राजस्थान की प्रमुख छतरियाँ: आज के इस आर्टिकल में हम राजस्थान की छतरियाँ (Rajasthan ki Chhatriyan) टॉपिक को अच्छे से पढेंगे, इससे जुड़े महत्त्वपूर्ण तथ्यों के बारे में भी जानेंगे।
राजस्थान की छतरियाँ – Rajasthan ki Chhatriyan
दोस्तो पूर्वजों की मृत्यु के बाद उनके स्मृति चिह्न बनाने की परम्परा बहुत पुरानी है। राजस्थान का शासक वर्ग, सामंत, जागीरदार और धनिक वर्ग काफी सम्पन्न था अतः उनकी मृत्यु के बाद उनकी याद में स्थापत्य की दृष्टि से विशिष्ट स्मारक बनाये गये, जिन्हें छतरियाँ और देवल के नाम से जाना जाता है।
राजस्थान की प्रमुख छतरियां
खम्भों की संख्या | स्थान |
1 खम्भे की छतरी | रणथम्भौर, सवाई माधोपुर |
4 खम्भों की छतरी | श्रृगांर चंवरी (चित्तौड़गढ़) || जोधपुर, गोराधाय की, || चित्तौड़गढ़, संत रैदास की, || चित्तौड़गढ़, कल्ला राठौड़ |
6 खम्भों की छतरी | लालसोट (दौसा) बंजारे की, || चित्तौडगढ़ दुर्ग, जयमल की |
8 खम्भों की छतरी | बाड़ोली, महाराणा प्रताप की, || मांडलगढ़, महाराणा सांगा की |
10 खम्भों की छतरी | मेहरानगढ, मांमा भांजा कीछतरी |
12 खम्भों की छतरी | कुम्भलगढ़(राजसमंद) कुंवर पृथ्वीराज सिसोदिया की |
16 खम्भों की छतरी | नागौर, अमर सिंह राठोड़ |
18 खम्भों की छतरी | जोधपुर, राजसिंह चम्पावत |
20 खम्भों की छतरी | जोधपुर, सिंघवियों की छतरी |
32 खम्भों की छतरी | मांडलगढ़, जगन्नाथ कछवाह |
80 खम्भों की छतरी | अलवर, मूसी महारानी रानी की |
84 खम्भों की छतरी | बुंदी, धाभाई देवा की स्मृति में |
उदयपुर संभाग की छतरियाँ
आहङ की छतरियाँ/महासतियाँ – आहङ (उदयपुर)
- यहाँ मेवाङ के महाराणाओं की छतरियाँ बनी हैं।
- यहाँ महाराणा अमरसिंह प्रथम की छतरी सर्वाधिक पुरानी है।
- आहड़ की छतरियों को महासतियां की छतरियां भी कहते है।
गफूर बाबा की मजार/छतरी – उदयपुर
- इसका निर्माण शाहजहाँ ने गफूर बाबा के सम्मान में जगमंदिर के समीप करवाया था।
महाराणा प्रताप की छतरी – बाण्डोली (चावंड, उदयपुर)
- महाराणा प्रताप की 8 खम्भों की छतरी चावंड के निकट बांडोली गाँव में बनी है। इसका निर्माण अमरसिंह प्रथम ने करवाया था।
कल्ला राठौङ की छतरी – चित्तौङगढ़
- लोकदेवता कल्ला जी राठौङ की छतरी भी चित्तौङगढ़ दुर्ग में हनुमानपोल व भैरवपोल के मध्य स्थित है
- यह लाल पत्थरों से 4 खम्भों पर बनी है।
जयमल राठौङ की छतरी – चित्तौङगढ़
- चित्तौङगढ़ दुर्ग में हनुमानपोल व भैरवपोल के मध्य काल पत्थरों से इनकी 6 खम्भों की छतरी बनी है।
संत रैदास की छतरी – चित्तौङगढ़
- चित्तौङगढ़ दुर्ग में रैदास की 4 खम्भों की छतरी बनी है।
शृंगार चंवरी – चित्तौङगढ़
- मूलतः शांतिनाथ जैन मंदिर में 4 खंभों की छतरी बनी है, जिसमें महाराणा कुम्भा की पुत्री के विवाह की चंवरी बनी है।
रावत की 8 छतरियाँ – बेगूं (चित्तौङगढ़)
उङना पृथ्वीराज की छतरी – कुंभलगढ़ दुर्ग (राजसमंद)
- महाराणा रायमल के पुत्र कुंवर पृथ्वीराज की 12 खम्भों की छतरी कुंभलगढ़ दुर्ग में बनी है, इस छतरी के वास्तुकार धणषपना है।
चेतक की छतरी – वलीचा गाँव (राजसमंद)
पत्ता सिसोदिया की छतरी – चित्तौङगढ़ दुर्ग
