तात्या टोपे ने राजस्थान में कब प्रवेश किया?

तात्या टोपे ने राजस्थान में कब प्रवेश किया?

  • ताँत्या टोपे जो पेशवा नाना साहब का सहयोगी था, ने कानपुर में क्रांति का नेतृत्व किया था।
  • 22 जून, 1857 को अलीपुर में चार्ल्स नेपियर से पराजित होने के बाद सैन्य सहायता प्राप्ति हेतु राजस्थान में प्रवेश किया।
  • 1857 की क्रांति के दौरान ताँत्या टोपे दो बार राजस्थान आया था। सर्वप्रथम भीलवाड़ा के मांडलगढ़(8 अगस्त, 1857) क्षेत्र में प्रवेश किया।
  • ताँत्या टोपे जैसलमेर को छोड़कर राजस्थान के सभी रियासतों के पास सहायता प्राप्त करने हेतु गया था ।
  • मेवाड़ में केसरीसिंह सलूंबर और जोधसिंह कोठारिया ने ताँत्या टोपे की सहायता की थी। बीकानेर के राजा सरदारसिंह ने ताँत्या टोपे को दस घुड़सवारों की सहायता दी थी।
  • टोंक के नासीर मुहम्मद खाँ ने भी ताँत्या टोपे की सहायता की है।
  • 09 अगस्त, 1858 को कोठारी नदी के किनारे कुआड़ा (भीलवाड़ा) के युद्ध में ताँत्या टोपे जनरल रॉबर्ट से पराजित होता है।
  • 13 अगस्त, 1858 को रूकमगढ़ के युद्ध में अंग्रेजी सेना से वह परास्त हुआ और आकोला होता हुआ वह झालरापाटन पहुँचा।
  • झालावाड़ के राजा पृथ्वीसिंह ने ताँत्या टोपे के खिलाफ पलायता नामक स्थान पर सेना भेजी । गोपाल पलटन को छोड़कर बाकी सेना ने ताँत्या टोपे के खिलाफ लड़ने से मना कर दिया था।
  • ताँत्या टोपे ने दूसरी बार दिसम्बर, 1858 में राजस्थान में प्रवेश किया। वह 09 दिसम्बर, 1858 को कुशलगढ़ होता हुआ बाँसवाड़ा पहुँचा तथा 11 दिसम्बर को बाँसवाड़ा पर अधिकार कर लिया ।
  • सीकर के सामंत ने ताँत्या टोपे को शरण दी थी इसलिए अंग्रेजों ने उसे फाँसी दी थी। सीकर में ताँत्या की छतरी बनी हुई है। अंत में ताँत्या टोपे के साथी मानसिंह नरूका ने अंग्रेजों को सहयोग देकर नरवर के जंगलों में उसे पकड़वा दिया और उसे 18 अप्रैल, 1859 ई. को क्षिप्री (शिवपुरी, मध्य प्रदेश) में फाँसी दी गई।
  • ब्रिटिश कैप्टन शॉवर्स ने अपनी पुस्तक में ताँत्या को फाँसी देने के लिए ब्रिटिश सरकार की आलोचना की थी।

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