अजमेर का चौहान वंश – Ajmer ka Chauhan Vansh | पूरा निचोड़

आज के आर्टिकल में हम अजमेर का चौहान वंश(Ajmer ka Chauhan Vansh) के बारे में विस्तार से जानकारी देने वाले है। अजमेर के चौहान वंश का पूरा निचोड़ दिया गया है, जो आपकी तैयारी के लिए बेहतर साबित होगा।

अजमेर का चौहान वंश – Ajmer ka Chauhan Vansh

अजमेर का चौहान वंश

  • अजयराज चौहान – (1105–1130 ई.)
  • अर्णोराज / आन्नाजी – (1130–1155 ई.)
  • जग्ग्देव चौहान – (1155–1158 ई.)
  • बीसलदेव चौहान/ विग्रहराज चतुर्थ – (1158–1163 ई.)
  • अपरगांगेय – (1163–1165 ई.)
  • पृथ्वीराज द्वितीय – (1165–1169 ई.)
  • सोमेश्वर चौहान – (1169–1177 ई.)
  • पृथ्वीराज चौहान – (1177-1192 ई.)

सांभर चौहान शासक पृथ्वीराज प्रथम का पुत्र अजयराज अजमेर के चौहान वंश की नींव रखता है।

अजयराज चौहान – (1105–1130ई.)

  • अजमेर नगर- अजयराज चौहान ने 1113 ई. में अजमेर (अजयमेरू) नामक नगर बसाया और बीठली पहाड़ी पर ‘अजयमेरू दुर्ग’ (तारागढ़) _बनवाया। अजयमेरू दुर्ग’ (तारागढ़)  को विश्प हेबर ने राजस्थान का जिब्राल्टर कहा।
  • विशेष : अजमेर को राजपूताने की कुँजी,राजस्थान का ह्रदय, अण्डों की टोकरी और भारत का मक्का कहा जाता है
  • चाँदी के सिक्के- ‘श्री अजयदेव’ ‘अजयप्रिय द्रुम्स’ नाम से चाँदी के सिक्के चलाए। इनके सिक्कों पर एक तरफ लक्ष्मी का चिह्न और दूसरी तरफ ‘अजयदेव’ खुदा हुआ मिलता है।  कुछ सिक्कों पर रानी ‘सोमलवती/सोमलेखा’ का नाम भी मिलता है।
  • चौहानों की राजधानी ‘सांभर’ के स्थान पर ‘अजमेर’ को बनाया ।
  • इनका समय काल ‘चौहानों के साम्राज्य निर्माण का काल’ कहा जाता है।
  • नरवर्मन को हराया- मालवा के परमार शासक नरवर्मन को उज्जैन पर आक्रमण कर हराया व उसके सेनापति ‘सुल्हाण’ को बंदी बनाया।
  • पृथ्वीराज विजय(जयानक) के अनुसार इसने अपने राज्यकाल के प्रारम्भ में ही गजनी के मुसलमानों को हराया।
  • दिगम्बर व श्वेताम्बरों के बीच शास्त्रार्थ दंगल की अध्यक्षता की। ये जैन धर्म के अनुयायी थे।
  • अजयराज ने जीते जी राज्य का भार अर्णोराज को सौंपकर पुष्कर (कोंकण तीर्थ) के पास तपस्या करने चला गया।

आनाजी / अर्णोराज (1133-1155 ई.)

