राजस्थान के लोक नृत्य – Rajasthan ke Lok nritya – पूरा निचोड़ एक साथ

आज के आर्टिकल में हम राजस्थान की कला संस्कृति के अंतर्गत राजस्थान के लोकनृत्य(Rajasthan ke Lok nritya) के बारे में जानकारी देने वाले है। इससे जुड़े महत्त्वपूर्ण तथ्य, जो परीक्षा के लिए जरुरी होंगे वो आपको बताएँगे।

Table of Contents

राजस्थान के लोक नृत्य

लोगों द्वारा जिस नृत्य को मान्यता प्रदान की जाती है, उसे लोकनृत्य कहते है। राजस्थान में मांगलिक व शुभ अवसरों पर नृतकों द्वारा नृत्य का प्रदर्शन किया जाता है।

राजस्थान का लोक नृत्य ’घूमर’ है।

लोकनृत्य को चार भागों में बांटा जाता है –

1. धार्मिक नृत्य

2. व्यवसायिक नृत्य

3. क्षेत्रीय नृत्य

4. जनजातीय नृत्य

राजस्थान के प्रमुख लोक नृत्य

राजस्थान के लोक नृत्य

लोकनृत्य स्थान
गैर नृत्य मेवाड़, बाड़मेर, बालोतरा
ढोल नृत्य जालौर
घूमर नृत्य राजस्थान
गरबा नृत्य डूंगरपुर, बांसवाड़ा
बम नृत्य भरतपुर, अलवर, डीग, कोटपूतली
गींदड़ नृत्य शेखावाटी क्षेत्र
अग्नि नृत्य बीकानेर
लांगुरिया नृत्य करौली
बिंदौरी नृत्य झालावाड़
चंग नृत्य शेखावाटी क्षेत्र
घुड़ला नृत्य मारवाड़ (जोधपुर)
डांडिया नृत्य मारवाड़
सूकर नृत्य मेवाड़
डांग नृत्य नाथद्वारा (राजसमंद)

राजस्थान के धार्मिक नृत्य

धार्मिक मान्यता पर आधारित लोकदेवता, देवी एवं संतों को समर्पित नृत्य को ‘धार्मिक नृत्य’ कहते है।

  • कानुड़ा नृत्य
  • तेरहताली नृत्य
  • अग्नि नृत्य
  • थाली नृत्य
  • लांगुरिया नृत्य
  • डांग नृत्य
  • सांकल नृत्य

कानुड़ा नृत्य –

  • कानुड़ा नृत्य चौहटन (बाड़मेर) का प्रसिद्ध है।
  • यह जन्माष्टमी (भाद्रपद कृष्ण अष्टमी) पर आयोजित किया जाता है।
  • भगवान श्री कृष्ण की प्रशंसा में ’रसिया’ गीत गाया जाता है।

अग्नि नृत्य –

  • अग्नि नृत्य को ’जाटों का नृत्य’’अंगारोें का नृत्य’ कहा जाता है।
  • अग्नि नृत्य का उद्गम कतरियासर (बीकानेर) में हुआ।
  • संत जसनाथ जी की आराधना में अग्नि नृत्य आयोजित किया जाता है।
  • इसके प्रवर्तक रूस्तम जी है।
  • जसनाथी सम्प्रदाय के अनुयायी जाट सिद्धों द्वारा रात्रि जागरण में नगाड़ा वाद्ययंत्र पर अग्नि नृत्य किया जाता है।
  • इस नृत्य में केवल पुरूष भाग लेते है।
  • अंगारों के ढेर को ’धूणा’ कहा जाता है।
  • इसके प्रसिद्ध नृत्यकार लालनाथ जी व चौखानाथ जी है।
  • नृतक गुरु के सामने नाचते हुये सिद्ध रूस्तमजी व फतै-फतै का उच्चारण करते है।
  • इसमें नृतक अंगारों से मतीरा फोड़ना, हल जोतना आदि क्रियाएँ करते है।
  • बीकानेर के महाराजा गंगासिंह जी ने इस नृत्य को संरक्षण दिया।

