राजस्थान के प्रमुख अभिलेख: आज के आर्टिकल में हम राजस्थान सामान्य ज्ञान के अंतर्गत राजस्थान के प्रमुख अभिलेख (Rajasthan ke Abhilekh) पढेंगे ,जो राजस्थान में होने वाली कोई भी प्रतियोगी परीक्षा के लिए महत्त्वपूर्ण है।
राजस्थान के प्रमुख अभिलेख/शिलालेख
राजस्थान के प्रमुख अभिलेखों में हम बरली का शिलालेख, घोसुंडी शिलालेख, नांदसा यूप-स्तम्भ लेख, बर्नाला यूप-स्तम्भ अभिलेख, बङवा स्तम्भ लेख, बिचपुरिया यूप-स्तम्भ लेख, विजयगढ़ यूप-स्तम्भ लेख, नगरी का शिलालेख, भ्रामर माता का लेख, चित्तौङ के खण्ड लेख, वसंतगढ़ का लेख, सांभौली अभिलेख, मंडोर का शिलालेख, कणसवां का लेख, घटियाला का शिलालेख और ओसियां का शिलालेख के बारे में विस्तार से जानकारी शेयर कर रहें है।
अभिलेख किसे कहते है?
- अभिलेखों का अध्ययन ’एपिग्राफी’ कहलाता है।
- ऐसे अभिलेख जिनमें राजाओं की प्रशंसा की जाती है, ’प्रशस्ति’ कहलाती है।
- अभिलेखों से तिथि क्रम का निर्धारण होता है।
- अभिलेख समसामयिक होते है।
- अभिलेखों से वंशावली, विजय तथा स्थापत्य कला की जानकारी मिलती है।
राजस्थान के अभिलेख
बड़ली का शिलालेख | घोसुंडी शिलालेख |
नांदसा यूप-स्तम्भ लेख | बर्नाला यूप-स्तम्भ अभिलेख |
बङवा स्तम्भ लेख | बिचपुरिया यूप-स्तम्भ लेख |
विजयगढ़ यूप-स्तम्भ लेख | नगरी का शिलालेख |
भ्रामर माता का लेख | चित्तौङ के खण्ड लेख |
वसंतगढ़ का लेख | सामौली अभिलेख |
मंडोर का शिलालेख | कणसवां का लेख |
घटियाला का शिलालेख | ओसियां का शिलालेख |
राजस्थान के प्रमुख शिलालेख
बड़ली का शिलालेख – Barli ka Abhilekh
समय | 443 ई.पू. |
स्थान | बड़ली गाँव, अजमेर |
लिपि | ब्राह्मी लिपि |
बड़ली शिलालेख ब्राह्मी लिपि का प्रथम शिलालेख है। इस शिलालेख में अजमेर के साथ-साथ माध्यमिका (चित्तौङ) में भी जैन धर्म का प्रसार होना बताया गया है।
घोसुंडी शिलालेख – Ghosundi ka Abhilekh
समय | दूसरी शताब्दी ई.पू. |
स्थान | घोसुण्डी (चित्तौङ) |
भाषा | संस्कृत भाषा व ब्राह्मी लिपि |
इस शिलालेख में राजा सर्वताता द्वारा किए गए अश्वमेघ यज्ञ का उल्लेख है, साथ ही यह भी वर्णित है कि जैन धर्म से प्रभावित इस क्षेत्र में वैष्णव धर्म का प्रभाव भी बढ़ने लगा है। यह शिलालेख इस तथ्य को साबित करता है कि ई.पू. में अश्वमेघ यज्ञ, भगवत धर्म प्रचार, कृष्ण एवं संकर्षण (बलराम) की मान्यताएं विद्यमान थी। कृष्ण एवं संकर्षण का उल्लेख लेख की प्रथम तीन पंक्तियों में है।
वसंतगढ़ का लेख – Vasantgadh ka Lekh
समय | 625 ई. |
स्थान | वसंतगढ़ (सिरोही) |
भाषा | संस्कृत |
इस लेख में वज्रभट्ट के पुत्र राज्जिल की अर्बुद देश का स्वामी बताया गया है। साथ ही तत्कालीन सामंत व्यवस्था पर भी प्रकाश डाला गया है।
सामौली अभिलेख – Sambholi Abhilekh
समय | 646 ई. |
