जयनारायण व्यास के बारे में आप क्या जानते है?

जयनारायण व्यास के बारे में आप क्या जानते है?

  • जयनारायण व्यास का जन्म 18 फरवरी, 1899 को जोधपुर में हुआ।
  • 11 नवम्बर, 1918 को इन्होंने ‘पुष्करणा युवक मण्डल’ की स्थापना की, जिसने समाज सुधार संबंधी गीतों की अनेक लघु पुस्तिकाएँ प्रकाशित की।
  • व्यास ने बीसवीं सदी के द्वितीय दशक में समाज सुधार संबंधी गीतों की रचना की। वर्ष 1932 में इन्होंने बालिकाओं के लिए ‘जय कन्या विद्यालय’ स्थापित किया।
  • वर्ष 1927 में ये ‘तरुण राजस्थान’ के सम्पादक बने एवं 1936 ई. में बम्बई से ‘अखण्ड भारत’ नामक दैनिक समाचार-पत्र निकाला। इन पत्रों में ‘वर्तमान मारवाड़’ शीर्षक से मारवाड़ के भ्रष्ट और निरंकुश शासन की कटु आलोचना की तथा देशी रियासतों में राजतंत्र की समाप्ति व उत्तरदायी शासन की स्थापना का आह्वान किया।
  • वर्ष 1929 में मारवाड़ राज्य लोक परिषद् के अधिवेशन पर सरकार ने प्रतिबंध लगा दिया, तो जयनारायण व्यास रचित ‘पोपाबाई री पोल’ और ‘मारवाड़ की अवस्था’ पुस्तिकाएँ जनता में वितरित की गईं। इनमें मारवाड़ शासन की कटु आलोचना की गई थी। फलत: 2 सितम्बर, 1929 को इन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।
  • 10 मई, 1931 को इनके निवास पर ‘मारवाड़ यूथ लीग’ की स्थापना की गई, जिसने ग्रामीण क्षेत्रों में जनचेतना फैलाने का कार्य किया। वर्ष 1936 में अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद् के कराची अधिवेशन में जयनारायण व्यास को महामंत्री चुना गया।
  • वर्ष 1939 में इनको केन्द्रीय सलाहकार बोर्ड का गैर सरकारी सदस्य मनोनीत किया गया तथा वर्ष 1940 में मारवाड़ लोक परिषद् की समस्त शाखाओं का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। 1941 में जयनारायण जोधपुर नगरपालिका के प्रथम निर्वाचित अध्यक्ष चुने गए।
  • 11 मई, 1942 को मारवाड़ लोकपरिषद् के सत्याग्रह आंदोलन में जयनारायण व्यास को प्रथम डिक्टेटर घोषित किया गया। इन्होंने एक विज्ञप्ति ‘मारवाड़ में उत्तरदायी शासन का आंदोलन’ प्रकाशित कर इस आंदोलन की आवश्यकता को स्पष्ट किया।
  • इनके चरित्र के संबंध में बीकानेर शासक गजसिंह ने मारवाड़ के प्रधानमंत्री डोनाल्ड फील्ड को लिखा, “नि:संदेह श्री जयनारायण व्यास राजशाही की आलोचना करने में सबसे तीखे रहे हैं; लेकिन वे पक्के ईमानदार हैं, उनको कोई भ्रष्ट नहीं कर सकता। वे अपनी राजनीतिक मान्यताओं के प्रति सत्यनिष्ठ हैं।”
  • अपने उदात्त चरित्र के कारण वे ‘लोकनायक’ के नाम से संबोधित किए जाने लगे। 14 मार्च, 1963 को इनका देहान्त हुआ।

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