तेरहताली नृत्य –

  • तेरहताली नृत्य का उद्गम पादरला गाँव (पाली) में हुआ।
  • यह कामड़ जाति के द्वारा रामदेव जी की आराधना में आयोजित किया जाता है।
  • यह नृत्य केवल महिलाओं द्वारा बैठकर किया जाता है।
  • पुरूष तानपुरा व चौ तारा बजाते है, महिला 13 मंजीरों को अपने शरीर पर बांधती है, जिसमें 9 मंजीरे दांये पाँव पर, 2 मंजीरे हाथों की कोहनी पर तथा एक एक मंजीरे दोनों हाथों में रहते है।
  • इसके प्रमुख कलाकार मांगीबाई, मोहनी, नारायणी व लक्ष्मणदास है।
  • यह नृत्य कामड़िया पंथ की महिलाओं द्वारा आयोजित किया जाता है।
  • इस नृत्य में महिलाओं द्वारा घरेलू कार्यों का प्रदर्शन किया जाता है।
  • इस नृत्य को मांगीबाई ने प्रसिद्धि दिलायी थी। 1954 में गाड़ीया लुहार सम्मेलन, चित्तौड़गढ़़ में नेहरू जी के समक्ष मांगीबाई ने यह नृत्य किया था और अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त की।
  • इस नृत्य को बीकानेर के शासक गंगासिंह ने प्रोत्साहन दिया।

सांकल नृत्य –

  • सांकल नृत्य गोगामेड़ी (ददरेवा, चुरू) का प्रसिद्ध है।
  • इस नृत्य में गोगाजी के भक्त भावावेश में अपनी पीठ पर सांकल से मारते है और जख्मी हो जाते है।
  • यह नृत्य डैरू वाद्ययंत्र के साथ किया जाता है।
  • इसके नृतक कई बार गले में सांप भी रखते है, इसे ’गोगा नृत्य’ कहते है।

थाली नृत्य –

  • थाली नृत्य कोलूमंड (फलौदी) का प्रसिद्ध है।
  • पाबूजी के भक्तों द्वारा रावण हत्था वाद्ययंत्र के साथ किया जाता है।
  • यह विवाह और पुत्र के जन्मोत्सव पर आयोजित होने वाला नृत्य है।
  • इस नृत्य में नृत्यकार थाली को अपनी अंगुली पर घुमाते है।

डांग नृत्य –

  • डांग नृत्य नाथद्वारा (राजसमंद) का प्रसिद्ध है।
  • यह धार्मिक नृत्य है।
  • नाथद्वारा में वल्लभ सम्प्रदाय के अनुयायियों द्वारा होली के अवसर पर किया जाने वाला नृत्य है।
  • इसमें नृतक देवर भाभी के रूप में एक दूसरे पर रंग डालते हुए नृत्य करते है।

लांगुरिया नृत्य –

  • लांगुरिया नृत्य करौली जिले का प्रसिद्ध है।
  • करौली में कैलादेवी के भक्तों द्वारा यह नृत्य किया जाता है। विशेषकर मीणा जाति के द्वारा किया जाता है।

राजस्थान के व्यावसायिक नृत्य

नृतकों द्वारा व्यवसाय करने की दृष्टि से नृत्य का प्रदर्शन किया जाता है, उसे ’व्यावसायिक नृत्य’ कहते है।

जैसे –

  • भवाई नृत्य
  • कच्छीघोड़ी नृत्य
  • चरी नृत्य

राजस्थान के क्षेत्रीय नृत्य

क्षेत्र विशेष में नृतकों द्वारा आयोजित किये जाने वाले नृत्य ’क्षेत्रीय नृत्य’ कहलाते है।

मारवाड़ क्षेत्र के नृत्य

  • घुड़ला नृत्य
  • झांझी नृत्य
  • डांडिया नृत्य

घुड़ला नृत्य –

  • घुड़ला नृत्य जोधपुर का प्रसिद्ध लोकनृत्य है।
  • यह नृत्य जोधपुर के शासक सातलदेव के काल में प्रारंभ हुआ।
  • सुंदर शृंगार करके युवतियों व महिलाओं द्वारा अपने सिर पर छिद्र युक्त मटके में जलता दीपक रखकर नृत्य किया जाता है। यह नृत्य रात में किया जाता है।
  • यह केवल महिलाओं द्वारा चैत्र कृष्ण अष्टमी को किया जाता है।
  • रूपायन संस्थान, बोरूंदा के कोमल कोठारी ने इस नृत्य को सर्वाधिक संरक्षण प्रदान किया है।

