अकबर(Akbar) का जन्म 15 अक्टूबर 1542 ई. को सिंध के उमरकोट किले के राणा वीरसाल (अमरसाल) के महल में हुआ था। अकबर का पूरा नाम जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर था। अकबर(Akbar History in Hindi) का शासनकाल 1556-1604 तक रहा। अकबर के पिता का नाम हुमायूं और माता का नाम हमीदा बानो बेगम था। अकबर का पूरा नाम ’अब्दुल फतेह जलालउददीन मुहम्मद अकबर’ था। अकबर के बचपन का नाम जलालुद्दीन मोहम्मद था।
अब हम आर्टिकल में हम मुगल सम्राट अकबर(Akbar History in Hindi) के बारे में विस्तार से जानकारी देने वाले है।
अकबर का जीवन परिचय- Akbar Biography in hindi
अकबर का जीवन परिचय – Akbar Biography in hindi | |
पूरा नाम | जलालउद्दीन मुहम्मद अकबर |
जन्म | 15 अक्टूबर 1542 ई. |
जन्मस्थान | अमरकोट, सिन्ध (पाकिस्तान) |
मृत्यु | 27 अक्टूबर, 1605 |
मृत्यु स्थान | फतेहपुर सीकरी, आगरा |
मकबरा | सिकन्दरा, आगरा |
पिता | हुमायूँ |
माता | हमीदा बानो बेगम |
पत्नी | रुकैया बेगम, सलीमा सुल्तान, मरियम उज जमानी, जोधाबाई |
पुत्री | खानुम सुल्तान, मेहरुननिशा बेगम, शक्र उन निशां बेगम, आराम बानो बेगम |
पुत्र | सलीम (जहांगीर), मुराद मिर्जा और दानियाल मिर्जा |
शिक्षक | पीर मोहम्मद, अब्दुल लतीफ ईरानी और बैरम खां |
शासनकाल | 27 जनवरी, 1556 से 27 अक्टूबर, 1605 ई. |
राज्याभिषेक | 16 फरवरी, 1556 कलानपुर के पास गुरदासपुर |
राजधानी | फतेहपुर सीकरी, आगरा (दिल्ली) |
धर्म | इस्लाम, दीन-ए-इलाही |
उत्तराधिकारी | जहाँगीर |
अकबर का प्रारम्भिक जीवन – Akbar ka Prarambhik Jivan
अकबर का जन्म मुगल साम्राज्य के राजवंश में हुआ। अकबर को बदरूद्दीन अकबर, अकबर ए आजम, बादशाह और महाबली शहंशाह के नाम से ख्याति प्राप्त थी। अकबर का पितृ पक्ष तैमूर वंश और मातृ पक्ष मंगोल के कुख्यात शासक चंगेज खान के वंश से सम्बन्ध रखता था।
अकबर के जन्म के समय शेरशाह सूरी के डर के कारण उसके पिता और माता ने उमरकोट महल में शरण ली थी और अकबर को वह अपने संग नहीं लेकर गये, वरन् रीवां (वर्तमान मध्यप्रदेश) के राज्य के एक ग्राम मुकुंदपुर में छोड़ गये। वहीं अकबर का बचपन बीता। वहां के राजकुमार रामसिंह प्रथम थे, जिनसे अकबर की गहरी मित्रता हुई।
कुछ दिनों तक वह कंधार में और फिर बाद में काबुल में रहा। छोटी उम्र में ही वह अन्य राजकुमारों की तुलना में अधिक समझदार और फुर्तीला था। उसका मन पढ़ाई-लिखाई में बिलकुल नहीं लगा। वह कुश्ती, दौड़, आखेट, तलवारबाजी आदि कलाओं में निपुण था। अकबर मुगल वंश का तीसरा शासक था।
अकबर की शिक्षा
अकबर एक कुशल योद्धा था, परंतु शिक्षा को लेकर अकबर के जीवन में काफी अस्थिरताएं आई। 8 वर्ष की आयु होने तक भी उनको अक्षर ज्ञान नहीं था और उनकी शिक्षा-दीक्षा का सही प्रबंध नहीं हो पाया। जब हुमायूं का ध्यान इस ओर गया तब उसने अकबर की शिक्षा प्रारंभ करने के लिए काबुल में एक आयोजन किया।