  • उपाधि: ‘परमभट्टारक महाराजधिराज परमेश्वर’
  • यह अजयराज का पुत्र था।
  • निर्माण  – आनासागर झील(अजमेर), वराह मंदिर (पुष्कर)
  • विशेष : आनासागर झील- अर्णोराज ने अजमेर में नागपहाड़ व तारागढ़ के मध्य, तुर्कों की सेना (सुल्तान बहराम के गर्वनर बाइलिम की सेना) के संहार के बाद खून से रंगी धरती को साफ करने के लिए 1135-37 ई. में ‘चन्द्रा नदी’ के जल को रोककर आनासागर झील का निर्माण करवाया ।
  • अर्णोराज अजमेर की गद्दी पर बैठा उस समय अर्णोराज व चालुक्य राजा जयसिंह के मध्य राज्य विस्तार के कारण 1134 ई. में मतभेद हुआ,दोनों के मध्य संधि हुई।
  • चालुक्य राजा ‘जयसिंह’ ने अपनी पुत्री ‘कांचन देवी’, का विवाह अर्णोराज के साथ कर दिया।
  • अर्णोराज ने तुर्कों व मालवा के शासकों को पराजित किया, मगर गुजरात के शासक कुमारपाल चालुक्य से परास्त हुआ ।
  • देवघोष और धर्मघोष – इनके दरबार मे प्रकाण्ड विद्वान थे।
  • चौहानों में पितृहंता- 1155 ई. में इसके बड़े पुत्र जग्गदेव ने अर्णोराज की हत्या कर दी।
  • अर्णोराज के चार पुत्र –  जग्गदेव (पितृहंता), विग्रहराज चतुर्थ , अपरगांगेय और सोमेश्वर थे।

बीसलदेव / विग्रहराज – IV (1158 ई.- 1163 ई.)

  • बीसलदेव अपने पिता के हत्यारे पितृहंता जग्ग्देव हटाकर शासक बना।
  • हर्षनाथ अभिलेख के अनुसार विग्रहराज चतुर्थ का शासनकाल सपादलक्ष के चौहानों का स्वर्णकाल कहलाता है।
  • कवि बान्धव- विद्वानों का आश्रयदाता होने के कारण जयानक भट्ट ने इन्हें ‘कवि बान्धव’ की उपाधि दी ।
  • इसने चालुक्य शासक कुमारपाल से पाली, नागौर व जालौर के क्षेत्र विजित किए
  • बीसलदेव ने भण्डानकों को भी पराजित किया।
  • विग्रहराज चतुर्थ ने गजनी के शासक खुशरूशाह मलिक को हराकर हिन्दु राजाओं को गजनी शासन से मुक्ति दिलाई।
  • 1157 ई. में दिल्ली के तौमर वंशीय शासक ‘तंवर’ को हराकर साम्राज्य का विस्तार किया ।
  • विग्रहराज दिल्ली पर अधिकार करने वाला प्रथम चौहान शासक था।
  • संस्कृत पाठशाला (अजमेर)- विग्रहराज ने 1153 ई. में अजमेर में एक संस्कृत पाठशाला बनवाई थी। मोहम्मद गौरी के सेनापति कुतुबद्दीन ऐबक ने इसे तुड़वाकर एक मस्जिद बनवा दी । जो राजस्थान की पहली मस्जिद कहलायी। इसे ‘अढ़ाई दिन का झोपड़ा’ कहते हैं।
  • कर्नल टॉड- “अढ़ाई दिन का झोंपड़ा हिन्दु शिल्प कला का प्राचीनतम व पूर्ण परिष्कृत नमूना है।”
  • हरिकेली नाटक (संस्कृत भाषा ) – विग्रहराज द्वारा रचित इस नाटक में महाभारत काल में हुए अर्जुन व शिव के मध्य युद्ध का उल्लेख है।
  • ‘ललित विग्रहराज’ – विग्रहराज के दरबारी विद्वान सोमदेव द्वारा रचित नाटक, जिसमें विग्रहराज एवं इन्द्रपुरी की राजकुमारी देसलदेवी के मध्य प्रेम सम्बन्धों का उल्लेख है ।
  • बीसलदेव रासो- नरपति नाल्ह द्वारा रचित है। इसने विग्रहराज चतुर्थ व परमार राजा भोज की बेटी राजमती के मध्य प्रेमकथा का उल्लेख है।
  • किलहॉर्न ने बीसलदेव की विद्वता की प्रशंसा करते हुए लिखा है कि- “वह उन हिन्दू शासकों में से एक व्यक्ति था, जो कालीदास और भवभूति की हौड़ कर सकता था।”
  • बीसलसागर तालाब- राजमहल (टोंक) के पास बीसलपुर बसाकर यहाँ बीसल सागर झील बनवाई।
  • इन्होंने दरबारी विद्वान धर्मघोष सूरी के कहने पर ‘एकादशी के दिन पशुवध पर प्रतिबन्ध लगा दिया था।