डांडिया नृत्य –

  • यह मारवाड़ का प्रसिद्ध नृत्य है।
  • यह होली के बाद प्रारम्भ होता है और इसमें पुरूषों की टोली दोनों हाथों में लम्बे डांडिया लेकर वृताकार नृत्य करते है।
  • चौक के बीच में शहनाई और नगाड़े वाले और गवैये बैठते है।
  • इसमें पुरूष होली के गीत व लोक-ख्याल गाते है।
  • डांडिया नृत्य के गीतों में अक्सर बड़ली के भेरूजी का गुणगान होता है।
  • इसमें कुछ कलाकार राजा, रानी, शिवजी, राम, सीता व साधु की विभिन्न वेशभूषाएँ पहनते है।

झांझी नृत्य –

  • झांझी नृत्य मारवाड़ क्षेत्र का प्रसिद्ध है।
  • यह नृत्य महिलाओं के द्वारा किया जाता है।

मेवाड़ क्षेत्र के नृत्य

  • गैर नृत्य
  • भवाई नृत्य
  • रण नृत्य
  • हरणी नृत्य

गैर नृत्य –

  • यह मेवाड़ और बाड़मेर का प्रसिद्ध लोकनृत्य है।
  • यह नृत्य भील पुरूषों द्वारा किया जाता है।
  • यह नृत्य होली के दूसरे दिन से शुरू होकर 15 दिनों तक चलता है। इसमें ढोल, मांदल, बांकिया और थाली वाद्ययंत्रों का प्रयोग किया जाता है।
  • इस नृत्य में धमाल, फाग व रंगीला गीत गाये जाते है।
  • पुरूषों द्वारा लकड़ी की छड़ियाँ लेकर गोल घेरे में नृत्य किया जाता है। महिलाएँ पास में खड़ी होकर ’फाग’ गाती है।
  • गोल घेरे में नृत्य के कारण इसे ’गेर’ तथा गैर करने वाले ’गैरिये’ कहलाते है।

भवाई नृत्य –

  • यह एक व्यावसायिक नृत्य है।
  • भवाई नृत्य मूल रूप से गुजरात का नृत्य है।
  • राजस्थान में उदयपुर में इसका अधिक प्रचलन है।
  • यह नृत्य चमत्कारिता व करतब के लिए प्रसिद्ध है।
  • इसके प्रमुख कलाकार रूपसिंह शेखावत, अस्मिता काला, पुष्पा व्यास है।
  • इस नृत्य में तेज लय के साथ विविध रंगों की पगड़ियों से हवा में कमल का फूल बनाना, 7-8 मटके सर पर रखकर नृत्य करना, जमीन पर रखा रूमाल मुँह से उठाना, गिलासों व थाली के किनारों, तलवारों व काँच के टुकड़ों पर नृत्य की क्रियाएँ की जाती है।
  • यह नृत्य अपनी अदायगी, शारीरिक क्रियाओं के अद्भुत चमत्कार तथा लयकारी के लिए प्रसिद्ध है।
  • इस नृत्य के प्रवर्तक नागौजी जाट व बाघौजी जाट है।
  • उदयपुर की भवाई जाति के स्त्री-पुरूष इसे मिलकर करते है।
  • जोधपुर के कृष्णा व्यास छगानी को भारत का प्रथम भवाई नृतक माना जाता है और भवाई नृत्यांगना अस्मिताकाला है।

रण नृत्य –

  • रण नृत्य मेवाड़ क्षेत्र का प्रसिद्ध है।
  • यह वीर रस प्रधान नृत्य है।
  • मेवाड़ क्षेत्र के सरगड़ा जाति के पुरूषों द्वारा यह नृत्य किया जाता है।
  • इसमें दो पुरूष हाथों में तलवार लेकर युद्ध कौशल का प्रदर्शन करते हुये नृत्य करते है।

हरणी/लोवड़ी नृत्य –

  • हरणी नृत्य मेवाड़ क्षेत्र का प्रसिद्ध है।
  • दीपावली पर बालकों की टोली घर-घर घूमते समय हरणी या लोवड़ी गीत गाती है।

शेखावाटी क्षेत्र के नृत्य

  • कच्छीघोड़ी नृत्य
  • गींदड़ नृत्य
  • ल्हूर नृत्य
  • चंग नृत्य
  • जिन्दाद नृत्य