समारोह में मुल्ला जादा मुल्ला असमुद्दीन अब्राहीम को अकबर का शिक्षक चुना गया। लेकिन उसी दिन अकबर रास्ता भटक कर उस समारोह में नहीं पहुंच पाया और वह समारोह दूसरे दिन सम्पन्न हुआ। उसको तालीम देने में पहले शिक्षक तो असफल रहे। तब यह कार्य पहले मौलाना बामजीद को सौंपा गया, परंतु जब उनको भी सफलता नहीं मिली तो मौलाना अब्दुल कादिर को यह कार्य सौंपा गया। परंतु वह भी अकबर को शिक्षित करने में असफल हुए।
अकबर को हमेशा ही नई चीजों को सीखने में रुचि और उत्सुकता रहती थी, परंतु पढ़ने-लिखने में उनको बिल्कुल भी रुचि नहीं थी। उनकी घुड़सवारी, कबूतर बाजी, शिकार, संगीत इत्यादि में अधिक रुचि थी।
अकबर का राज्याभिषेक
जब अकबर की आयु 9 वर्ष की थी, तब उसे 1551 ई. में गजनी की सूबेदारी सौंपी गई। 13 वर्ष की आयु में अकबर का राज्याभिषेक हो गया। 13 वर्ष की आयु में ही अकबर का राज्याभिषेक/राजतिलक 14 फरवरी 1556 ई. को बैरम खां द्वारा पंजाब में गुरदासपुर के ’कलानौर’ नामक स्थान पर किया गया था। इसी समय अकबर ने ’शहंशाह’ की उपाधि धारण की तथा बैरम खां को ’खान-ए-खाना’ की उपाधि प्रदान कर अपना प्रधानमंत्री नियुक्त किया था।
अकबर का विवाह
अकबर की शादी नवंबर 1551 में उनके चाचा हिन्दाल मिर्जा की बेटी रुकैया सुल्तान बेगम से हुई। सिंहासन पर आसीन होने के बाद वह उनकी मुख्य पत्नी बन गई।
अकबर का शासनकाल – Akbar History in Hindi
सन् 1560 ईस्वी में जब अकबर अपने प्रशासन को संभालने में अच्छी तरह सक्षम हो गया तब उसने अपने सबसे प्रिय संरक्षण बैरम खां को गुप्त रूप से मरवा दिया। उसने सत्ता में आने के बाद अपनी कुशलता से उदारवादी नीति अपनाते हुए सभी हिंदू राजाओं को अपनी ओर आकृष्ट कर लिया। उसको इस बात का पता चल गया कि अब तक जितने भी मुगल शासक आए, उन्होंने शस्त्रों के बल पर हिंदुस्तान को जीता।
उसने अस्त्र के साथ गैर मुसलमानों के विश्वास को हासिल करने के लिए 1563 में हिंदुओं के तीर्थ स्थलों पर लगे ’जजिया कर’ को समाप्त करके एक बड़े भाग में शासन कर रहे राजपूत राजाओं अपने क्षेत्र में सम्मिलित कर लिया।
अकबर ने अपने प्रशासन में जबरदस्ती धर्म परिवर्तन करवाने वालों का विरोध किया और हिंदुओ पर लगने वाले अनेक करों को भी समाप्त कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप मुसलमान और गैर मुसलमान दोनों ही अकबर के प्रशासन को स्वीकार करते थे।
अकबर ने अपने प्रशासन में राजधानियों का स्थानांतरण किया। 1571 ई. में अकबर ने अपनी राजधानी आगरा से फतेहपुर सीकरी में स्थानांतरित की और अपनी राजधानी फतेहपुरी सीकरी को बनाया। पानीपत के द्वितीय युद्ध के बाद उसने मालवा गुजरात, काबुल, बंगाल, कश्मीर और खानदेश को मुगल साम्राज्य में सम्मिलित कर लिया।
अकबर का राज्य विस्तार – Akbar History in Hindi
अकबर के समय मुगल साम्राज्य केवल काबुल से दिल्ली तक ही विस्तरित था। अकबर मुगल काल का शक्तिशाली शासक था, उसने शेरशाह सूरी को पराजित कर दिया। उसने दिल्ली पर अपना पुनः अधिकार करने के उद्देश्य से अपने राज्य का विस्तार करना शुरू कर दिया।
