हाड़ौती के चौहान – Hadoti ke Chauhan | पूरी जानकारी

आज के आर्टिकल में हम हाड़ौती के चौहान(Hadoti ke Chauhan) के बारे में विस्तार से जानकारी देने वाले है। हाड़ौती के चौहान वंश का पूरा निचोड़ दिया गया है, जो आपकी तैयारी के लिए बेहतर साबित होगा।

Hadoti ke Chauhan – हाड़ौती के चौहान

राजस्थान का दक्षिण पूर्वी भाग हाड़ौती कहलाता है। यह हाड़ा चौहानों द्वारा शासित था, इसलिए यह हाड़ौती कहलाया। इसमें बूँदी और कोटा राज्य के भाग शामिल थे।

बूँदी के चौहान

  • देवीसिंह हाड़ा
  • समरसिंह
  • नरपाल सिंह
  • हम्मीर
  • वीरसिंह
  • राव सुर्जन
  • राव भोज
  • राव रतनसिंह
  • राव छत्रसाल
  • राव भावसिंह
  • राव अनिरुद्ध सिंह
  • राव बुद्ध सिंह
  • राव दलेलसिंह
  • राव उम्मेद सिंह
  • राव अजीत सिंह
  • राव उम्मेद सिंह
  • राव विष्णुसिंह
  • राव रामसिंह
  • राव बहादुर सिंह

देवीसिंह हाड़ा (1241-1243 ई.)

  • बूँदी के हाड़ा वंश का संस्थापक देवीसिंह हाड़ा था।
  • देवीसिंह प्रारम्भ में मेवाड़ के अधीन बम्बावदे का ठिकानेदार था। उसने बूँदीवाटी के अधिपति जैता मीणा को पराजित कर 1241 ई. में बूँदी में अपनी राजधानी स्थापित की।
  • इन्होंने गंगेश्वरी देवी का मन्दिर और अमरथूण में एक बावड़ी का निर्माण करवाया।

समरसिंह

  • समरसिंह ने 1264 ई. में कोटिया शाखा के भीलों को हरा दिया, कोटा पर अपना अधिकार कर लिया और अपने पुत्र जैत्रसिंह को दे दिया।
  • जैत्रसिंह ने कोटा में किले का निर्माण करवाया तथा प्रसिद्ध गुलाब महल बनवाया।

बरसिंह

  • बरसिंह ने 1354 ई. में बूँदी के तारागढ़ दुर्ग का निर्माण करवाया था।
  • बरसिंह अयोग्य शासक था। इसी कारण अनेक शक्तियाँ बूँदी के विरुद्ध उठ खड़ी हुई।
  • इनके शासनकाल में महाराणा लाखा ने बूँदी पर आक्रमण कर हाड़ौती राज्य के बम्बावदा और माण्डलगढ़ इलाके छिन लिये।
  • महमूद खिलजी ने माण्डू से आकर 3 बार बूँदी पर आक्रमण किये। 1459 ई. में अंतिम आक्रमण में वीरसिंह मारा गया।

हम्मीर

  • राणा हम्मीर के समय मेवाड़ के राणा लाखा ने बूँदी को जीतने की कोशिश की, परन्तु वह असफल रहे।

राव सुर्जन (1554-1585 ई.)

  • राव सुर्जन के शासनकाल से पहले बूँदी के शासक मेवाड़ के अधीन थे। उन्होंने मेवाड़ से सम्बन्ध विच्छेद करके अपनी स्वतंत्र सत्ता स्थापित की और रणथम्भौर दुर्ग पर अधिकार कर लिया।
  • अकबर ने 1569 ई. में रणथम्भौर पर घेरा डाला, तब सुर्जन हाड़ा ने अकबर की अधीनता स्वीकार कर ली। अकबर ने उसे ’राव राजा’ की उपाधि तथा 5 हजार का मनसब दिया। इस सम्मान के अतिरिक्त उसे बूंदी व बनारस के निकट 26-26 परगने भी दिए गए।
  • अकबर ने उसे बनारस और चुनार की सूबेदारी भी दी। बनारस में रहते हुए सुर्जन हाड़ा ने कई इमारतों, जलाशय, महल और गंगा नदी के तट पर घाट बनवाया।
  • राव सुर्जन ने द्वारकापुरी में रणछोड़जी का मन्दिर बनवाया था।
  • राव सुर्जन के दरबारी कवि चन्द्रशेखर ने ’सुर्जन चरित्र’ और ’हम्मीर हठ’ नामक ग्रन्थों की रचना की।

राव भोज (1585-1608 ई.)