कच्छी घोड़ी नृत्य –

  • यह एक व्यावसायिक नृत्य है।
  • कच्छी घोड़ी नृत्य शेखावाटी का प्रसिद्ध नृत्य है। यह नृत्य शेखावाटी के अलावा कुचामन, परबतसर व डीडवाना आदि क्षेत्रों में भी किया जाता है।
  • यह नृत्य वीर रस प्रधान है।
  • यह पुरूष प्रधान नृत्य है।
  • यह नृत्य विवाह के अवसर पर केवल पुरूषों के द्वारा किया जाता है। महिलाएँ वैवाहिक गीत गाती है।
  • इस नृत्य में ढोल, थाली, झांझ व बाकियाँ वाद्ययंत्रों का प्रयोग किया जाता है।
  • इसके कलाकार वीरोचित वेशभूषा धारण करके हाथ में लकड़ी की तलवार लेकर बाँस की खपच्चियों या काठ की बनी घोड़ी पर सवार होकर चार-चार व्यक्ति लयबद्ध तरीके से इस प्रकार आगे-पीछे बढ़ते है, जिससे फूल की पंखुड़ियों के खुलने व बंद होने का आभास होता है।
  • इसके प्रसिद्ध कलाकार छवरलाल गहलोत व गोविन्द पारीक है।
  • इसमें लसकरिया, रसाला, बींद और रंगमारिया गीत गाये जाते है।
  • इसमें नृत्यकार अपनी कमर पर बांस की घोड़ी बांधते है, जिसे ’चितलाई’ कहा जाता है।

गींदड़ नृत्य –

  • गींदड़ नृत्य शेखावाटी क्षेत्र का प्रसिद्ध है।
  • यह पुरूष प्रधान लोकनृत्य है।
  • होली के अवसर पर यह नृत्य पुरूषों द्वारा किया जाता है और एक सप्ताह चलता है।
  • नगाड़े वाद्ययंत्र के साथ पुरूष अपने दोनों हाथों में डण्डे लेकर उन्हें परस्पर टकराकर नृत्य करते है।
  • इस नृत्य में कुछ पुरूष कलाकार महिलाओं के वस्त्र पहनकर नृत्य में भाग लेते है, इन्हें ’गणगौर व मेहरी’ कहते है।

चरी नृत्य –

  • यह एक व्यावसायिक नृत्य है।
  • चरी नृत्य किशनगढ़ (अजमेर) का प्रसिद्ध है।
  • गुर्जर जाति की महिलाएँ मांगलिक अवसरों पर यह नृत्य करती है।
  • इसमें रावालिया गीत गाया जाता है।
  • चरी नृत्य की प्रसिद्ध नृत्यांगना फलकू बाई है और वर्तमान में नृत्यांगना सुनिता रावत है।

चंग नृत्य –

  • चंग नृत्य शेखावाटी क्षेत्र का प्रसिद्ध है।
  • यह नृत्य होली के अवसर पर पुरूषों द्वारा चंग बजाते हुये वृत्ताकार नृत्य किया जाता है, फिर घेरे के मध्य में एकत्रित होकर होली (धमाल) के गीत गाये जाते है।
  • इस नृत्य की वेशभूषा में धोती व चूड़ीदार पायजामा और कमीज पहना जाता है।
  • कमर में कमरबंध और पैरों में घुँघरू बाँधे जाते है।

ल्हूर नृत्य –

  • इस नृत्य में एक अभिनेता और एक अभिनेत्री का रूप धारण कर अभिनय करते है।

जिन्दाद नृत्य –

  • यह नृत्य स्त्री-पुरूषों द्वारा ढोलक वाद्ययंत्र के साथ किया जाता है।

जालौर क्षेत्र के नृत्य

  • ढोल नृत्य
  • लूंबर नृत्य

ढोल नृत्य –

  • ढोल नृत्य सांचौर जिले का प्रसिद्ध है।
  • यह नृत्य माली, ढोली, सरगड़ा व भील जाति के पुरूषों द्वारा विवाह के अवसर पर किया जाता है।
  • यह पुरूष रस प्रधान नृत्य है।
  • कलाकारों का मुखिया ’थांकना शैली’ में ढोल बजाता है।
  • थांकना समाप्त होते ही कुछ पुरूष अपने मुँह में तलवार लेकर, कुछ हाथों में डंडे लेकर, कुछ भुजाओं में रूमाल लटकाकर लयबद्ध नृत्य करने लगते है।
  • इस नृत्य को प्रकाश में लाने का श्रेय जयनारायण व्यास को जाता है।

लूंबर नृत्य –

  • लूंबर नृत्य जालौर जिले का प्रसिद्ध है।
  • यह महिला प्रधान नृत्य है।
  • यह नृत्य होली के अवसर पर पाँव की प्रत्येक गति के साथ ताली बजाकर किया जाता है।