उसने मालवा को 1562 में, गुजरात को 1572 में, बंगाल को 1574 में, काबुल को 1581 में, कश्मीर को 1586 में और खानदेश को 1601 में मुगल साम्राज्य के अधीन कर लिया। इन राज्यों में उसने एक-एक राज्यपाल नियुक्त किया।
दिल्ली मुगल साम्राज्य से काफी दूर था और अकबर नहीं चाहता था कि मुगल साम्राज्य का केन्द्र दिल्ली जैसे दूरस्थ शहर में हो, इसलिए उसने अपने साम्राज्य की राजधानी फतेहपुरी सीकरी को बनाया, जो मुगल साम्राज्य के मध्य में थी। किंतु कुछ समय बाद अकबर को अपनी राजधानी फतेहपुर सीकारी से हटानी पड़ी। इसके बाद उसने एक चलित दरबार बनाया जो पूरे साम्राज्य का दौरा करता था इस प्रकार संपूर्ण साम्राज्य पर उसकी निगरानी रहती थी।
1585 में उत्तर पश्चिमी राज्य के सुचारू राज्य पालन के लिए उसने लाहौर को राजधानी बनाया। अकबर ने अपनी मृत्यु से पूर्व 1599 में आगरा को वापस राजधानी बनाया और अंत तक यहीं से शासन संभाला।
हल्दीघाटी का युद्ध
18 जून 1576 में हल्दीघाटी का युद्ध मुगल बादशाह अकबर और मेवाड़ के राजा महाराणा प्रताप के बीच हुआ। इतिहास में होने वाले सबसे महत्वपूर्ण युद्ध में से यह युद्ध एक था। अकबर ने अपने साम्राज्य का पूरे हिंदुस्तान में विस्तार किया और शासन किया, लेकिन मेवाड़ जहां पर महाराणा प्रताप जैसी शक्तिशाली योद्धा थे, वहां पर उसका शासन नहीं था। उसने मेवाड़ को जीतने के लिए कई प्रयास किये लेकिन वह असफल हुआ। अकबर और महाराणा प्रताप के बीच ’हल्दीघाटी’ के मैदान में घमासान युद्ध हुआ।
अकबर की सेना अपने 10000 सैनिकों, हाथी, घोड़ों आदि के साथ युद्ध के मैदान में उतरी। अकबर की सेना का नेतृत्व आमेर के राजा मानसिंह कर रहे थे। महाराणा प्रताप अपने केवल 3000 घुड़सवार और 400 भील धनुर्धारियों के साथ गोगंुदा के निकट हल्दीघाटी के मैदान में पहुंचे। जहां पर दोनों के बीच घमासान युद्ध हुआ। महाराणा प्रताप ने बड़ी बहादुरी से अकबर का मुकाबला किया। परंतु युद्ध के अंत में वे जख्मी हो गए, जिस वजह से उन्हें युद्ध रण से किसी सुरक्षित स्थान पर ले जाना पड़ा।
पानीपत का द्वितीय युद्ध
अकबर जब मुगल सिंहासन पर आसीन हुआ, तब उसके साम्राज्य में काबुल, कंधार, दिल्ली और पंजाब शामिल कर लिया। परंतु चुनार का अफगान सुल्तान मोहम्मद आदिल शाह भारत के सिंहासन पर बैठना चाहता था और उसने मुगलों के खिलाफ युद्ध छेड़ने की योजना बनाई। हूमायूं की मृत्यु के बाद उनके हिंदू सेनानायक सम्राट हेमचंद्र/ हेमू ने 1556 ई. में अफगान सेना को दिल्ली और आगरा पर अधिकार करने के लिए नेतृत्व प्रदान किया।
हेमू का मूल नाम हेमचंद्र था और वह रेवाड़ी का निवासी था। सूर वंश के शासक आदिल शाह ने हेमू को अपना वजीर तथा सेनापति नियुक्त किया था और हेमू ने पानीपत के युद्ध से पहले आगरा और दिल्ली पर अधिकार कर विक्रमादित्य की उपाधि धारण की थी। हेमू को दिल्ली की गद्दी पर बैठने वाला अंतिम हिंदू शासक माना जाता है।