  • राव भोज ने आमेर के मानसिंह के साथ रहकर उड़ीसा, गुजरात व अहमदनगर के अभियानों में अपनी वीरता का परिचय दिया था।
  • इनके समय कोटा का स्वतंत्र राज्य अस्तित्व में आया। इन्होंने अपने पुत्र हृदय नारायण को कोटा का शासक नियुक्त कर अकबर से स्वीकृति प्राप्त कर ली थी।

राव रतनसिंह (1608-1631 ई.)

  • राव रतनसिंह को जहाँगीर ने ’सरबुलंदराय’ और ’रामराजा’ की उपाधियाँ प्रदान की थी।
  • राव रतनसिंह जहाँगीर के काल में मुगल साम्राज्य के स्तंभों में एक रहा था। इनकी न्यायप्रियता के संबंध में कहा जाता है कि
  • उसने अपने लड़के गोपीनाथ की हत्या करने वाले ब्राह्मण को दण्ड नहीं दिया, क्योंकि वह दुराचारी अथवा हत्याचारी था। उसके दुराचारों से तंग आकर ब्राह्मणों ने उसे मार दिया था।

राव शत्रुशाल

  • राव शत्रुशाल ने बूँदी के किले में ’रंगमहल’ का निर्माण करवाया।
  • मुगल बादशाह जहाँगीर ने इसे ’राव’ की उपाधि और 3000 जात व 2000 सवार का मनसब दिया।
  • जब शाहजहाँ के पुत्रों के मध्य उत्तराधिकार संघर्ष प्रारम्भ हुआ। तब राव शत्रुशाल शहजादे दारा के पक्ष में सामूगढ़ का युद्ध (1658 ई.) करते हुए वीरगति को प्राप्त हो गया।

राव भावसिंह (1658-1681 ई.)

  • औरंगजेब ने भावसिंह के विरुद्ध अपनी सेना भेजी। जिसे भावसिंह ने खातौली के युद्ध में परास्त किया। इससे प्रसन्न होकर 1658 ई. औरंगजेब ने भावसिंह को आगरा बुलाकर 3000 जात व 2000 सवार के मनसब के साथ बूँदी की जागीर प्रदान की।
  • 1660 ई. में भावसिंह ने चाकण के घेरे में मिर्जा राजा जयसिंह के साथ शाही सेना का सहयोग किया था।

राव अनिरुद्ध सिंह (1681-1695 ई.)

  • 1682 ई. में राव अनिरुद्ध औरंगजेब के दक्षिणी अभियानों के समय उसके साथ था। इस समय उसने शाही बेगमों को मराठों से घेरे जाने से भी बचाया था। इस वीरता के कारण उसे औरंगजेब ने पुरस्कृृत किया था।
  • 1688 ई. में राजाराम जाट और शाही सेना के बीच हुए युद्ध में यह शाही सेना के साथ था। तब 1695 ई. में अनिरुद्ध सिंह की मृत्यु हो गयी।
  • अनिरुद्ध की पत्नी रानी नाथावती ने 1699 ई. में बूँदी में रानी जी की बावड़ी का निर्माण करवाया।
  • इनके शासनकाल के दौरान 1683 ई. से 1695 ई. के मध्य बूँदी में राव देवा ने ’84 खम्भों की छतरी’ का निर्माण करवाया।

राव बुद्धसिंह (1695-1739)

