राजस्थान में वन्य जीवों का विशेष महत्त्व है। राज्य में वर्तमान में 3 राष्ट्रीय उद्यान, 27 वन्य जीव अभ्यारण्य, 4 टाइगर प्रोजेक्ट और 33 आखेट निषिद्ध क्षेत्र है। राज्य में 36 कन्वेंशन रिजर्व है। यहाँ प्रमुख 3 राष्ट्रीय उद्यानों में रणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान,केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान और मुकन्दरा हिल्स राष्ट्रीय उद्यान है।
राजस्थान में वन्य जीव अभ्यारण्य – Rajasthan Ke Vanya Jeev Abhyaran
अब हम राजस्थान में वन्य जीव अभ्यारण्य, राजस्थान राज्य स्थित में राष्ट्रीय उद्यान एवं वन्य जीव अभयारण्य (Rajasthan Ke Vanya Jeev Abhyaran) के बारे में विस्तृत जानकारी शेयर कर रहें है। राष्ट्रीय उद्यान एवं वन्य जीव अभयारण्य का नाम, स्थान, क्षेत्रफल, स्थापना वर्ष आदि परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण जानकारी आप पढ़ सकेंगे।
दोस्तो इस चेप्टर को पढने से पहले हमें अभयारण्य और राष्ट्रीय उद्यान में अंतर को जानना बहुत जरुरी है
अभयारण्य किसे कहते है – Abhyaran kise kahate hain
‘Abhyaran kise kahate hain’ : यह आम जनता के लिए खुला होता है। वन्यजीव अभयारण्य में प्रवेश करने के लिए टिकट या अनुमति की आवश्यकता नहीं है। इसमें मानवीय हस्तक्षेप नही होता है। अभ्यारण्य में लकड़ी काटने और पशु चराने की छूट होती है।
राष्ट्रीय उद्यान क्या होते है?
राष्ट्रीय उद्यान वह भौगोलिक क्षेत्र है, जहाँ वन्य जीव -जंतुओं को संरक्षित एवं सुरक्षित किया जाता है जिसमे उन्हें पूर्ण प्राकृतिक आवास देकर मनुष्य के हस्तक्षेप से रहित वातावरण प्रदान किया जाता है।
वन्य जीव अभयारण्य और राष्ट्रीय उद्यान में अंतर
अभ्यारण्य | राष्ट्रीय उद्यान |
यह आम जनता के लिए खुला होता है। वन्यजीव अभयारण्य में प्रवेश करने के लिए टिकट या अनुमति की आवश्यकता नहीं है | यह प्रतिबंधित क्षेत्र होता है। राष्ट्रीय उद्यान में प्रवेश करने के लिए टिकट या अनुमति की आवश्यकता होती है |
मानवीय हस्तक्षेप | मानवीय हस्तक्षेप रहित |
लकड़ी काटने और पशु चराने की छूट | लकड़ी काटने और पशु चराने के लिए प्रतिबंधित |
राष्ट्रीय पार्क व वन्य जीव अभ्यारण्य – National Parks and Sanctuaries in Rajasthan
राष्ट्रीय पार्क/अभयारण्य | उपनाम/ महत्त्वपूर्ण तथ्य |
रणथम्भौर अभयारण्य | भारत की सबसे छोटी बाघ परियोजना, भारतीय बाघों का घर कहलाता है। |
सज्जनगढ़ अभयारण्य (उदयपुर) | राजस्थान का दूसरा सबसे छोटा अभ्यारण्य। |
सरिस्का अभयारण्य | राजस्थान का दूसरा बाघ परियोजना क्षेत्र। |
मरु राष्ट्रीय उद्यान | राजस्थान का सबसे बङा अभ्यारण्य। |
रामगढ़ विषधारी अभयारण्य (बूँदी) | बाघ परियोजना क्षेत्रों के अतिरिक्त राजस्थान में यह एकमात्र ऐसा अभ्यारण्य है। जहाँ राष्ट्रीय पशु बाघ विचरण करते हैं। |
गजनेर अभयारण्य | पशु-पक्षियों की शरण स्थली। |
केवलादेव अभयारण्य | एशिया की सबसे बङी प्रजनन स्थली। |
सीतामाता अभयारण्य | उङन गिलहरियों का स्वर्ग। |
जवाहरसागर अभयारण्य | घङियालों के प्रजनन केन्द्र हेतु विख्यात। |
बस्सी अभयारण्य | चीतलों की चहल-पहल। |
कुंभलगढ़ अभयारण्य | भेङियों की प्रजनन स्थली, जंगली धूसर मुर्गों हेतु प्रसिद्ध। |
भैंसरोङगढ़ व चम्बल घङियाल अभयारण्य | घङियालों का संसार। |
जयसमंद अभयारण्य | जलचरों की बस्ती। |
बंध बारेठा अभयारण्य | परिंदों का घर |