स्थान | सामौली, भोमट मेवाङ के दक्षिण में |
भाषा | संस्कृत |
मेवाङ के गुहिलवंश के समय को निर्धारित करने तथा तत्कालीन आर्थिक व साहित्यिक स्थिति को जानने में यह लेख एक महत्त्वपूर्ण कङी साबित हुआ है। इस लेख में राजा शीलादित्य की विजयों का उल्लेख है। उसे देवताओं, ब्राह्माणों एवं गुरुजनों को आनन्द देने वाला, शत्रुओं को जीतने वाला तथा अपने कुल के आसमान में चंद्रमा की उपाधियाँ दी गई हैं।
इस लेख में वट नगर से आए महाजनों के एक समूह के मुखिया जेतक द्वारा बनवाए गए अरण्यवासिनी देवी मंदिर का भी उल्लेख हैं इस मंदिर के बारे में लिखा गया है कि इस मंदिर की स्थापना के बाद जेतक ने देवलुक नामक स्थान पर अग्नि समाधि ले ली थी। इस शिलालेख में सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि इसमें वर्णित घटनाओं से उस समय बाहर से आकर लोगों के बसने, स्थापत्य कला, स्थानीय भीलों से राजा शीलादित्य के संबंध, मंदिर निर्माण आदि प्रणालियों का पता चलता है।
शीलादित्य के शासन काल में वह क्षेत्र खनन उद्योग के कारण समृद्ध होने की भी सूचना मिलती है। जेतक अग्नि प्रवेश भी किसी तत्कालीन धार्मिक परम्परा का सूचक है।
नांदसा यूप-स्तम्भ लेख
समय | 225 ई. |
स्थान | नांदसा (भीलवाङा) |
भाषा | संस्कृत |
यह स्तम्भ लेख भीलवाङा जिले के नांदसा गांव में एक तालाब में स्थित है। इस स्तम्भ पर दो लेख उत्कीर्ण है – पहला लेख 6 पंक्तियों का है तथा ऊपर से नीचे की ओर लिखा गया है। दूसरा लेख 11 पंक्तियों का है तथा स्तम्भ के चारों ओर लिखा गया है। दूसरा लेख 11 पंक्तियों का है तथा स्तम्भ के चारों ओर लिखा गया है।
दूसरा लेख 11 पंक्तियों का है तथा स्तम्भ के चारों ओर लिखा गया है। यह स्तम्भ लेख तालाब के मध्य में स्थित होने के कारण वर्ष के उन्हीं दिनों में पढ़ा जा सकता है, जब तालाब सूख जाता है। इस अभिलेख में शक्ति गुणागुरू नामक व्यक्ति द्वारा सम्पादित षष्ठीरात्र यज्ञ का वर्णन है। साथ ही उत्तरी भारत में प्रचलित पौराणिक यज्ञों एवं राजाओं द्वारा राज्य विस्तार के लिए किए जाने वाले प्रयासों का भी उल्लेख है। ऐसा माना जाता है कि यह स्तम्भ सोम द्वारा स्थापित किया गया था।
बर्नाला यूप-स्तम्भ अभिलेख
समय | 227 ई. |
स्थान | आमेर संग्रहालय |
भाषा | संस्कृत |
यह स्तम्भ लेख जयपुर रियासत के बर्नाला ग्राम में स्थित था। वर्तमान में आमेर संग्रहालय में संरक्षित है। इस अभिलेख में सोहर्न गौत्र के एक व्यक्ति द्वारा सात पाठशालाओं की स्थापना का पुण्य प्राप्त करने का उल्लेख है।
बङवा स्तम्भ लेख – Badva ka Abhilekh
समय | 238-39 ई. |
स्थान | बङवा (अंता, जिला बारां) |
भाषा | संस्कृत |
इस लेख में बलवर्धन, सोमदेव तथा बलसिंह नामक तीन भाइयों द्वारा संपादित त्रिरात्र यज्ञ का उल्लेख है। एक अन्य लेख में अप्तोयाम यज्ञ का उल्लेख है, जिसे मौखरी धनत्रात ने संपादित किया। इन लेखों में वैष्णव धर्म एवं यज्ञ की महिमा को बताया गया है। वर्तमान में कोटा के संग्रहालय में संरक्षित।