मुगल सेना अपमान के साथ पराजित हुई और वह शीघ्र ही अपने नेता कमांडर तारदी बेग के साथ चली गई। हेमचंद्र विक्रमादित्य 7 अक्टूबर, 1556 को गद्दी पर आसीन हुआ। 350 वर्ष के मुस्लिम साम्राज्यवाद के बाद उसने उत्तर भारत में हिंदू शासन की स्थापना की।
अकबर को उसके संरक्षक बैरम खां ने दिल्ली पर पुनः अधिकार करने का निर्देश दिया और वह उसके निर्देश पर अकबर ने युद्ध की घोषणा कर दी। 5 नवंबर 1556 ई. में पानीपत का द्वितीय युद्ध अकबर और हेमू के मध्य हुआ था, जिसमें अकबर की विजय हुई परंतु अकबर ने जीत का श्रेय बैरम खां को दिया। हेमू की सेना अकबर की सेना से बहुत विशाल थी और उसको देशी हिंदू और अफगान शासकों का समर्थन प्राप्त हुआ था। बैरम खां ने मुगल सेना का पीछे से नेतृतव किया। कुशल जनरलों को आगे, दाएं और बांए किनारों पर व्यवस्थित किया।
अकबर को उसके रीजेंट द्वारा सुरक्षित रखा गया। युद्ध के शुरूआत में तो हेमू की सेना की स्थिति अच्छी थी, लेकिन बैरम खां और एक अन्य सेनापति अली कुली खान ने अचानक युद्ध की रणनीति में बदलाव कर दिया, उन्होंने मुगल सेना पर प्रभाव जमा लिया। हेमू हाथी पर सवार था, जब उसकी आंख पर तीर लगा तो उसका हाथी चालक अपने घायल मालिक को युद्ध के मैदान से दूर ले गया।
मुगल सैनिकों ने हेमू का पीछा किया, उसे पकड़कर अकबर के सामने लाया गया। जब अकबर को शत्रु नेता का सिर काटने के लिए कहा गया तो अकबर ऐसा नहीं कर पाया और बैरम खान ने हेमू को मार डाला। इस तरह मुगलों की निर्णायक जीत हुई।
31 जनवरी 1560 ई. को मक्का की तीर्थ यात्रा के दौरान गुजरात के पाटन नामक स्थान पर मुबारक खां नामक युवक ने बैरम खां की हत्या कर दी थी। बैरम खां की हत्या के थोङे दिनों बाद अकबर ने उसकी पत्नी सलीमा बेगम से निकाह किया और उसके पुत्र अब्दुल रहीम का पालन पोषण किया। बाद में यही अब्दुल रहीम को अकबर के द्वारा ’खान-ए-खाना’ की उपाधि प्रदान की गई।
बैरम खां 1556 से 1560 ई. तक अकबर का संरक्षक रहा और अकबर बैरम खां को प्यार से ’खान बाबा’ कहता था। अकबर की प्रधान धाय माता ’माहम अनगा’ थी। बैरम खां की मृत्यु के बाद उसने माहम अनगा और उनके दामाद शिहाबुद्दीन को वकील नियुक्त किया।
अकबर की विजय – Akbar ki Vijay
प्रथम अभियान (1561 ई.) –
अकबर ने पहला अभियान 1561 ई. में मालवा के शासक बाजबहादुर के विरुद्ध किया था। मुगल सेना की तरफ से इस अभियान का नेतृत्व आधम माँ, पीर मुहम्मद अब्दुल्ला खाँ उजबेग था। इस अभियान में बाजबहादुर की हार हुई। बाजबहादुर ने अकबर की अधीनता स्वीकार कर ली। अकबर के शासनकाल में आमेर के राजा भारमल थे जो कछवाहा राजपूत थे और अपने भतीजे सुजा से बहुत परेशान थे। इसी कारण उन्होेंने अपनी पुत्री हरकाबाई का विवाह 1562 ई. में अकबर से किया था।
दूसरा अभियान (1561 ई.) –
- अकबर का दूसरा अभियान चुनार की ओर था। मुगल सेना का नेतृत्व आसफ खाँ ने किया।
- 1562 ई. में ही अकबर ने शरीफ उद दीन के नेतृत्व में मेड़ता के राजा जयमल राठौड़ के विरुद्ध सेना भेजी। राजपूतों ने बहादुरी के साथ मुकाबला किया परंतु वे पराजित हो गए और मेड़ता पर मुगलों का अधिकार हो गया।