अपरगांगेय – (1163–1165 ई.)

जग्ग्देव के पुत्र पृथ्वीराज द्वितीय ने अपरगांगेय की हत्या कर दी, इसके बाद पृथ्वीराज द्वितीय शासक बना।

पृथ्वीराज द्वितीय – (1165–1169 ई.)

  • सुहवेश्वर शिव मंदिर (मेनाल) – इस शिव मंदिर का निर्माण पृथ्वीराज द्वितीय की पत्नी सुहिया देवी ने करवाया था।
  • पृथ्वीराज द्वितीय की निःसंतान मृत्यु होने पर उसका चाचा सोमेश्वर (अर्णोराज का पुत्र) शासक बना।

सोमेश्वर चौहान – (1169–1177 ई.)

  • यह अर्णोराज का सबसे छोटा पुत्र था, यह कांचन देवी का पुत्र था।
  • सोमेश्वर ने कुमारपाल के कोंकण के शत्रु ‘मल्लिकार्जुन’ को परास्त किया।
  • इसने कलचुरी की राजकुमारी ‘कर्पुर देवी’ से विवाह किया जिससे दो पुत्र ‘पृथ्वीराज तृत्तीय’ व ‘हरिराज’ हुए ।
  • सोमेश्वर ने अपने पिता अर्णोराज व स्वयं की मूर्ति बनाकर नवीन मूर्तिकला को प्रोत्साहन दिया।
  • सोमेश्वर 1177 ई. में आबू के शासक जैत्रसिंह की सहायता के लिए गया तो गुजरात के चालुक्य शासक भीम द्वितीय ने सोमेश्वर की हत्या कर दी।
  • बिजोलिया शिलालेख (1170 ई.) – सोमेश्वर के समय का है।
  • सोमेश्वर ने ‘प्रताप लंकेश्वर’ की उपाधि धारण की थी ।

पृथ्वीराज चौहान तृतीय (1177-1192 ई. )

