी के संगीत प्रेम और कलाकार मोरध्वज निहालचंद के चित्रांकन में इस समय किशनगढ़ की चित्रकला को सर्वोच्च स्थान पर पहुँचा दिया।
नागरीदास की प्रेमिका बणी-ठणी को राधा के रूप में अंकित किया जाता है। किशनगढ़ शैली 19वीं शती में पृथ्वीसिंह के समय के चित्रों में कमजोर होती गई । इसके उपरान्त अपना अमर इतिहास पीछे छोड़कर किशनगढ़ शैली धीरे-धीरे पतनोन्मुख हो गयी।
किशनगढ़ शैली की विशेषताएँ
पुरुष आकृति –
विकसित ललाट, पतले अधर, आजानुभुजाएं गोल और सुकुमार लम्बी अंगुलियाँ, छरहरे पुरुष, लम्बी गर्दन, मादक भाव से युक्त नृत्य, नुकीली चिबुक,लम्बा नील छवियुक्त शरीर
वेशभूषा – कमर में दुपट्टा, पेंच बंधी पगड़ी, पैरों तक झूलता पारदर्शी जामा
स्त्री आकृति
लम्बी नाक, पंखुड़ियों के समान अधर, लम्बे बाल, लम्बी सुराहीदार ग्रीवा, पतली भृकुटी के चित्र,लहँगा, कंचुकी और ओढ़नी नयन, कपोलों को आच्छादित करती हुई लम्बी अलकें।
किशनगढ़ शैली में काव्य में कल्पित रूप तथा माँसल सौन्दर्य का चित्रांकन है।
- किशनगढ़ शैली में गुलाबी व सफेद रंग की प्रधानता है।
- इस शैली में मुख्यतः केले के वृक्ष को चित्रित किया गया है।
- इस शैली को कागजी शैली भी कहते है।
प्रमुख पक्षी – भ्रमर और मोर
प्रमुख वृक्ष – केला
प्राकृतिक परिवेश :
प्राकृतिक परिवेश जिस प्रकार झीलों, पहाड़ों, उपवनों और विभिन्न पशु-पक्षियों से युक्त ही उद्दीपन रूप में प्रकृति का चित्रण भी इस शैली में प्रमुखता से हुआ है। दूर-दूर तक फैली हुई झील, झील में केलि करते हंस, बतख, जलमुर्गाबी, सारस, बगुला और तैरती हुई नौकाएँ तथा नौकाओं में प्रेमालाप करते राधा और कृष्ण का अंकन देखते ही प्राकृतिक छटा बिखेरता है।
किशनगढ़ शैली(Kishangarh Chitra shaili) : ‘बणी-ठणी’
बणी ठणी अर्थात् राधा के रूप-सौन्दर्य का चित्रांकन शैली का विशेष आकर्षण रहा है। सामंत सिंह की प्रेमिका बणी ठणी स्वयं ‘रसिक बिहारी’ नाम से कविताएँ लिखती थी। बणी ठणी का मौलिक चित्र की प्रति अल्बर्ट हाल (पेरिस) और किशनगढ़ संग्रहालय में सुरक्षित है। बणी ठणी चित्र पर 5 मई,1973 ई. को 20 पैसे का डाक टिकट जारी किया गया।
फव्वारे, केले के वृक्षों से घिरे दृश्य तथा कमल दलों से ढँके जलाशय आदि सब कुल मिलाकर किशनगढ़ शैली को मोहक बना देते हैं। प्रकृति के विस्तृत प्रांगण को चित्रित करने का श्रेय किशनगढ़ शैली को ही है। चाँदनी रात में राधाकृष्ण की केलि-क्रीडाएं, प्रात:कालीन और सांध्यकालीन बादलों का सिन्दूरी चित्रण शैली में विशेष हुआ है।
राधाकृष्ण के सुकोमल भावों को चित्रित करने के लिए यहां के कलाकारों ने अधिकतर हल्के रंगों का प्रयोग किया है। यहां के प्रमुख रंग सफेद, गुलाबी, सलेटी और सिंदूरी हैं। हाशिए में गुलाबी और हरे रंगों का बाहुल्य किशनगढ़ शैली की अपनी देन है।
बणी ठणी अर्थात् राधा के रूप-सौन्दर्य का चित्रांकन शैली का विशेष आकर्षण रहा है। ‘चांदनी रात की संगोष्ठी’ अमरचंद द्वारा बनाया गया इस शैली का प्रसिद्ध चित्र है। इस शैली के अन्य प्रमुख चित्र हैं- दीपावली, सांझी लीला, नौका विहार , बणीठणी (1760 ई.), गोवधर्न धारण (1755 ई.), इनके चित्रकार निहालचंद थे।
किशनगढ़ शैली के प्रमुख चित्रकार
इस चित्रशैली के प्रमुख चित्रकार निम्न है –
अमीरचन्द | धन्ना |
छोटू | भंवरलाल |
सूरतराम | सूरध्वज |
मोरध्वज निहालचन्द | नानकराम |
सीताराम | बदनसिंह |
अमरू | सूरजमल |
रामनाथ | सवाईराम |
तुलसीदास | लालडी दास |
इस शैली का प्रसिद्ध चित्र बणी-ठणी ही है जिसे एरिक डिकिन्सन ने भारत की ‘मोनालिसा’ कहा है। भारत सरकार ने 1973 ई. में बणी-ठणी पर डाक टिकट जारी किया। इस शैली को प्रकाश में लाने का श्रेय ‘एरिक डिकिन्सन’ तथा ‘डॉ. फैयाज अली’ को है।
FAQ – किशनगढ़ शैली
1. किशनगढ़ शैली के प्रमुख चित्रकार कौन थे?
- किशनगढ़ चित्रकला शैली के प्रमुख चित्रकार मोरध्वज निहालचन्द, अमीरचंद, छोटू, बदनसिंह, सवाईराम, सीताराम, नानकराम, भंवरलाल, लाड़लीदास, सूरध्वज, धन्ना, सूरतराम, सूरजमल, रामनाथ, तुलसीदास आदि थे।
2. बणी ठणी चित्र शैली कहाँ की है?
- बणी-ठणी चित्र किशनगढ़ शैली का है। चित्रकार निहालचन्द ने सावंतसिंह व उनकी प्रेयसी बणी-ठणी को राधा व कृष्ण के रूप में चित्रित किया। इसे एरिक डिकिन्सन ने भारत की ‘मोनालिसा’ कहा है।
3. किशनगढ़ शैली का प्रसिद्ध चित्रकार कौन था?
- किशनगढ़ चित्रकला शैली के प्रमुख चित्रकार मोरध्वज निहालचंद थे। नागरीदास जी के काव्य प्रेम, गायन, बणी-ठणी के संगीत प्रेम और कलाकार मोरध्वज निहालचंद के चित्रांकन में इस समय किशनगढ़ की चित्रकला को सर्वोच्च स्थान पर पहुँचा दिया। इन्होंने ‘राजस्थान की मोनालिसा’ कहे जाने वाली बणी-ठणी पर चित्र बनाया था।
4. किशनगढ़ शैली का स्वर्णकाल किस शासक के समय था?
उत्तर – राजा सामंत सिंह के समय को ‘किशनगढ़ शैली का स्वर्णकाल’ कहा जाता है।
5. राजा सांवत सिंह ने किस उपनाम से कविताएं लिखी?
उत्तर – सांवत सिंह ने ‘नागरीदास’ उपनाम से कविताएं लिखी।