- 1563 ई. में अकबर ने ’तीर्थ यात्रा कर’ को खत्म कर दिया।
तीसरा अभियान –
- 1564 ई. में आसफ खां के नेतृत्व में अकबर ने गढ़कटंगा के विरुद्ध सेना भेजी। उस दौरान गोंडवाना के शासक वीरनारायण थे परंतु राज्य की वास्तविक शक्ति उसकी मां रानी दुर्गावती के नेतृत्व में थी। दोनों सेनाओं के मध्य ’चौरागढ़’ नामक स्थान पर युद्ध हुआ परंतु इस युद्ध में आसफ खां विजयी हुआ और रानी दुर्गावती ने आत्महत्या कर ली।
चौथा अभियान (1562-1570 ई.) –
- 1562 ई. में आमेर के शासक भारमल ने स्वेच्छा से अधीनता स्वीकार कर ली।
- 1564 ई. में अकबर ने जजिया कर को खत्म कर दिया।
- 1568 ई. में अकबर ने मेवाड़ के राजा राणा उदयसिंह के विरुद्ध अभियान किया। उसने चित्तौड़ के किले के पास अपना शिविर लगाया और बहुत दिनों त कवह युद्ध की प्रतीक्षा करता रहा, किंतु उदयसिंह ने चित्तौड़ का शासन तो जयमल एवं फतेहसिंह को सौंप दिया और स्वयं पहाड़ियों में चले गए। इसी कारण अकबर को क्रोध आ गया और उसने किले पर आक्रमण करने का आदेश दिया।
- अकबर की सेना ने किले में प्रवेश किया और 30 हजार से अधिक सिसोदिया राजपूत सैनिकों को मार दिया। इस युद्ध में अकबर विजयी हुआ और चित्तौड़ का शासन आसफ खां को सौंप दिया। 30 अगस्त 1569 ई. को हरकाबाई (जोधाबाई) के गर्भ से सलीम का जन्म हुआ और इसी दौरान अकबर ने जोधाबाई को ’मरियम उज जमानी’ की उपाधि प्रदान की।
- 1569 ई. में अकबर ने रणथम्भौर के विरुद्ध अभियान के लिए प्रस्थान किया और उसी दौरान रणथम्भौर के राजा सूरजन राय थे। सुरजन राय ने मुगल सेना का मुकाबला किया परंतु राजा भगवानदास और मानसिंह के आग्रह पर सुरजनराय ने आत्मसमर्पण कर दिया और अकबर की शाही सेवा में भर्ती हो गए। सुरजन राय एकमात्र राजपूत थे जिसे अकबर ने वाद्ययंत्र बजाने की छूट दे रखी थी।
- 1569 ई. में ही अकबर ने मजनू खां काकशाह के नेतृत्व में कालिंजर के विरुद्ध सेना भेजी और उस समय कालिंजर के राजा रामचंद्र थे। रामचंद्र ने मुगल सेना के सामने आत्मसमर्पण कर दिया और अकबर ने मजनू खां काकशाह को कालिंजर का सूबेदार नियुक्त किया।
- 1570 ई. में मारवाड़ के शासक चंद्रसेन से ही अकबर की अधीनता स्वीकार कर ली।
- 1570 ई. में जैसलमेर के शासक हरराय ने स्वेच्छा से अकबर की अधीनता स्वीकार कर ली।
- 1570 ई. में बीकानेर के शासक राय कल्याणमल ने अकबर की अधीनता स्वेच्छा से स्वीकार कर ली।
पांचवां अभियान (1571-72 ई.) –
1572 ई. में अकबर ने गुजरात के विरुद्ध अभियान किया, उसी दौरान गुजरात का शासक मुजफ्फर शाह तृतीय था। उसने बिना युद्ध किए ही अकबर की अधीनता स्वीकार कर ली। इसी दौरान अकबर ने सबसे पहले समुद्र को देखा था। गुजरात विजय के उपरांत अकबर ने अब्दुल रहीम को ’खान ए खाना’ की उपाधि प्रदान की और इसी समय राजा टोडरमल ने अपना पहला ’भूमि बंदोबस्त’ गुजरात में किया।
छठा अभियान (1574-76 ई.) –