बिचपुरिया यूप-स्तम्भ लेख
समय | 274 ई. |
स्थान | बिचपुरिया मंदिर, उनियारा (टोंक) |
भाषा | संस्कृत |
इस लेख में यज्ञानुष्ठान का वर्णन है परन्तु किसी यज्ञ विशेष का नाम वर्णित नहीं है। इसमें धरक का वर्णन अग्निहोत्र (यज्ञ सम्पन्न करवाने वाले ऋषि) के रूप में किया गया है।
विजयगढ़ यूप-स्तम्भ लेख
समय | 423 ई. |
स्थान | गंगधार (झालावाङ) |
भाषा | संस्कृत |
राजा विश्वकर्मा के मंत्री मयूराक्ष द्वारा एक विष्णु मंदिर का निर्माण करवाए जाने का उल्लेख है। मयूराक्ष ने तांत्रिक शैली की एक बावङी तथा मातृगृह का निर्माण भी करवाया। यह लेख पांचवीं सदी की सामंती व्यवस्था के बारे में भी जानकारी देता है।
नगरी का शिलालेख – Nagri ka Abhilekh
समय | 424 ई. |
स्थान | नगरी नामक स्थान से |
भाषा | संस्कृत |
यह शिलालेख वर्तमान में अजमेर संग्रहालय में संरक्षित है। इस शिलालेख में विष्णु पूजा के प्रचलन के साक्ष्य मिलते हैं। इस लेख में उस युग के तीन भाइयों सत्यशूर, श्रीगंध तथा दास का उल्लेख समाज के प्रतिष्ठित व्यक्तियों के रूप में किया गया है।
भ्रामर माता का लेख – Bhrmar Mata ka Lekh
समय | 490 ई. |
स्थान | भ्रामर माता मंदिर, छोटी सादङी (चित्तौङ) |
भाषा | संस्कृत |
इस लेख में गौर वंश के पुण्यशोभ, राज्यवर्द्धन, यशोगुप्त तथा औलिकार वंश के आदित्वर्द्धन के चित्तौङ क्षेत्र के निकटवर्ती भागों का शासक होने का उल्लेख है। गौर वंश के शासकों द्वारा यहां माता का मंदिर बनवाने तथा शाक्त धर्म में आस्था रखने का वर्णन है। लेख की अंतिम पंक्तियों में मृत्यु के उपरान्त ब्राह्मण को दान देना कल्याणकारी बताया गया है।
चित्तौङ के खण्ड लेख
समय | छठी शताब्दी का उत्तरार्ध |
स्थान | चित्तौङ |
भाषा | संस्कृत |
यह लेख 3 एवं 8 पंक्तियों के दो भागों में विभक्त है। पहले खण्ड में विष्णुदत्त को एक श्रेष्ठ वणिक बताया गया है तथा उसके पुत्र को चित्तौङ एवं दशपुर (मंदसौर) का राजस्थानिय कहा गया है।
राजस्थानिय शब्द किसी और राजा द्वारा अपने अधिकारी को किसी प्रांत का शासक नियुक्त करने पर, उस अधिकारी के लिए प्रयोग में लिया गया है। दूसरे लेख में मनोहर स्वामी अर्थात् विष्णु मंदिर का उल्लेख है। इस लेख में अभयदत्त नामक शासक को राजवंशीय बताया गया है।
अपराजित का शिलालेख – Aprajit ka Shilalekh
समय | 661 ई. |
स्थान | नागदी गांव, कुंडेश्वर मंदिर की दीवार पर |
भाषा | कुटिल लिपि में संस्कृत भाषा |
इस लेख के अक्षर बहुत खूबसूरत तरीके से उत्कीर्ण किए गए हैं। इसमें गुहिल शासक अपराजित की वीरता का बखान किया गया है। ऐसा उल्लेख है कि उसने एक बहादुर शासक वराहसिंह को परास्त कर अपना सेनापति बनाया। इसके अतिरिक्त विष्णु मंदिर के निर्माण का भी उल्लेख है।