भरतपुर जिले के नृत्य

  • बम नृत्य
  • चरकूला नृत्य
  • हुरंगा नृत्य

चरकुला नृत्य –

  • चरकुला नृत्य भरतपुर का प्रसिद्ध है।
  • यह महिला प्रधान नृत्य है।
  • यह सिर पर बैलगाड़ी के पहियों पर दीपक जलाकर किया जाने वाला नृत्य है।

बम नृत्य –

  • बम नृत्य मेवात क्षेत्र अर्थात् भरतपुर, डीग व अलवर क्षेत्र का प्रसिद्ध है।
  • फाल्गुन माह में नयी फसल के आगमन की खुशी में नगाड़ा वाद्ययंत्र के साथ रसिया गीत गाते हुये पुरूष कलाकारों द्वारा गाँव की चौपाल पर किया जाता है।
  • इस नृत्य में बम वाद्ययंत्र व रसिया गीत का प्रयोग किया जाता है, इसलिए इसे ’बमरसिया’ कहते है।
  • इसमें एक बड़े नगाड़े (लगभग 3 फीट ऊँचा तथा 3-4 फीट व्यास वाला नगाड़ा) को खड़े होकर दोनों हाथों से दो मोटे डण्डे लेकर बजाया जाता है।
  • नगाड़े के साथ ही थाली, ढोलक, चिमटा आदि वाद्ययंत्र बजाये जाते है।

हुरंगा नृत्य –

  • यह भरतपुर जिले के ग्रामीण क्षेत्र का स्वांग नृत्य नाटक है।
  • होली के बाद चैत्र कृष्णा पंचमी से अष्टमी तक ’हुरंगा’ आयोजित किया जाता है।
  • इस नृत्य में पुरूष व स्त्रियाँ बम, ढोल व मांट वाद्ययंत्रों पर स्वांग धारण कर सामूहिक नृत्य करते है।

राजस्थान के जनजातीय नृत्य

आदिवासी जनजातियों द्वारा आयोजित किये जाने वाले ’जनजातीय नृत्य’ कहलाते है।

भील जनजाति के लोकनृत्य

  • गवरी/राई नृत्य
  • गैर नृत्य
  • युद्ध नृत्य
  • रमणी नृत्य
  • द्विचक्री नृत्य
  • घूमरा नृत्य
  • नेजा नृत्य
  • हाथीमना नृत्य
  • भगोरिया नृत्य
  • शिकार नृत्य
  • सूकर नृत्य

घूमर नृत्य –

  • घूमर नृत्य को ’नृत्यों का हृदय’ और ’नृत्यों का सिरमौर’ कहा जाता है।
  • यह राजस्थान का राज्य नृत्य है।
  • यह महिलाओं का सर्वाधिक प्रिय नृत्य है।
  • गणगौर के अवसर पर घूमर नृत्य किया जाता है।
  • यह नृत्य मांगलिक अवसरों पर किया जाता है।
  • यह पुरूष रस प्रधान नृत्य है।
  • यह केवल महिलाओं द्वारा अष्टताल पद्धति में आयोजित किया जाता है।
  • बालिकाओं द्वारा इस नृत्य को आयोजित करने पर इसे ’झुमारिया’ कहा जाता है।
  • ढोल व थाली के साथ अर्द्धवृत्त बनाकर महिलाओं द्वारा दो दल बनाकर किया जाता है। हाथ में कपड़ा या रूमाल लेकर किया जाता है।
  • इसमें दोनों दल बारी बारी से नृत्य करते है, एक दल गाता है, तब दूसरा दल नृत्य करता है।

गैर नृत्य –

  • यह मेवाड़ क्षेत्र के भीलों का प्रमुख नृत्य है। यह नृत्य मेवाड़ और बालोतरा में किया जाता है।
  • फाल्गुन में होली के अवसर पर भील पुरूषों द्वारा लकड़ी लेकर गोल घेरे में ढोल, बांकिया, थाली व मांदल वाद्ययंत्र के साथ किया जाने वाला नृत्य है।
  • कनाणा गाँव (बालोतरा) की गैर प्रसिद्ध है।
  • घूमर गैर भीलवाड़ा जिले का प्रसिद्ध है।
  • तलवारों की गैर मेनार (उदयपुर) की प्रसिद्ध है।
  • आंगी बांगी गैर लाखेटा (बालोतरा) की प्रसिद्ध है।