- 1575 ई. में अकबर ने बिहार को मुगल साम्राज्य में सम्मिलित किया और उस समय बिहार का शासक दाऊद खां था।
- 1575 ई. में ही उसने ’इबादत खाने’ की स्थापना की।
- 1576 ई. में अकबर ने मुगल साम्राज्य में बंगाल को सम्मिलित कर लिया।
- 1576 ई. में अकबर ने राजा मानसिंह को सेनापति और आसफ खां को उप सेनापति एवं मीर बख्शी को सेना अध्यक्ष बनाया। उसने अजमेर में अस्थाई मुख्यालय भी इसी समय बनाया।
- 1576 ई. में अकबर ने मानसिंह और आसफ खां के नेतृत्व में एक सेना मेवाड़ के लिए भेजी और उस समय मेवाड़ की राजधानी कुंभलगढ़ में थी यहां के राजा राणा प्रताप थे।
- 18 जून 1576 ई. को गोगुंडा के निकट हल्दीघाटी के मैदान में राणा प्रताप और मुगल सेना के मध्य युद्ध हुआ और इस युद्ध में राणा प्रताप के सेनापति हातिम खां सूर थे परन्तु इस युद्ध में राणा प्रताप ही हार हुई। उन्होंने घायल अवस्था में अरावली की श्रेणियों में शरण ली। जहां पर भील जनजाति के लोगों ने उनकी मदद की। हल्दीघाटी युद्ध का आंखो देखा वर्णन बदायूंनी ने अपनी पुस्तक ’मुन्तखाब उत तवारीख’ में किया है।
- 1579 ई. में अकबर ने मजहर की घोषणा की। शेख मुबारक ने इस मजहर पत्र का प्रारूप तैयार किया था। अकबर के दीवान राजा टोडरमल ने
- 1580 ई. में ’दहसाल बंदोबस्त व्यवस्था’ को लागू किया था।
सातवा अभियान (1581 ई.) –
- 1581 ई. में अकबर ने मानसिंह के नेतृत्व में काबुल के विरुद्ध सेना भेजी और उस समय काबुल पर हकीम मिर्जा का शासन था। हकीम मिर्जा काबुल छोड़कर भाग गया और अकबर ने उसकी बहन बख्तुन्निसा बेगम को काबुल का सूबेदार बनाया। इसी अभियान के दौरान अकबर ने सिंधु नदी के किनारे सिन्ध सागर नामक एक किले का निर्माण करवाया था।
- 1583 ई. में अकबर ने एक नया संवत ’इलाही संवत’ जारी किया।
- 1585 ई. में अकबर ने अपनी दूसरी राजधानी लाहौर में बनाई। 1585 ई. में ही अफगान, बलूचियों और यूसुफजाईयों ने विद्रोह किया और इस विद्रोह को बीरबल ने दबाया था, उसी दौरान उसकी मृत्यु हो गई थीं तब मानसिंह और टोडरमल ने इस विद्रोह को दबाया।
आठवां अभियान (1586 ई.) –
- 1586 ई. में अकबर ने भगवानदास और कासिम खां के नेतृत्व में कश्मीर के लिए सेना भेजी और उस समय कश्मीर का शासक युसूफ खान था। मुगल सेना ने कश्मीर पर अधिकार कर लिया।
नौवां अभियान (1591 ई.) –
- 1591-1593 ई. में अकबर ने अब्दुल रहीम खान ए खाना के नेतृत्व में सिंध के लिए सेना भेजी और उस समय सिंध का शासक मिर्जा जानी वेग था परंतु उसने मुगल सेना के सामने आत्मसमर्पण कर दिया।
दसवां अभियान (1592 ई.) –
- 1592 ई. में अकबर ने मानसिंह के नेतृत्व में उड़ीसा अभियान के लिए सेना भेजी। उस समय उड़ीसा का शासन निसार खान के हाथों में था। निसार खां मुगल सेना से पराजित हुआ और उसने आत्मसमर्पण कर दिया।
ग्याहरवां अभियान (1595 ई.) –
- 1595 ई. में अकबर ने मीर मासूम के नेतृत्व में बलूचिस्तान के शासक पन्नी अफगान के विरुद्ध सेना भेजी और मुगल सेना ने बलूचिस्तान पर अधिकार कर लिया।