पृथ्वीराज चौहान तृतीय का जीवन परिचय
जन्म 1166 ई.
जन्मस्थान अन्हिलपाटन (गुजरात)
पिता सोमेश्वर
माता कर्पूरीदेवी
पुत्र गोविंदराज
पत्नी संयोगिता
घोड़ा नाट्यरम्भा
संरक्षिका कर्पूरीदेवी
उपाधियाँ दल पंगुल (विश्व विजेता), राय पिथौरा, गार्जिशपति (अचूक निशानेबाज), हिन्दू सम्राट
प्रधानमंत्री कैमास/कदम्बवास
सेनापति भुवनमल
शासनकाल 1177-1192 ई.
दरबारी विद्वान पृथ्वीराज विजय, वागीश्वर, जनार्दन आशाधर, पृथ्वीभट्ट, विद्यापति गौड़, चन्दरबरदाई
  • पृथ्वीराज तृतीय 1177 ई. को मात्र 11 वर्ष की अल्पायु में अजमेर का शासक बना।
  • उनकी माता कूर्परदेवी ने एक वर्ष तक शासन संभाला और भुवनमल्ल (सेनापति) और कदम्बवास (प्रधानमंत्री) को पृथ्वीराज का संरक्षक बनाया।
  • पृथ्वीराज ने 1178 ई. में शासन की बागडोर स्वयं संभाल ली।
  • पृथ्वीराज के चचेरे भाई नागार्जुन अपनी सेना लेकर गुड़गाँव पहुँचा और गुड़गाँव पर अधिकार कर लिया। तब 1178 ई. में नागार्जुन और पृथ्वीराज तृतीय के मध्य ’गुड़गाँव का युद्ध’ हुआ। जिसमें पृथ्वीराज विजयी रहा और उसने गुड़गाँव पर पुनः अधिकार कर लिया।
  • भड़ानक सतलज प्रदेश से आई हुई एक जाति थी। ये जाति गुड़गाँव व हिसार के आस-पास थी तथा फिर आगे बढ़कर मथुरा, अलवर व भरतपुर तक आ गई थी। तब 1182 ई. ने पृथ्वीराज तृतीय ने भण्डानकों का दमन किया और उन्हें पराजित कर दिया।
  • महोबा के शासक परमार्दी देव और पृथ्वीराज के मध्य 1182 ई. में ’तुमुल का युद्ध’ हुआ। इस युद्ध में परमार्दी देव के दो वीर सेनापति आल्हा व ऊदल बड़ी बहादुरी से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हो गये।
  • गुजरात के शासक भीमदेव द्वितीय और पृथ्वीराज के मध्य आबू की परमार राजकुमारी इच्छिनी देवी को लेकर विवाद था। भीमदेव इच्छिनी से विवाह करना चाहता था, लेकिन पृथ्वीराज ने इच्छिनी से विवाह कर लिया। इसी कारण 1184 में चौहान शासक पृथ्वीराज तृतीय और चालुक्य शासक भीमदेव द्वितीय के मध्य संघर्ष हुआ।
  • पृथ्वीराज रासो के अनुसार कन्नौज के शासक जयचन्द गहड़वाह की पुत्री संयोगिता थी। पृथ्वीराज संयोगिता को अपने घोडे़ पर बैठाकर ले गया। इसी कारण इन दोनों के मध्य शत्रुता थी।
  • मोहम्मद गौरी ने तबरहिन्द पर अधिकार कर लिया। तबरहिन्द पर पृथ्वीराज अपना अधिकार जताता था। इसी कारण 1191 ई. में पृथ्वीराज चौहान तृतीय और मुहम्मद गौरी के मध्य तराइन का प्रथम युद्ध हुआ। इस युद्ध में पृथ्वीराज चौहान तृतीय विजयी हुआ।
  • मोहम्मद गौरी और पृथ्वीराज चौहान के मध्य 1192 ई. में तराइन का द्वितीय युद्ध हुआ। इस युद्ध में पृथ्वीराज की हार हुई और उसे सिरसा के नजदीक पकड़ लिया।
  • गौरी पृथ्वीराज को बंदी बनाकर गजनी ले गया। दरबार में गौरी ने पृथ्वीराज की दोनों आँखों को फुड़वा दिया। पृथ्वीराज चौहान का दरबारी कवि चंद्रबरदाई भी गजनी पहुँचा। उसने वहाँ जाकर अपने राजा की दुर्दशा को देखा और दोनों ने मुहम्मद गौरी को मारने का निर्णय लिया।

इसी संबंध में चंद्रबरदाई ने यह दोहा बोला –

’’चार बाँस चौबीस गज, अष्ट अंगुल प्रमाण।
तां ऊपर सुल्तान है, मत चुके चौहान।।’’

इसे सुनकर पृथ्वीराज तृतीय ने ’शब्दभेदी बाण’ चलाकर गौरी की हत्या कर दी।

निष्कर्ष :

आज के आर्टिकल में हमनें अजमेर का चौहान वंश(Ajmer ka Chauhan Vansh) विस्तार से पढ़ा। हमनें पुरे टॉपिक को अच्छे से कवर किया, हम आशा करतें है कि आप हमारे प्रयास से संतुष्ट होंगे …..धन्यवाद

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