आज के आर्टिकल में गुर्जर प्रतिहार वंश (Gurjar Pratihar Vansh) के बारे में विस्तार से जानकारी दी गयी है , पुरे टॉपिक का सार दिया गया है ताकि परीक्षा में आए हर प्रश्न का आप निसंकोच उत्तर दे सको।
गुर्जर प्रतिहार वंश – Gurjar Pratihar Vansh
गुर्जर प्रतिहार सामान्य परिचय :
- गुर्जर का अर्थ – गुर्जरात्र
- प्रतिहार का अर्थ – रक्षक/द्वारपाल
- गुर्जर जाति का सर्वप्रथम उल्लेख किस अभिलेख में मिलता है – चालुक्य नरेश पुलकेशिन -2 के एहोल अभिलेख में
- गुर्जर प्रतिहारों का शासनकाल का समयकाल रहा – आठवीं से 10 वीं शताब्दी
- ह्वेनसांग नेअपनी पुस्तक सी यु की में गुर्जर प्रदेश को कु -चे -लो और भीनमाल को पिलोमोलो कहा
अलमसूदी ने गुर्जर प्रतिहारों को अल गुजर कहा और राजा के लिये बोरा शब्द का प्रयोग किया।
गुर्जर प्रतिहारों की उत्त्पत्ति
- पृथ्वीराज रासो,मुहणोत नैणसी – अग्निकुंड से
- गौरीशंकर हीराचंद ओझा – देशी क्षत्रिय
- भण्डारकर – विदेशी
- केनेड़ी महोदय – ईरानी
- स्टेनकोनो और स्मिथ – हूणों से
- कनिंघम – कुषाणों से
मुहणोत नैणसी ने गुर्जर प्रतिहारों की कितनी शाखाओं का वर्णन किया – 26 (मण्डोर सबसे प्राचीन)
- मंडोर की शाखा
- भीनमाल शाखा
मंडोर की शाखा
- गुर्जर प्रतिहारों का प्रारंभिक केन्द्र माना जाता है – मण्डोर
- प्रतिहारों का आदि पुरुष माना जाता है – हरिश्चन्द्र को
- प्रतिहारों के संस्थापक हरिश्चंद्र का उपनाम – रोहिलिद्धि
- हरिश्चन्द्र की 2 पत्नियाँ – भद्रा (क्षत्रिय), द्विजात्मा (ब्राह्मणी)
- भद्रा पत्नी से रज्जिल,भोगभट्ट, दह,कक्क पुत्र हुए
- मण्डोर की वंशावली का प्रारंभ माना जाता है – रज्जिल से
- सर्वप्रथम मण्डोर को राजधानी बनाकर राजसूय यज्ञ करने वाला प्रतिहार शासक- रज्जिल
- रोहिसकुप में महामंडेलश्वर महादेव का मंदिर बनवाया – रज्जिल
- रज्जिल के दरबार में उपस्थित ब्राह्मण जिसने रज्जिल को ‘राजा’ की उपाधि दी – नरहरि
- पिल्लपाणी (साहसिक कार्य करने वाला) की उपाधि किसने धारण की – नरभट्ट
- रोहिसकुप में विष्णु मंदिर बनवाया – नरभट्ट
- मेड़ता को राजधानी बनाने वाला प्रतिहार शासक – नागभट्ट
- नागभट्ट की उपाधि – नाहड़
- रोहिसकूप नगर में महामंडलेश्वर मंदिर (महादेव मंदिर) किसने बनवाया?- रज्जिल
- नागभट्ट प्रथम के बाद प्रतिहारों का राजा कौन बना – भोज प्रतिहार
- जैसलमेर (वल्ल) के देवराज भाटी को पराजित व जोधपुर में सिद्धेश्वर महादेव मंदिर किसने बनवाया – शीलुक
- प्रतिहारों में एकमात्र शासक जो वीणा वादक था – झोट प्रतिहार
- 837 ई. में मण्डोर के विष्णु मंदिर में जोधपुर प्रशस्ति किस शासक ने लगवाई – बाऊक
- 861 ई. में घटियाला के दो शिलालेख उत्कीर्ण करवाए – कुक्कुक
- अपनी दानी प्रवृत्ति के कारण उद्योतनशूरी ने किसे अपने ग्रन्थ कुवलयमाला में “प्रतिहार वंश का कर्ण” कहा – कुक्कुक को
- 1395 ई में इन्दा प्रतिहार ने मंडोर दुर्ग अपनी बेटी की शादी में चुंडा राठोड को सौंप दिया
- प्रतिहार वंश की मंडोर शाखा का दानवीर शासक कक्कुक था, इसे मंडोर शाखा का कर्ण कहा जाता है
- यशोवर्धन प्रतिहार वंश की मंडोर शाखा का एक मात्र शासक था. जिन्होनें भागवत धर्म को सरंक्षण देते हुए शहर में सर्वाधिक कुए और तालाबों का निर्माण करवाया
भीनमाल शाखा
- इस शाखा को रघुवंशी प्रतिहार शाखा भी कहते है
- नागभट्ट – 1 ने भीनमाल को चावंडो से जीता और इसे अपनी राजधानी बनाया
- प्रतिहारों की भीनमाल शाखा का संस्थापक किसे माना जाता है – नागभट्ट – 1
- जालोर, अवंति, कन्नौज के प्रतिहार वंश का संस्थापक – नागभट्ट – 1
- नागभट्ट I ने भीनमाल के बाद अपनी दूसरी राजधानी किसे बनाया? – अवन्ती(उज्जेन)
- नागावलोक, नारायण (ग्वालियर प्रशस्ति) म्लेच्छो का नाशक, इन्द्र के दम्भ को नाश करने वाला कहा गया – नागभट्ट – 1
- दंतिदुर्ग (राष्ट्रकूट शासक) को हिरण्यगर्भदान यज्ञ करने हेतु नागभट्ट I ने कहाँ आमंत्रित किया – उज्जैन
- प्रतिहार वंश का वास्तविक संस्थापक/प्रतिहार वंश की नींव डालने वाला शासक कहलाता है – वत्सराज
- रणहस्तिन (युद्ध का हाथी), जयवराह (ब्राह्मण दुग्गिल द्वारा प्रदत्त) उपाधि किस प्रतिहार शासक की थी – वत्सराज
- वत्सराज के समय उद्योतन सूरि व आचार्य जिनसेन ने किन प्रसिद्ध पुराणों / ग्रन्थों की रचना की – कुवलयमाला(778 ई. ), हरिवंश पुराण (781 ई.)