बारहवां अभियान (1595 ई.) –
- 1595 ई. में ही अकबर ने अब्दुर्रहीम खाने खाना के नेतृत्व में कंधार के शासक मुजफ्फर हुसैन के विरुद्ध सेना भेजी किंतु मुजफ्फर हुसैन के विरुद्ध सेना भेजी किंतु मुजफ्फर हुसैन ने मुगल सेना के सामने आत्मसमर्पण कर दिया और अकबर ने शाहबेग को कंधार का प्रशासक नियुक्त किया।
तेरहवां अभियान –
- अकबर ने 1591 ई. में खानदेश को मुगल साम्राज्य का हिस्सा बनाया था।
- 1599 ई. में अकबर ने दौलताबाद को मुगल साम्राज्य में सम्मिलित कर लिया और दौलताबाद का शासन उस समय चांद बीबी संभाल रही थी। अब्दुल फजल की हत्या ओरछा के सरदार वीरसिंह बुंदेला ने की।
- 1600 ई. में अहमदनगर को अकबर ने मुगल साम्राज्य में सम्मिलित किया और वहां का शासन बहादुर शाह और चांद बीबी ने संभाल रखा था।
अकबर का अंतिम अभियान असीरगढ़ के शासक मीरन बहादुर के विरुद्ध था। - अकबर ने अपनी दक्षिण विजय और गुजरात विजय के दौरान फतेहपुर सीकरी में ’बुलंद दरवाजा’ का निर्माण करवाया था और इसी उपलब्धि में उसने दक्षिण के ’बादशाह की उपाधि’ धारण की।
अकबर की धार्मिक नीति – Akbar ki Dharmik Niti
हिंदू धर्म – अकबर को आचार्य पुरुषोत्तम और देवी ने हिंदू धर्म के बारे पूरी जानकारी प्रदान की और उसने दिवाली, होली आदि त्योहारों में भाग लिया।
ईसाई धर्म – अकबर ईसाई धर्म के सिद्धांत – नैतिकता, दया एवं प्रेम के कारण ही ईसाई धर्म की ओर आकर्षित हुआ। उसने तीन ईसाई मिशनरियों को ईसाई धर्म का प्रचार-प्रसार करने की आज्ञा दी।
पारसी धर्म – अकबर ने 1578 ई. में सूरत के पारसी पुरोहित दस्तूर जी मेहर जी राणा से मुलाकात की। उसने पारसी धर्म से प्रभावित होकर अकबर ने सूर्य, अग्नि और प्रकाश के प्रति पूजा भाव प्रकट करने लगा और उसने झरोखा दर्शन, तुलादान जैसी पारसी परंपराओं की शुरूआत की।
जैन धर्म – अकबर की जैन धर्म के प्रति भी गहरी आस्था थी, इसीलिए उसने जैन आचार्य हरि विजय सूरि को जगतगुरु की उपाधि और जिन चंद्र सूरी को ’युग प्रधान की उपाधि’ से अलंकृत किया।
अकबर ने जैन धर्म से प्रभावित होकर पशु-पक्षियों के वध पर रोक लगा दी।
दीन ए इलाही धर्म – अकबर ने हिन्दू-मुस्लिम संप्रदायों के बीच की दूरियां कम करने के लिए ’दीन-ए-इलाही’ धर्म की स्थापना की। इस्लाम धर्म के प्रति अकबर की सहानूभुति नहीं थी इसी कारण उसने 1582 ई. में एक नए धर्म ’दीन ए इलाही’ की स्थापना की। इस धर्म का प्रधान पुरोहित अकबर था और इसका पूरा वर्णन ’आईन ए अकबरी’ में मिलता है। बीरबल ने सबसे पहले हिंदुओं में ’दीन-ए-इलाही’ धर्म को स्वीकार किया।
दीन ए इलाही धर्म की सदस्यता –
सभी धर्म के लोगों को दीन ए इलाही धर्म की सदस्यता ग्रहण करने की अनुमति थी और इस धर्म की सदस्यता केवल रविवार को ली जाती थी क्योंकि जो भी इस धर्म की सदस्यता ग्रहण करता, उस व्यक्ति को अकबर के सामने बैठकर अपनी पगड़ी उसके चरणों में रखनी पड़ती थी। इस धर्म के लोग आपस में मिलते समय ’अल्लाह ओ अकबर’ तथा ’जल्ले जलालहू’ बोलते थे।