- चित्तौङगढ़ दुर्ग के मुख्य प्रवेश द्वार रामपोल के अंदर इनकी छतरी बनी है।
कोटा संभाग की छतरियाँ
केसरबाग की छतरियाँ – केसरबाग (बूँदी)
- केसरबाग में बूँदी के शासकों व राजपरिवार की 66 छतरियाँ बनी हैं।
84 खम्भों की छतरी – देवपुरा गाँव (बूँदी)
- इसका निर्माण राव राजा अनिरुद्ध सिंह के काल में राव देवा द्वारा 1683 ई. से 1695 ई. के मध्य करवाया गया था। इसमें मुख्य रूप से पशु पक्षियों के चित्र मिलते हैं।
क्षारबाग की छतरियाँ – कोटा
- यहाँ कोटा के हाङा शासकों की छतरियाँ हैं।
थानेदार नाथुसिंह की छतरी – शाहबाद (बारां)
- 1932 ई. में इस छतरी का निर्माण कोटा महाराव उम्मेदसिंह ने करवाया था।
संत पीपा की छतरी – गागरोन (झालावाङ)
भरतपुर संभाग की छतरियाँ
32 खम्भों की छतरी – रणथम्भौर (सवाई माधोपुर)
- इसका निर्माण हम्मीर देव चौहान ने अपने पिता जैन्नसिंह के 32 वर्षों के शासनकाल की स्मृति में धौलपुर के लाल पत्थरों से 32 खम्भों पर करवाया था।
एक खम्भे की छतरी – सवाई माधोपुर
नटणी की छतरी – सवाईमाधोपुर
बोहरा भगत की छतरी – करौली
- कैलादेवी मंदिर के पास बनी है।
राव गोपालसिंह की छतरी – करौली
खाण्डेराव होल्कर की छतरी – गागर सौली (भरतपुर)
जयपुर संभाग की छतरियाँ
80 खम्भों की छतरी/मूसी महारानी की छतरी – अलवर
- यह अलवर सिटी पैलेस के पास बनी है इसका निर्माण महाराजा विनयसिंह ने 1815 ई. में मूसी महारानी (महाराजा बख्तावर सिंह की रानी) की स्मृति में करवाया था
गैटोर की छतरियाँ – जयपुर
- नाहरगढ़ दुर्ग की तलहटी में बना यह जयपुर के शासकों का निजी शमशान घाट है, जिसमें महाराणा सवाई जयसिंह से लेकर महाराजा सवाई माधोसिंह द्वितीय तक के राजाओं और उनके पुत्रों की स्मृति में बनी छतरियाँ स्थित है।
राजा मानसिंह प्रथम की छतरी – हाङीपुरा गाँव (आमेर)।
- आमेर के राजा मानसिंह प्रथम की छतरी है।
गुसाईंयों की छतरियाँ – मेड गाँव, विराटनगर (जयपुर)
- यहाँ 16 वीं व 18 वीं शताब्दी की बनी तीन छतरियाँ है।
सवाई ईश्वरी सिंह की छतरी – जयनिवास उद्यान (जयपुर)
- सिटी पैलेस परिसर में जयनिवास उद्यान में सवाई माधोसिंह प्रथम ने सवाई ईश्वरी सिंह की स्मृति में यह बनवाई थी।
टहला की छतरियाँ – सरिस्का (अलवर)
- यह छतरी सरिस्का अभयारण्य में स्थित है।
बन्जारों की छतरी – लालसोट (दौसा)
- इसे छ: खम्भों की छतरी भी कहा जाता है।
सेठ रामगोपाल पोद्दार की छतरी – रामगढ़ (सीकर)
- यह शेखावाटी क्षेत्र की सबसे बङी छतरी है।
रामदत्त गोयनका की छतरी – डुन्डलोद (झुंझुनूं)
फतेहगुम्बद छतरी – अलवर
नैङा की छतरी – अलवर
राव शेखा की छतरी – परशरामपुरा (झुंझुनूं)
अजमेर संभाग की छतरियाँ –
जगन्नाथ कछवाहा की छतरी – मांडल (भीलवाङा)
- आमेर के जगन्नाथ कछवाहा की समाधि पर 32 खंभों की विशाल छतरी बनी है। यह छतरी हिन्दू और मुस्लिम स्थापत्य का अनूठा उदाहरण है।
अमरसिंह राठौङ की छतरी – नागौर
- नागौर दुर्ग में अमरसिंह राठौङ की 16 खम्भों की छतरी बनी है।
जोधसिंह की छतरी – बदनोर (भीलवाङा)
- यह 32 खम्भों पर निर्मित है।
आंतेङ की छतरियाँ – अजमेर
- दिगम्बर जैन सम्प्रदाय की छतरियाँ अजमेर में स्थित है।