  • औरंगजेब की मृत्यु के बाद हुए उत्तराधिकारी युद्ध (1707 ई.) में बुद्धसिंह ने बहादुरशाह का साथ दिया, जिससे प्रसन्न होकर बहादुरशाह ने इसे ’महाराव राणा’ की उपाधि और कुछ परगने जागीर में दिए।
  • बुद्धसिंह अपने पुत्र उम्मेदसिंह को बूंदी का राजा बनाना चाहता था। लेकिन सवाई जयसिंह ने दलेल सिंह को शासक बनाए रखा और अपनी पुत्री कृष्णा कुमारी का विवाह 1732 ई. में दलेल सिंह से कर दिया।
  • बुद्धसिंह के शासनकाल में कोटा के भीमसिंह ने कुछ समय के लिए बूँदी पर अधिकार कर लिया था। इसी समय बादशाहह फर्रुखसियर ने बूँदी का नाम ’फर्रुखाबाद’ किया था।
  • बुद्धसिंह ने ’नेह तरंग’ नामक पुस्तक लिखी।

राव दलेलसिंह (1729-1748 ई.)

  • सवाई जयसिंह ने राव दलेलसिंह को बूँदी का शासक बनाया। राव दलेलसिंह के शासक बनने से उसका भाई प्रतापसिंह उनसे नाराज हो गया। सवाई जयसिंह की बहन अमर कुँवरी उम्मेदसिंह को शासक बनाना चाहती थी, इसलिए अमर कुँवरी ने मराठा सरदार मल्हार राव होल्कर को राखी बंधाकर भाई बना लिया और प्रतापसिंह के माध्यम से 6 लाख रुपए देकर बूँदी पर आक्रमण के लिए बुलाया।
  • होल्कर और सिंधिया ने 1734 ई. में बूँदी पर आक्रमण किया और दलेलसिंह के स्थान पर उम्मेदसिंह को शासक बना दिया।
    राजस्थान मेें यह मराठों के प्रवेश की प्रथम घटना थी। बूँदी के उत्तराधिकारी संघर्ष में मराठों को राजस्थान में बुलाया गया। मराठों के वापस लौटते ही सवाई जयसिंह ने दुबारा दलेलसिंह को ही बूंदी का शासक बना दिया।

राव उम्मेद सिंह (1748-1770 ई.)

  • कोटा के शासक दुर्जनशाल और मल्हार राव होल्कर की सहायता से उम्मेदसिंह बूँदी का शासक बना। उम्मेदसिंह की माता अमर कुँवरी ने मल्हार राव होल्कर को राखी बांधी थी, इसलिए वह मल्हार राव होल्कर को ’मामा’ कहता था।
  • जयपुर और बूँदी के मध्य होने वाले संघर्ष में उम्मेद सिंह ने अपने हंजा घोड़े पर सवार होकर अनेक युद्ध किये।
  • उम्मेदसिंह को ’श्री जी’ की उपाधि से भी नवाजा जाता है।
  • इसने बूँदी के किले में ’चित्रशाला’ और ’उम्मेद महल’ का निर्माण करवाया।

रामसिंह हाड़ा (1831-1889 ई.)

  • 1857 की क्रांति के दौरान रामसिंह हाड़ा बूँदी का शासक था। क्रांति के दौरान अंग्रेजों का साथ न देने वाला यह राजपूताने का एकमात्र शासक था।
  • इनके प्रसिद्ध कवि सूर्यमल्ल मिश्रण ने ’वंश भास्कर’ की रचना की।
  • इनके शासनकाल के दौरान ठाकुर बलवंत सिंह जयपुर से तीज की प्रतिमा बूँदी लेकर आए थे।

कोटा के चौहान

  • राव माधोसिंह (1631-1648 ई.)
  • राव मुकुन्द सिंह (1648-1658 ई.)
  • राव जगतसिंह (1658-1683 ई.)
  • राव किशोर सिंह प्रथम (1684-1696 ई.)
  • राव रामसिंह (1696-1707 ई.)
  • महाराव भीमसिंह प्रथम (1707-1720 ई.)
  • राव अर्जुनसिंह (1720-1723 ई.)
  • राव दुर्जनशाल (1723-1756 ई.)
  • राव अजीतसिंह (1756-1757 ई.)
  • राव शत्रुशाल प्रथम (1757-1764 ई.)
  • राव गुमानसिंह (1764-1770 ई.)
  • राव उम्मेदसिंह प्रथम (1770-1819 ई.)
  • राव किशोर सिंह द्वितीय (1819-1828 ई.)
  • राव रामसिंह द्वितीय (1828-1865 ई.)
  • राव शत्रुशाल द्वितीय (1865-1888 ई.)
  • राव उम्मेद सिंह द्वितीय (1888-1940 ई.)
  • राव भीमसिंह द्वितीय (1940-1948 ई.)