- वत्सराज के समय वलिप्रबंध अभिलेख लिखा गया, जिसमें सती प्रथा, नियोग प्रथा और स्वयंवर प्रथा की जानकारी मिलती है
- त्रिकोणीय संघर्ष की शुरूआत किस शासक के समय से मानी जाती है – वत्सराज
- त्रिकोणीय संघर्ष की समाप्ति – नागभट्ट -2
- कन्नौज के शासक इंद्रायुद्ध को हराकर, कन्नौज पर अधिकार कर लिया
- राष्ट्रकूट ध्रुव -1 द्वारा वत्सराज को पराजित करने का उल्लेख किन अभिलेखों में मिलता है – राधनपुर व वनी डिंडोरी अभिलेख
- परमभट्टारक, महाराजाधिराज, परमेश्वर की उपाधि – नागभट्ट- 2
- कन्नौज को जीतकर राजधानी किसने बनाया – नागभट्ट- 2
- दानशीलता व कन्यादान के कारण नागभट्ट II को कर्ण की उपाधि दी गई, जिसका उल्लेख मिलता है – ग्वालियर प्रशस्ति
- नागभट्ट II ने गंगा में जल समाधि ले ली थी, जिसका उल्लेख मिलता है – प्रभावक चरित्र(चंद्रप्रभ सुरि)
- नागभट्ट II के बाद प्रतिहार वंश का शासक कौन बना – रामभद्र
- प्रतिहारों का पितृहंता शासक किसे कहा गया – मिहिरभोज को
- प्रतिहार वंश का वह शासक जिसके समय प्रतिहारों की शक्ति अपने चरम पर थी – मिहिरभोज
- मिहिरभोज ने कौनसी उपाधियाँ धारण की – आदिवराह(ग्वालियर प्रशस्ति), प्रभास पाटन(दोलतपुर अभिलेख)
- किस अभिलेख में मिहिरभोज को सम्पूर्ण पृथ्वी को जीतने वाला बताया गया है – बग्रमा अभिलेख
- अरब यात्री सुलेमान ने किसे इस्लाम का शत्रु/इस्लाम की दीवार व अरबों का अमित्र कहा – मिहिरभोज भोज को
- मिहिरभोज ने राष्ट्रकूट वंश के कृष्ण तृतीय को हराकर कन्नौज पर पूरी तरह से अधिकार कर लिया था
- निर्भय नरेश, रघुकुल चूड़ामणी निर्भयराज, महेन्द्रायुद्ध नामक उपाधियाँ किसने धारण की – महेन्द्रपाल -1
- महेन्द्रपाल के गुरू, जो दरबारी साहित्यकार भी था – राजशेखर
- राजशेखर की रचनाएँ- कर्पूरमंजरी, बाल रामायण, बाल भारत (प्रचंड पांडव), काव्य मीमांसा, हरविलास
- B.N पाठक ने अन्तिम महान् हिन्दू शासक किसे कहा – महेन्द्रपाल I
- राजशेखर ने किसे ‘आर्यावर्त का महाराधिराज’ कहा है – महिपाल – 1
- प्रतिहारों का पतन किस के शासन में होना शुरू हो गया था – महिपाल – 1
- महिपाल प्रथम की उपाधियाँ – विनायक पाल, हेरम्भपाल, रघुकुल मुकुटमणि
- अरबी यात्री अल मसूदी किस शासक के समय भारत आया – महिपाल – 1
- अरबी यात्री मिहिरभोज के समय आया – सुलेमान
- 1018 ई. में महमूद गजनवी के कन्नौज आक्रमण के समय गुर्जर प्रतिहार वंश का शासक था – राज्यपाल
- प्रतिहार वंश का अंतिम शासक था – यशपाल
- प्रतिहार साम्राज्य का पतन हुआ – 1093 ई में गहड़वाल वंश ने कन्नौज को जीतकर प्रतिहारों का सम्राज्य समाप्त कर दिया