दारा शिकोह कौन था ?
- दाराशिकोह का जन्म 1615 ई. को शाहजहाँ की प्रिय पत्नी मुमताज महल के गर्भ से हुआ था।
- दारा सूफियों की ’कादिरी परम्परा’ से बहुत प्रभावित था। कादिरी सिलसिले के प्रसिद्ध सन्त ’मुल्लाहशाह’ उसके आध्यात्मिक गुरू थे।
- लेनपूल ने दारा को ’लघु अकबर’ कहा।
- शाहजहाँ ने दारा को ’शाहबुलन्द इकबाल’ की उपाधि से विभूषित किया था।
दारा शिकोह की रचनाएँ
- दाराशिकोह ने स्वयं अपनी देखरेख में संस्कृत ग्रन्थ ‘भगवत् गीता’ और ’योग वशिष्ठ’ का फारसी में अनुवाद करवाया।
- दारा का सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य ’वेदों का संकलन’ है उसने वेदों को ईश्वरीय कृति माना है।
- दाराशिकोह ने एक मौलिक पुस्तक ’मज्म-उल-बहरीन’ (दो समुद्रों का संगम) की रचना की, जिसमें हिन्दू और इस्लाम धर्म को एक ही ईश्वर की प्राप्ति के दो मार्ग बताया गया है।
- दारा ने स्वयं तथा काशी के कुछ संस्कृत के पण्डितों की सहायता से ’बावन उपनिषदों’ का ’सिर्र-ए-अकबर’ नाम से फारसी में अनुवाद कराया।
दाराशिकोह के सूफीमत से सम्बन्धित ग्रन्थ –
- सफीनत-उल-औलिया (विभिन्न परम्पराओं के सूफियों का जीन-वृत्त)
- सकीनत-उल-औलिया (भारत की कादिरी परम्परा के सूफियों का जीवनवृत्त)
- हसनात-उल-आरफीन (विभिन्न सन्तों की वाणी का संकलन)
- तरीकत-उल-हकीकत (आध्यात्मिक मार्ग के विभिन्न चरण)
- रिसालाए-हक-नुमा (सूफी प्रथाओं का वर्णन)