इस लेख से मुख्यतः गुहिलों की उत्तरोत्तर विजयों का भान होता है। इस युग में विष्णु मंदिरों का निर्माण भी प्रचलन में था। इस लेख की सुन्दर एवं स्पष्ट भाषा इस बात को प्रमाणित करती है कि उस समय मेवाङ में शिल्प कला विकसित थी तथा योग्य शिल्पी भी निवास करते थे। लेख में प्रयुक्त कविताओं से कवि परम्परा का पता चलता है। ये लेख 7 वीं शताब्दी के मेवाङ की धार्मिक व राजनैतिक व्यवस्था के बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारी प्रदान करता है।
मंडोर का शिलालेख – Mandor ka Shilalekh
समय | 685 ई. |
स्थान | मंडोर स्थित एक बावङी में शिला पर उत्कीर्ण (जोधपुर) |
भाषा | संस्कृत |
इस लेख में इस बावङी का निर्माता चणक के पुत्र माधु ब्राह्मण को बताया गया है। इस लेख में 7 वीं शताब्दी में शिव एवं विष्णु की पूजा का उल्लेख किया गया है।
शंकरघट्टा का अभिलेख –
समय | 713 ई. |
स्थान | शंकरघट्टा (चित्तौङ) |
भाषा | संस्कृत |
इस लेख में राजा मानभंग या मानमोरी को गगनचुंबी प्रासादों, वापियों एवं मंदिरों का निर्माता बताया गया है। चित्तौङ स्थित प्राचीन सूर्य मंदिर को भी इन्हीं निर्माणों की कङी माना जाता है। यह सूर्य मंदिर उस समय का एकमात्र निर्माण है, जो अभी तक विद्यमान है। राजा मानमोरी का उल्लेख कर्नल जेम्स टाॅड ने भी अपने यात्रा वृत्तान्तों में किया है।
कणसवां का लेख – Kansva ka Lekh
समय | 738 ई. |
स्थान | कणसवां (कंसुवा), कोटा |
भाषा | संस्कृत |
यह लेख कणसवां (कंसुवा) गांव के एक शिवालय में स्थित है। इस शिलालेख में एक मौर्यवंशी शासक धवल का उल्लेख किया गया है। इस लेख के बाद अन्य किसी मौर्यवंशी शासक का राजस्थान में उल्लेख नहीं मिलता।
घटियाला का शिलालेख – Ghatiyala Abhilekh
समय | 861 ई. |
स्थान | घटियाला,(जोधपुर) |
भाषा | संस्कृत |
यह लेख एक स्तम्भ के दोनों पाश्र्व पर उत्कीर्ण है। प्रथम लेख विनायक एवं द्वितीय लेख सिद्धम से प्रारम्भ किया गया है। प्रथम लेख में कुक्कुक नामक प्रतिहार शासक की न्यायप्रियता, वीरता, राजनीतिक वैभव, पुष्प-प्रेम, गुरूभक्ति, कृतज्ञता, सद्चरित्रता आदि गुणों का उल्लेख मिलता है।
कुक्कुक के बारे में यह भी वर्णित है कि उसने घटियाला प्रदेश को मारवाङ के आभीरों से मुक्त करवाया तथा सङकें, भवन, बाजार आदि निर्माण करवाकर इसे एक व्यवस्थित नगर के रूप में आबाद किया।
द्वितीय लेख में ब्राह्मणों की एक जाति मग ब्राह्मणों का उल्लेख है। यह इस बात का सूचक है कि वर्ण विभाजन की प्रवृत्ति भी विद्यमान थी। मारवाङ में इन्हें शाकद्वीपीय ब्राह्मणों के नाम से जाना जाता था। इस क्षेत्र में ये लोग ओसवालों के आश्रित के रूप में रह रहे थे। ये ब्राह्मण जैन मंदिरों में भी पूजा सम्पन्न करवाते थे। यहाँ इन्हें सेवक कहा जाता था। ये लेख मग द्वारा लिखे गए लेख तत्कालीन प्रतिहार वंश की राजनीतिक, सामाजिक एवं धार्मिक नीतियों के बारे में जानकारी प्राप्त करने के महत्त्वपूर्ण स्रोत है।