राव माधोसिंह (1631-1648 ई.)

  • राव माधोसिंह कोटा का प्रथम स्वतंत्र और विधिवत शासक था।
  • माधोसिंह ने बल्ख तथा बदख्शां के अभियानों में मुगलों का बखूबी साथ दिया था। मुगल बादशाह शाहजहाँ ने माधोसिंह की सेवाओं से प्रसन्न होकर 1631 ई. में कोटा को बूंदी से पृथक करके एक स्वतंत्र रियासत बनाई। कोटा रियासत का प्रथम राजा माधोसिंह को बनाया गया था।
  • इन्होंने खानेजहाँ लोदी और जुझार सिंह बुन्देला के विद्रोह को दबाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।

राव मुकुन्द सिंह (1648-1658 ई.)

  • राव मुकुन्द सिंह मुगल उत्तराधिकार संघर्ष में शहजादे दारा के पक्ष में हुए धरमत के युद्ध में लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हो गये।
  • इन्होंने अपनी पासवान अबला मीणी के लिए ’अबला मीणी का महल’ बनवाया। इस महल को ’राजस्थान का दूसरा ताजमहल’ कहते है।
  • उसने दर्रे की घाटी में मुकुंदरा का दुर्ग भी बनवाया था।

राव जगतसिंह (1658-1683)

  • राव जगतसिंह और उनका काका किशोरसिंह शहजादा शुजा के विरुद्ध औरंगजेब की सेना के साथ ’खजुहा’ का युद्ध में लड़े थे। इस युद्ध में शुजा की सेना मैदान छोड़कर भाग गई और औरंगजेब की विजय हुई।

राव किशोर सिंह (1684-1696)

  • राव किशोर सिंह ने अपने जीवन का अधिकांश समय शाही सेना के साथ दक्षिण भारत में मराठों के साथ संघर्ष में बिताया और वहीं उनकी मृत्यु हो गई।
  • राव किशोर सिंह ने कोटा में ’किशोर सागर तालाब’ और ’किशोर विलास बाग’ का निर्माण करवाया। इनके समय में बघेरवाल ने खानपुर के पास चाँदखेड़ी में आदिनाथ भगवान का एक जैन मंदिर बनवाया।

राव रामसिंह (1696-1707)

  • राव रामसिंह की वीरता और मुगल सम्राट पर प्रभाव के कारण इसे कोटा का अधिकारी बनाया गया।
  • औरंगजेब के पुत्रों में उत्तराधिकार को लेकर जाजऊ का युद्ध (1707 ई.) हुआ। इस युद्ध में रामसिंह ने शहजादा आजम का साथ दिया और वीरगति को प्राप्त हो गया।
  • इसने रामपुरा बाजार, रामपुरा दरवाजा, रामगंज, रांवठा तालाब, शहरपनाह, सूरजपोल का निर्माण करवाया।

राव भीमसिंह प्रथम (1707-1720 ई.)

  • फर्रूखसियर के कहने पर 1713 ई. में भीमसिंह ने बूँदी पर आक्रमण किया और उसका राजकोष लूटा, धूल़धाणी व कड़क बिजली नामक तोपें छीन लाया।
  • बादशाह फर्रूखसियर ने भीमसिंह को 5000 का मनसब देकर सम्मानित किया और शेरगढ़ का किला पुरस्कार स्वरूप दिया था।
  • महाराव भीमसिंह कृष्ण भक्त था। उन्होंने स्वयं का नाम कृष्णदास और कोटा का नाम ’नंदगाँव’ रख दिया था।
  • इनके शासनकाल में कोटा राज्य का सर्वाधिक विस्तार हुआ था। इसने भीमगढ़ का किला, भीमविलास, बृजनाथ जी मन्दिर एवं आशापुरा जी का मन्दिर बनवाया।

राव दुर्जनशाल (1723-1756 ई.)