नेजा नृत्य –

  • नेजा नृत्य भीलों का खेल नृत्य है तथा यह मेवाड़ क्षेत्र का प्रसिद्ध है।
  • होली के अवसर पर भीलों द्वारा युगल रूप में किया जाता है।
  • इस नृत्य में एक मैदान के बीच में एक खम्भा जमीन में रोपकर उसके सिरे पर नारियल बाँध दिया जाता है स्त्रियाँ हाथ में कोड़े लेकर खड़ी हो जाती है और उनके नजदीक खड़े पुरूष उस खम्भे पर चढ़कर नारियल उतारने की कोशिश करते है, फिर स्त्रियाँ उनको कोड़े मारकर भगाती है।

द्विचक्री नृत्य –

  • यह नृत्य विवाह के अवसर पर भील महिला पुरूषों द्वारा सम्मिलित रूप से वृत्त बनाकर किया जाता है।

हाथीमना नृत्य –

  • यह भील पुरूषों का नृत्य है।
  • यह नृत्य विवाह के अवसर पर पुरूषों द्वारा घुटनों के बल बैठकर किया जाता है।

भगोरिया नृत्य –

  • इस नृत्य में भील अपना जीवन साथी चुनते है।

युद्ध नृत्य –

  • यह नृत्य मेवाड़ में भीलों द्वारा किया जाता है।
  • यह केवल पुरूषों द्वारा किया जाता है।
  • यह भीलों द्वारा सुदूर पहाड़ी क्षेत्रों में हथियार के साथ किया जाने वाला तालबद्ध नृत्य है।
  • इसमें ऊँची आवाज में फाइरे-फाइरे रणघोष के साथ मांदल वाद्ययंत्र बजाते है।
  • इस नृत्य पर राज्य सरकार ने प्रतिबंध लगा दिया, क्योंकि इस नृत्य के दौरान बहुत से नृतक घायल हो जाते है।

शिकार नृत्य –

  • इस नृत्य के दौरान पुरूषों द्वारा शिकार की कला का प्रदर्शन किया जाता है।

कालबेलिया जाति के नृत्य

  • कालबेलिया नृत्य कालबेलिया जाति की महिलाओं द्वारा किया जाता है।
  • कालबेलिया नृत्य को 2010 में यूनेस्को द्वारा अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की सूची में शामिल किया गया है।
  • कालबेलिया जाति की प्रमुख नृत्यांगना गुलाबो है। जिन्होंने विदेशों में भी इस नृत्य की शानदार प्रस्तुती से विश्व भर में प्रसिद्ध कर दिया।

कालबेलिया जाति के द्वारा किये जाने वाले नृत्य निम्न है –

  • शंकरिया नृत्य
  • पणिहारी नृत्य
  • बागड़िया नृत्य
  • इंडोणी नृत्य
  • चकरी नृत्य

शंकरिया नृत्य –

  • यह प्रेम कहानी पर आधारित युगल नृत्य है।
  • कालबेलिया नृत्यों में से यह सबसे आकर्षक होता है।
  • इस नृत्य के प्रमुख कलाकार गुलाबो, राजकी, व कंचन सपेरा है।

पणिहारी नृत्य –

  • पानी भरने जाते समय पणिहारिन स्त्रियों द्वारा सिर पर मटके रखकर यह नृत्य किया जाता है।
  • पणिहारी लोकगीत पर आधारित युगल नृत्य है।

वागड़िया नृत्य –

  • यह नृत्य कालबेलिया स्त्रियों द्वारा भीख मांगते समय चंग वाद्ययंत्र के साथ किया जाता है।

इण्डोणी नृत्य –

  • यह नृत्य कालबेलिया स्त्रियों व पुरूषों द्वारा गोलाकार पथ बनाकर पुंगी व खंजरी वाद्ययंत्रों के साथ किया जाता है।

चकरी नृत्य –

  • चकरी नृत्य भी कालबेलिया स्त्रियों द्वारा किया जाता है।

गरासिया जनजाति के लोकनृत्य

  • मोरिया नृृत्य
  • मांदल नृत्य
  • वालर नृत्य
  • लूर नृत्य
  • कूद नृत्य
  • गौर नृत्य
  • गरवा नृत्य
  • जवारा नृत्य