शेरगढ़ अभयारण्य | साँपों का संरक्षण स्थल। |
तालछापर अभयारण्य | काले हिरणों का संसार। |
राजस्थान में राष्ट्रीय उद्यान –
- राष्ट्रीय उद्यान केन्द्र सरकार द्वारा संचालित होते हैं वर्तमान में राजस्थान में 3 राष्ट्रीय उद्यान हैं।
- रणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान (सवाई माधोपुर)
- केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान (भरतपुर)
- मुकन्दरा हिल्स राष्ट्रीय उद्यान (कोटा, चित्तौङगढ़)
रणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान – सवाई माधोपुर
- यह राजस्थान का प्रथम राष्ट्रीय उद्यान व प्रथम टाईगर प्रोजेक्ट है।
- अभयारण्य के रूप में स्थापना – 1955 में
- टाईगर प्रोजेक्ट प्रारम्भ – 1973 में
- राष्ट्रीय उद्यान घोषित – 1 नवम्बर, 1980 को
- यह क्षेत्र रियासत काल में जयपुर के राजाओं की शिकारगाह था।
- रणथम्भौर को ’भारतीय बाघों का घर’ कहा जाता है। यह अभयारण्य अरावली व विंध्याचल पर्वतमालाओं के संगम पर स्थित है।
- राष्ट्रीय उद्यान का कुल विस्तार 282.03 वर्ग किमी. है।
- क्षेत्रफल की दृष्टि से यह राजस्थान की दूसरी बङी बाघ परियोजना है। (1411 वर्ग किमी.) रणथम्भौर टाईगर प्रोजेक्ट में रणथम्भौर नेशनल पार्क, सवाई माधोपुर अभयारण्य, सवाई मानसिंह अभयारण्य,
- कैलादेवी अभयारण्य और राष्ट्रीय चम्बल घङियाल अभयारण्य का हिस्सा शामिल किया गया है। यह टाईगर प्रोजेक्ट सवाई माधोपुर, करौली, बूँदी व टोंक जिलों में 1411 वर्ग कि.मी. में फैला है।
- इसमें सीताफल व धौंक वन की बहुतायत है
- यहाँ के लाल सिर वाले तोते प्रसिद्ध है।
- दुर्लभ प्रजाति का ’काला गरूङ’ राजस्थान के केवल इसी अभयारण्य में पाया जाता है।
- बाघ सुल्तान व बबली का विस्थापन यहाँ से सरिस्का में किया गया।
- इस अभ्यारण्य में जोगी महल, भारत का एकमात्र त्रिनेत्र गणेश मंदिर, रणथम्भौर किला, कुक्कुर घाटी में कुत्ते की छतरी है।
- झूमर बावङी – RTDC का होटल झूमर बावङी यहाँ स्थित है।
- यहाँ पदम तालाब, मलिक तालाब, लाहपुर झील व राजबाग झीलें स्थित हैं।
- प्रसिद्ध मछली बाघिन इसी अभयारण्य में थी।
- कृष्णा – मछली बाघिन की बेटी (टी-19) अशोक गहलोत ने डिस्कस थ्रोअर खिलाङी कृष्ष्णा पुनिया के नाम पर कृष्णा नाम रखा।
केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान – भरतपुर
- यह अभयारण्य पक्षियों का स्वर्ग व पक्षियों की सबसे बङी प्रजनन स्थली के नाम से जाना जाता है।
- अभयारण्य के रूप में स्थापना – 1956 में।
- यह राजस्थान का दूसरा राष्ट्रीय उद्यान है। 27 अगस्त, 1981 को इसे राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया था।
- यह यूनेस्को द्वारा विश्व प्राकृतिक धरोहर में शामिल राजस्थान का एकमात्र अभयारण्य है (1985 में शामिल किया गया)
- 28.73 वर्ग किमी क्षेत्र ही राष्ट्रीय उद्यान क्षेत्र में शामिल है। यह राजस्थान का सबसे छोटा राष्ट्रीय उद्यान है।
- यह अभ्यारण्य स्वर्णिम त्रिकोण पर्यटक परिपथ व राष्ट्रीय राजमार्ग – 21 पर अवस्थित है।
- यहाँ राज्य की प्रथम वन्यजीव प्रयोगशाला स्थापित है।
- इसमें भगवान शिव का केवलादेव मंदिर स्थित है, शिव मंदिर व घने जंगल के कारण इसका नाम केवलादेव घना अभयारण्य पङा।
- बाणगंगा नदी पर निर्मित अजान बाँध का पानी यहाँ की झीलों में आता है। बाणगंगा व गंभीर नदियाँ इसमें से बहती है।