  • कोटा के शासक महाराव दुर्जनशाल हाड़ा ने राजमहल के युद्ध में सवाई ईश्वरीसिंह के विरुद्ध माधोसिंह का साथ दिया था। इसने हुरड़ा सम्मेलन में भाग लिया था।
  • राव दुर्जनशाल ने अपनी सिसोेदिया रानी ब्रज कंवर के लिए 1743-45 ई. में किशोर सागर तालाब में जगमंदिर महल का निर्माण करवाया।

राव शत्रुशाल प्रथम (1757-1764 ई.)

  • राव शत्रुशाल प्रथम ने भटवाड़ा के युद्ध में जयपुर के शासक सवाई माधोसिंह को पराजित किया था। इस विजय में झाला जालिमसिंह का विशेष योगदान रहा था। झाला जालिमसिंह 1758 ई. में कोटा रियासत का फौजदार बना था। जालिमसिंह को ’कोटा राज्य का दुर्गादास राठौड़’ कहा जाता है।

राव उम्मेदसिंह हाड़ा (1770-1819 ई.)

  • महाराव गुमानसिंह की मृत्यु के बाद राव उम्मेदसिंह हाड़ा कोटा का शासक बना। इनके समय कोटा राज्य के दीवान व प्रशासक झाला जालिम सिह थे। जालिम सिंह की शक्ति और निरंकुशता अपने चरम सीमा पर थी। जालिमसिंह ने कूटनीति से कोटा राज्य को मराठों व पिण्डोरियों के आक्रमणों से सुरक्षित रखा।
  • अंग्रेजों के बढ़ते हुए प्रभाव को देखते हुए 26 दिसम्बर, 1817 ई. को उम्मेदसिंह ने अंग्रेजों से संधि कर उनकी अधीनता स्वीकार कर ली। इस संधि में शर्तें थी कि कोटा के राजा महाराव उम्मेदसिंह के बाद उसका ज्येष्ठ पुत्र तथा उसके वंशज कोटा राज्य के शासक होंगे तथा राज्य का समस्त प्रशासन झाला जालिमसिंह और उसके बाद जालिमसिंह के वंशजों के पास रहेगा।

राव रामसिंह द्वितीय (1828-1865 ई)

  • कोटा के महाराव रामसिंह द्वितीय के शासनकाल में अंग्रेजों ने 1837 ई. में कोटा राज्य से 17 परगनों को अलग करके नए झालावाड़ राज्य की स्थापना की और झाला मदनसिंह को यहाँ का शासक बनाया। इस रियासत का गठन 10 अप्रैल, 1838 ई. को किया गया। जिसकी राजधानी झालरापाटन थी। यह अंग्रेजों द्वारा स्थापित अंतिम रियासत थी।
  • 15 अक्टूबर 1857 ई. को कोटा में जयदयाल व मेहराब खाँ के नेतृत्व में विद्रोह हुआ। विप्लवकारियों ने मेजर बर्टन की हत्या कर दी व महाराव रामसिंह द्वितीय को महलों में नजरबन्द कर दिया। मार्च 1858 में मेजर जनरल राॅबर्ट्स व करौली शासक मदनपाल सिंह की सेना ने कोटा को आजाद करवाया। लापरवाही करने के आरोप में महाराव रामसिंह द्वितीय की तोपों की सलामी 17 से घटाकर 13 कर दी गई।

निष्कर्ष :

आज के आर्टिकल में हमनें हाड़ौती के चौहान(Hadoti ke Chouhan) विस्तार से पढ़ा। हमनें पुरे टॉपिक को अच्छे से कवर किया, हम आशा करतें है कि आप हमारे प्रयास से संतुष्ट होंगे …..धन्यवाद

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