घटियाला के दो अन्य लेख
समय | 861 ई. |
स्थान | घटियाला (जोधपुर) |
भाषा | मराठी में पद्य |
संस्कृत में आशय स्पष्ट किया गया है। इस लेख में एक विद्वान ब्राह्मण हरिश्चन्द्र के बारे में बताया गया है। इसके दो पत्नियां थी, जिसमें से एक ब्राह्मण कुल से तथा दूसरी क्षत्रिय कुल से थी। हरिश्चन्द्र को प्रतिहार वंश का जनक माना गया है।
इसका संभावित काल 597 ई. माना गया है। हरिश्चन्द्र के उत्तराधिकारी रज्जिल नरभट तथा नागभट्ट थे। नागभट्ट एक प्रतापी शासक था। इस अभिलेख से प्रतिहारों की नामावली व उपलब्धियों के बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है, जो ऐतिहासिक दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। कालांतर में प्रतिहारों का शासन मुंगेर, मल्लदेश सहित अन्य प्रदेशों तक विस्तारित हो गया था।
प्रतापगढ़ का लेख – Prtapgadh ka Lekh
समय | 946 ई. |
स्थान | प्रतापगढ़ (चित्तौङ) |
भाषा | दसवीं सदी की नागरी लिपि में संस्कृत भाषा में लिखित |
इस लेख में भर्तृभट्ट द्वितीय के शासन काल का उल्लेख है। भर्तृभट्ट सूर्य के उपासक थे। इंद्रराजादित्य देव नामक सूर्य मंदिर को पलास कूपिका ग्राम स्थित बब्बुलिका खेत दान में दिया गया।
इस लेख से यह भी पता चलता है कि उस समय खेतों का नाम खेत के समीप स्थित वृक्ष के नाम पर रखा जाता था। लेख में वर्णित बब्बुलिका खेत का नाम खेत में स्थित बबूल के वृक्ष के नाम पर रखा गया है। इसी तरह आम, वट, इमली आदि वृक्षों के नाम पर खेतों के नाम रखने के प्रमाण भी मिले हैं।
ओसियां का शिलालेख – Osiyan ka Shilalekh
समय | 856 ई. |
स्थान | ओसियां (जोधपुर) |
भाषा | संस्कृत |
इस लेख में वत्सराज को रिपुदमन की संज्ञा दी गई है। इस क्षेत्र में समाज को ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य एवं शूद्र चार वर्णों में विभाजित बताया गया है। वत्सराज की समृद्धि का वर्णन किया गया है।
चित्तौङ का शिलालेख – Chitorgadh ka Shilalekh
समय | 971 ई. |
स्थान | चित्तौङ |
भाषा | संस्कृत |
यह लेख वर्तमान में अहमदाबाद के भारतीय मंदिर में संरक्षित है। इस लेख में मुख्यतः राजा भोज एवं उनके उत्तराधिकारियों का वर्णन है। इसमें कुल 78 श्लोक हैं। इसमें राजा नरवर्मा का भी उल्लेख है, जिसके समय यह लेख लिखा गया था। नरवर्मा के समय में चित्तौङ में वीर, रासल, धन्धक, पध, मानदेव आदि घर्कट एवं खण्डेलवाल जाति के श्रेष्ठियों के सहयोग से महावीर जिनालय का निर्माण होने का वर्णन है।