वालर नृत्य –

  • वालर नृत्य सिरोही का प्रसिद्ध लोकनृत्य है।
  • गरासिया जनजाति द्वारा बिना वाद्ययंत्र के स्त्री पुरूषों द्वारा किया जाता है।
  • इसे गरासिया जनजाति के लोग द्वारा ’घूमर’ भी कहा जाता है।
  • इस नृत्य में दो अर्द्धवृत होते है। जिसमें बाहर के अर्द्धवृत में पुरूष व अन्दर के अर्द्धवृत्त में महिलाएँ होती है।
  • यह नृत्य अंग संचालन व ताल के साथ धीमी गति में किया जाता है।
  • इस नृत्य का प्रारम्भ एक पुरूष द्वारा हाथ में तलवार या छाता लेकर किया जाता है।

कूद नृत्य –

  • कूद नृत्य बिना वाद्ययंत्र के आयोजित किया जाता है।
  • युवक-युवतियाँ पंक्ति में खड़ी होकर नृत्य करते समय तालियों का प्रयोग करते है।

मोरिया नृत्य –

  • यह विवाह के अवसर पर गणपति स्थापना के बाद रात्रि में केवल पुरूषों द्वारा किया जाने वाला नृत्य है।

मांदल नृत्य –

  • यह नृत्य गरासिया महिलाओं द्वारा मांदल वाद्ययंत्र के साथ वृताकार घेरे में किया जाता है। इसमें बांसुरी व थाली वाद्ययंत्रों का प्रयोग भी किया जाता है।

लूर नृत्य –

  • यह नृत्य केवल लूर गोत्र की गरासिया महिलाओं द्वारा मेले व शादी के अवसर पर किया जाता है।

गौर नृत्य –

  • गणगौर के अवसर पर गरासिया स्त्री-पुरूषों द्वारा गौर नृत्य किया जाता है।

गरवा नृत्य –

  • गरवा नृत्य उदयपुर व सिरोही में किया जाता है।
  • यह गरासिया महिलाओं का अत्यन्त प्रिय नृत्य है।

जवारा नृत्य –

  • यह नृत्य गरासिया स्त्री-पुरूषों द्वारा होली दहन से पूर्व उसके चारों ओर घेरा बनाकर हाथों में ज्वार की बालियाँ लेकर किया जाता है।

सहरिया जनजाति के लोकनृत्य

  • शिकारी नृत्य
  • झेला नृत्य
  • लहंगी नृत्य
  • बिछवा नृत्य

शिकारी नृत्य –

  • यह बारां जिले का सहरिया जनजाति का प्रसिद्ध लोकनृत्य है।
  • यह सहरिया जनजाति द्वारा आयोजित पुरूष प्रधान नृत्य है।

लहंगी नृत्य –

  • यह नृत्य सहरिया जनजाति में लहंगी राग पर आयोजित होता है।
  • इसमें केवल सामूहिक रूप से पुरूष शामिल होते है।
  • यह नृत्य मृदंग, ढोलक व ढपला वाद्ययंत्रों के साथ घेरा बनाकर किया जाता है।

झेला नृत्य –

  • फसल की पकाई के अवसर पर सहरिया महिला-पुरूष सम्मिलित रूप से झेला गीत गाकर इस नृत्य को प्रदर्शित करते है।

बिछवा नृत्य –

  • यह नृत्य केवल सहरिया महिलाओं द्वारा समूह में किया जाता है।

सांग नृत्य –

  • यह नृत्य सहरिया स्त्री व पुरूष दोनों के द्वारा किया जाता है।

कथौड़ी जनजाति के नृत्य

  • मावलिया नृत्य
  • होली नृत्य

मावलिया नृत्य –

  • यह नृत्य नवरात्रों में 9 दिनों तक कथौड़ी जाति के पुरूषों द्वारा किया जाता है।
  • कथौड़ी जनजाति के लोग समूह बनाकर ढ़ोलक व बांसुरी के साथ देवी-देवताओं के गीत गाते हुये गोले घेरे में नृत्य करते है।

होली नृत्य –

  • होली के अवसर पर महिलाओं द्वारा पिरामिड बनाकर एक दूसरे का हाथ पकड़ कर नृत्य किया जाता है।
  • पुरूष ढोलक, बंसली व अन्य वाद्ययंत्र बजाते है।

कंजर जाति के नृत्य –

  • चकरी नृत्य
  • लाठी नृत्य
  • धाकड़ नृत्य

चकरी नृत्य –

  • चकरी नृत्य हाड़ौती क्षेत्र का प्रसिद्ध है।
  • हाड़ौती अंचल में कोटा, बूँदी, झालावाड़ व बाराँ जिले में तीज त्यौहार व वैवाहिक अवसरों पर चकरी नृत्य किया जाता है।
  • हाड़ौती अंचल में कंजर अविवाहित युवतियों द्वारा गीत गाते हुये तेजगति में चक्राकार घूमती है।
  • इसमें महिलाएँ 80 कली का घाघरा पहनकर नृत्य करती है।
  • इस नृत्य में महिलाएँ अपने प्रियतम से शृंगार की चीजें लाने का अनुरोध करती है।