दीन ए इलाही धर्म के सिद्धांत –
- अकबर के आदेश के अनुसार आचरण मानना।
- अकबर को अपना आध्यात्मिक गुरु मानना।
- शाकाहारी भोजन करना।
- दानता और दानशीलता।
- सांसारिक इच्छा का परित्याग।
- विशुद्ध नैतिक जीवन व्यतीत करना।
- ईश्वर से प्रेम तथा उसकी एकात्मकता के प्रति समर्पण।
- मधुर भाषण वाला होना।
अकबर की साहित्य व कला में रुचि
अकबर एक महान मुगल सम्राट था, साथ ही उसकी रूचि साहित्य एवं कलाओं में भी थी। अकबर के नौ रत्नों में से एक अबुल फजल ने ’आइन-ए-अकबरी’ नामक रचना में अकबर के साहित्य एवं कला प्रेम को प्रदर्शित किया है। अकबर ने एक से एक बढ़कर कलाकारों को अपने दरबार में स्थान दिया तथा उन्हें सम्मानित किया।
उसकी संगीत में काफी दिलचस्पी थी, इसी वजह से उसने मियां तानसेन को अपने दरबारी संगीतकार के रूप में रखा। अकबर कला प्रेमी भी था।
- अकबर के दरबारी संगीतकार – बाज बहादुर, तानसेन, बैजू बावरा
- अकबर के दरबारी चित्रकार – दसवंत, अब्दुर समद और बसावन।
अकबर द्वारा किये हुए कार्य
- अकबर ने सती प्रथा पर रोक लगाने का प्रयत्न किया परंतु उसे सफलता नहीं मिली।
- अकबर ने बहुविवाह पर प्रतिबंध लगाया तथा विधवा विवाह को प्रोत्साहित किया।
- अकबर के शासनकाल में राजस्व की ’जब्ती प्रणाली’ प्रचलित थी।
- 1562 ई. में उसने दास प्रथा पर रोक लगा दी। 1583 ई. में अकबर ने एक नया कैलेंडर ’इलाही संवत’ जारी किया था।
- लड़कों के विवाह की न्यूनतम आयु 16 वर्ष और लड़कियों के विवाह की न्यूनतम आयु 14 वर्ष निर्धारित की गई।
अकबर के नवरत्न – Akbar ke Navratna
- बीरबल
- अबुल फजल
- अब्दुल रहीम खान ए खाना
- फकीर अजीउद्दीन
- अबुल फजल
- टोडरमल
- तानसेन
- फैजी
- मानसिंह
- मुल्ला दो प्याजा।
अकबर की स्थापत्य कला
अकबर ने अनुवाद विभाग की स्थापना करवाई वहां पर शेख सुल्ताना, अब्दुल कादिर बदायूंनी और नकीब खान मिलकर धार्मिक ग्रंथों का फारसी में अनुवाद किया करते थे। रामायण और महाभारत का फारसी भाषा में अनुवाद ’रज्मनामा’ के नाम से किया गया।
अबुल फजल ने पंचतंत्र का फारसी में अनुवाद ’अनवर ए सादात’ के नाम से किया। फैजी ने ’नल दमंयती’ का फारसी में ’सहेली’ के नाम से अनुवाद किया। अकबर के शासनकाल को ’हिंदी साहित्य का स्वर्ण काल’ माना जाता है। अकबर को नगाड़ा नामक वाद्ययंत्र बजाने का शौक था।
अकबर ने 1575 ई. में फतेहपुरी सीकरी में इबादतखाने की स्थापना की। फतेहपुरी सीकरी में अकबर ने बुलंद दरवाजा बनवाया।
अकबर के शासनकाल में आगरा का लाल किला, लाहौर का किला, इलाहाबाद का किला, दिल्ली में हुमायूं का मकबरा, फतेहपुर सीकरी में शाही महल, दीवान ए खास, दीवान ए आम, पंचमहल, बुलंद दरवाजा, जोधाबाई का महल और इबादत खाना आदि का निर्माण किया गया।
अकबर की मृत्यु – Akbar ki Mrityu
3 अक्टूबर 1605 में अकबर किसी बीमारी से ग्रसित हो गया, उसके बाद उसका स्वास्थ्य ठीक नहीं हो पाया। 27 अक्टूबर 1605 में अकबर की मृत्यु हो गई। उसको आगरा के निकट सिकंदरा के मकबरे में दफनाया गया।