नरवर्मा ने भी इस प्रासाद के लिए दो पारूत्थ मुद्रादान दी थी। इस शिलालेख के 75 वें श्लोक में देवालयों में स्त्री प्रवेश निषिद्ध बताया गया है। इस प्रकार के कई अन्य निषेधात्मक नियम इस बात के सूचक हैं कि उस समय धार्मिक स्तर नीचे गिरने लगा था। संभवतयाः दुराचार की कई पद्धतियां भी प्रचलन में आ चुकी थी। यह लेखक तत्कालीन चित्तौङ की समृद्धि का वर्णन करने के साथ ही परमार शासकों की उपलब्धियां भी बताता है।
आहङ का देवकुलिका लेख एवं आहङ का शक्तिकुमार अभिलेख
समय | 977 ई. |
स्थान | आहङ |
भाषा | संस्कृत |
ये दोनों शिलालेख आहङ से प्राप्त हुए हैं। इनमें मेवाङ के तीन राजाओं अल्लट, नरवाहन तथा शक्तिकुमार का उल्लेख मिलता है। इन तीनों राजाओं के दरबार में अक्षपटलाधीश नियुक्त थे। अल्लट के अक्षपटलाधीश का नाम मत्तट लिखा गया है।
आहङ के देवकुलिका अभिलेख में अल्लट की वीरता का वर्णन है। उसने कन्नौज के शासक देवपाल को युद्ध मेें हराया था। यह लेख तत्कालीन मेवाङ की सैन्य व्यवस्था के बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारियाँ देता है। शक्तिकुमार के लेख को कर्नल जेम्स टाॅड अपने साथ इंग्लैण्ड ले गये थे।
उन्होंने अपनी पुस्तक में इस लेख की विषयवस्तु का वर्णन किया है। इस लेख के अनुसार शक्तिकुमार आहङ का शासक था। उसके शासनकाल में यहां विपुल वैभवशाली वैश्य संप्रदाय के लोग निवास करते थे।
इस लेख में अल्लट की रानी हरियदेवी को हूण राजा की पुत्री बताया है तथा उसके द्वारा हर्षपुर गांव बसाने का भी उल्लेख है। इस लेख में गुहदत्त से लेकर शक्तिकुमार तक की वंशावली का उल्लेख है, जो मेवाङ के प्राचीन इतिहास को जानने में बहुत सहायक है।
झालरापाटन का लेख – Jhalrapatan ka lekh
समय | 1086 ई. |
स्थान | सर्वसुखिया कोठी (झालरापाटन) |
भाषा | संस्कृत |
इस लेख में राजा उदयादित्य का उल्लेख है। उसे राजा भोज परमार का संबंधी बताया गया है। इस लेख को पंडित हरसुख ने उत्कीर्ण किया था। इस लेख में जनक नामक तेली द्वारा एक मंदिर एवं वापी का निर्माण करवाया जाना वर्णित है।
निष्कर्ष:
दोस्तो आज के आर्टिकल में हमने राजस्थान के प्रमुख अभिलेख (Rajasthan ke Abhilekh) को विस्तार से पढ़ा ,हम आशा करतें है कि आपने कुछ नयी जानकारी हासिल की होगी ..धन्यवाद
FAQs – राजस्थान के प्रमुख अभिलेख
1. मानमोरी का शिलालेख कहाँ से प्राप्त हुआ है?
मानमोरी का शिलालेख – (713 ई.)
- यह शिलालेख चित्तौड़गढ़ के पास मानसरोवर झील के तट पर कर्नल जेम्स टाॅड को मिला, जिसे जेम्स टाॅड ने इंग्लैण्ड जाते समय समुद्र में फेंक दिया, उसके पास इसका अनुवाद ही बचा, जिसे उसने अपनी पुस्तक ’एनाल्स एण्ड एंटिक्वीटीज आॅफ राजस्थान’ में प्रकाशित किया।
- इसके रचयिता पुष्प व उत्कीर्णक शिवादित्य थे।
- इस शिलालेख में ’अमृत मंथन’ का उल्लेख है।
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