धाकड़ नृत्य –

  • यह कंजरों द्वारा हथियार लेकर युद्ध की सभी कलाओं का प्रदर्शन वाला शौर्य से परिपूर्ण नृत्य है।
  • झालापाव व बीरा की कथा पर आधारित है।

लाठी नृत्य –

  • हाड़ौती क्षेत्र में कंजर जाति का नृत्य है।

गुर्जर जाति के नृत्य

  • चरी नृत्य
  • झूमर नृत्य
  • बलेदी नृत्य

चरी नृत्य –

  • चरी नृत्य किशनगढ़ (अजमेर) में प्रचलित है।
  • इसमें स्त्रियाँ सिर पर कलश रखकर उसमें कपास के बीज व तेल डालकर आग लगाती है, उस कलश को सिर पर रखकर नृत्य करती है।
  • विवाह, गणगौर व जन्म के अवसर पर इसके पेशेवर कलाकारों द्वारा यह नृत्य किया जाता है।

झूमर नृत्य –

  • यह गुर्जर व अहीर जाति में पुरूषों का वीररस प्रधान नृत्य है।
  • इसमें झूमर वाद्ययंत्र का प्रयोग होने के कारण इसे ’झूमर’ कहते है।

बलेदी नृत्य –

  • यह गुर्जर जाति का लोकनृत्य है।

मेव जाति के नृत्य

  • रतवई नृत्य
  • रणबाजा नृत्य

रतवई नृत्य –

  • यह नृत्य अलवर क्षेत्र का प्रसिद्ध है।
  • मेव महिलाओं द्वारा चूड़ियाँ खनकाते हुये नृत्य किया जाता है। पुरूष अलगोजा व टामक वाद्ययंत्र बजाते है।

रणबाजा नृत्य –

  • यह नृत्य मेवात क्षेत्र में स्त्री-पुरूष दोनों करते है।

बणजारा जाति के नृत्य

मछली नृत्य –

  • मछली नृत्य बाड़मेर क्षेत्र का प्रसिद्ध है।
  • पूर्णिमा की रात में बणजारों की कुंवारी कन्याओं द्वारा किया जाने वाला नृत्य है।
  • विश्व का एकमात्र ऐसा नृत्य जो अत्यंत खुशी के साथ शुरू होकर दुःख के साथ समाप्त होता है।

नट/ माट जाति के नृत्य

कठपुतली नृत्य –

  • कठपुतली नचाने वाला नट अपने हाथ में डोरियों का गुच्छा थाम कर नृत्य कराता है।

कुम्हार जाति के नृत्य

चाक नृत्य –

  • विवाह के अवसर पर कुम्हार के घर पर चाक लेने जाते समय यह नृत्य किया जाता है।

हरिजन जाति के नृत्य

बोहरा-बोहरी नृत्य –

  • होली के अवसर पर हरिजन जाति द्वारा किया जाता है, इसमें बोहरा व बोहरी नाम के दो पात्र नृत्य करते है।

माली जाति के नृत्य

चरवा नृत्य –

  • संतान आने की खुशी में माली समाज की महिलाओं द्वारा कांसे के घड़े में दीपक रखकर नृत्य किया जाता है।

राजस्थान के अन्य लोकनृत्य

नृत्य क्षेत्र
तमाशा नृत्य जयपुर
हिंडौला नृत्य जैसलमेर
कानूड़ा नृत्य बाड़मेर
मयूर नृत्य ब्यावर
नाहर नृत्य भीलवाड़ा
भंगड़ा नृत्य श्रीगंगानगर
मेहिली नृत्य प्रतापगढ़
खारी नृत्य अलवर
गेर नृत्य बाड़मेर
पेजण नृत्य वागड़ क्षेत्र
गरबा नृत्य वागड़ क्षेत्र
बिन्दौरी नृत्य झालावाड़
ढोला मारू नृत्य झालावाड़
कबूतरी नृत्य चुरू
पालीनोच नृत्य बाँसवाड़ा
चोगोला नृत्य डूँगरपुर
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राजस्थान के प्रमुख संत सम्प्रदाय

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