राणा सांगा की छतरी – मांडलगढ़ (भीलवाङा)
- मेवाङ के महराणा सांगा की 8 खंभों की छतरी है। इसके निर्माता अशोक परमार हैं।
गंगाबाई की छतरी – गंगापुर (भीलवाङा)
- महादजी सिंधिया की पत्नी गंगाबाई की स्मृति में यह छतरी बनी है। इसका निर्माण महादजी सिंधिया ने करवाया था।
लाछां गुजरी की छतरी – नागौर
रसिया की छतरी – टोंक
बदनौर की छतरियाँ – भीलवाङा
अमरगढ़ की छतरियाँ – बागोर (भीलवाङा)
जोधपुर संभाग की छतरियाँ
बङा बाग की छतरियाँ – जैसलमेर
- यहाँ जैसलमेर के भाटी शासकों की छतरियाँ हैं। महारावल जैतसिंह ने यहाँ 1528 ई. में जैतसर सरोवर तथा बङा बाग का निर्माण करवाया।
गोरा-धाय की छतरियाँ –
- जोधपुर में इन छतरियो का निर्माण अजीतसिंह ने धायमाता गोराधाय की स्मृति में करवाया था।
जोधपुर के राजाओं के देवल – मंडोर (जोधपुर)
- मंडोर बाग में स्थित राजाओं के स्मारक देवल के नाम से प्रसिद्ध है, यहाँ पर जसवंत सिंह द्वितीय से पूर्व के शासकों की छतरियाँ बनी हैं। इन्हें मंडोर की छतरियाँ कहते हैं।
- मंडोर में ही पंचकुण्ड पर राव चूण्डा, राव रणमल, राव जोधा व राव गांगा की छतरियाँ है।
पंचकुंड की छतरियाँ – मंडोर (जोधपुर)
- मंडोर के पास पंचकुड नामक स्थान पर जोधपुर की रानियों की 49 छतरियाँ बनी है
- यहाँ रानी सूर्य कंवरी की 32 खंभों की छतरी सबसे बङी है।
कागा की छतरियाँ –
- जोधपुर के पास में जोधपुर नरेश विजयसिंह द्वारा निर्मित शीतला देवी का मंदिर के पास यह छतरियां स्थित है।
पालीवालों की छतरी – जैसलमेर
20 खम्भों की छतरी/सिंधवियों की छतरी – जोधपुर
बख्तावर सिंह की छतरी – मंडोर (जोधपुर)
- अलवर के महाराजा बख्तावर सिंह की याद में मंडोर में यह छतरी बनी है।
कीरतसिंह सोढ़ा की छतरी – जोधपुर
- जोधपुर दुर्ग के भीतर जयपोल के पास कीरतसिंह सोढ़ा की छतरी का निर्माण राजा मानसिंह ने करवाया था। इसे ’करोङों के कीर्ति धणी की छतरी’ के नाम से भी जाना जाता है।
मामा-भांजा की छतरी – जोधपुर
- ये धन्ना गहलोत और भीयां चौहान नामक वीरों की छतरी है, जो आपस में मामा-भान्जा थे। इनकी स्मृति में महाराजा अजीतसिंह ने इस 10 खम्भों की छतरी का निर्माण मेहरानगढ़ दुर्ग में करवाया था।
आसकरण राठौङ की छतरी – सालवा (जोधपुर)
- वीर दुर्गादास राठौङ के पिता आसकरण की छतरी है।
राव चन्द्रसेन की छतरी – सारण की पहाङियाँ (पाली)
जैसलमेर की रानी की छतरी – जोधपुर
महाराव मानसिंह की छतरी – अचलगढ़ (सिरोही)
महामंदिर छतरी – जोधपुर
बीकानेर संभाग की छतरियाँ
देवीकुंड सागर छतरियाँ – बीकानेर
- बीकानेर में देवीकुंड सागर के पास बीकानेर के शासकों का निजी शमशान घाट है यहाँ राव जैतसिंह के समय से राजाओं, रानियों, पासवानों और उनकी संतानों की छतरियाँ बनी है।
राव जैतसी की छतरी – हनुमानगढ़
राव कल्याणमल की छतरी – बीकानेर
महाराजा गंगासिंह व सार्दुलसिंह की छतरियाँ – बीकानेर
तेस्सितोरी की छतरी – बीकानेर
निष्कर्ष :
आज के इस आर्टिकल में हमनें राजस्थान की छतरियाँ (Rajasthan ki Chhatriyan) टॉपिक को अच्छे से पढ़ा, इससे जुड़े महत्त्वपूर्ण तथ्यों के बारे में भी जानकारी दी।