- यहाँ दुर्लभ प्रजाति का सैनिक जांघिल व सिलेटी टिटहरी पायी जाती है।
- इसमें मोथा घास व ऐंचा घास पायी जाती है।
- कुट्टू घास – साइबेरियन सारस की पसंदीदा घास है।
- प्रवासी पक्षी – यह अभयारण्य साइबेरियन सारस के लिए प्रसिद्ध है।
- पक्षी प्रजातियों की सर्वाधिक विविधता इसी अभयारण्य में पायी जाती है।
- चकौर पक्षी के लिए यह अभयारण्य प्रसिद्ध है।
- लाल गर्दन वाले तोते, व्हाईट ईगल, पेराग्रिन फाल्कन, स्पैरो हाॅक, स्काॅप उल्लू, लार्ज लाॅक, लेपवीर आदि प्रवासी शिकारी पक्षी भी आते हैं।
- इसमें पाइथन प्वाइंट पर अजगर धूप सेकते हैं यहाँ राजस्थान का दूसरा सर्प उद्यान स्थापित किया गया है।
- यह अभयारण्य प्रसिद्ध पक्षी वैज्ञानिक डाॅ. सलीम अली की कार्यस्थली रहा है।
- राजस्थान का प्रथम रामसर साईट/नमभूमि/वेटलैण्ड स्थल है। इसे 1 अक्टूबर, 1981 को शामिल किया गया।
- गोवर्धन ड्रेन योजना के तहत पाइपलाईन से केवलादेव में पानी लाया गया है।
- प्रदेश की दूसरी प्रस्तावित वर्ड सेन्चूरी – बङोपल गाँव (हनुमानगढ़)।
मुकन्दरा हिल्स राष्ट्रीय उद्यान – कोटा, चित्तौङगढ़
- विंध्याचल पर्वत श्रृंखलाओं में अवस्थित है जो कुल 199.55 वर्ग किमी में विस्तृत है।
- इसका पुराना नाम दर्रा अभयारण्य था। इसे 1 नवम्बर, 1955 को अभयारण्य घोषित किया गया था।
- यह राजस्थान का तीसरा राष्ट्रीय उद्यान है। इसे 9 जनवरी, 2012 को नोटिफिकेशन जारी कर राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा दिया गया। इसमें 199.55 वर्ग किमी. क्षेत्र शामिल है।
- यह राजस्थान का तीसरा टाईगर प्रोजेक्ट है। इसे 9 अप्रैल, 2013 को बाघ परियोजना का दर्जा दिया गया। यह टाईगर प्रोजेक्ट कोटा, बूंदी, झालावाङ व चित्तौङगढ़ में कुल 759.99 वर्ग किमी क्षेत्रफल में विस्तृत है।
- यह क्षेत्रफल की दृष्टि से राजस्थान का सबसे छोटा टाईगर प्रोजेक्ट है।
- 2003 में इसका नाम राजीव गाँधी नेशनल पार्क प्रस्तावित किया गया था, 2006 में वसुंधरा राजे सरकार ने मुकन्दरा हिल्स वन्यजीव अभ्यारण्य नाम दिया।
- घङियाल व सारस काफी संख्या में इस अभ्यारण्य में पाये जाते है।
- नदियाँ – आहु व कालीसिंध नदियाँ इसमें से होकर बहती हैं।
- इस अभयारण्य में रावठा महल, गागरोन किला, गुप्तकालीन मंदिर भीम चंवरी, बाडोली का शिव मंदिर स्थित हैं।
- गागरोनी तोते – (वैज्ञानिक नाम – एलेक्जेन्ड्रिया पेराकीट) यह अभयारण्य गागरोनी तोते के लिए प्रसिद्ध है अन्य नाम – हीरामन तोता/टुईया/हिन्दुओं का आकाश लोचन कहा जाता है। यह मानव आवाज की नकल करता है।
- विशेष बाघ संरक्षण बल (S.T.P.F) – रणथम्भौर के बाद अब सरिस्का एवं मुकुन्दरा हिल्स टाईगर रिजर्व में बाघ संरक्षण हेतु इसे स्थापित किया गया है।
राजस्थान के वन्य जीव अभ्यारण – Rajasthan ke Vanya Jeev Abhyaran
रणथम्भौर अभ्यारण्य (सवाई माधोपुर) –
- क्षेत्रफल – 392 वर्ग किमी.।
- अन्य वन्य जीव अभ्यारण्यों की तुलना में यहाँ सर्वाधिक वन्य जीव पाए जाते हैं।
- इस अभ्यारण्य में गणेश जी का मंदिर, जोगी महल स्थित है।
- यह राजस्थान का प्रथम राष्ट्रीय अभ्यारण्य व टाइगर प्रोजेक्ट है।
- मिशन एंटी पोंचिंग – रणथम्भौर अभ्यारण्य से विलुप्त हो रहे बाघों के सम्बन्ध में छेङा गया अभियान।
- इसे राजस्थान के प्रथम राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा 1 नवम्बर 1980 को दिया गया।
- यहाँ के वनों में धोंक मुख्य प्रजाति हैं।
केवलादेव (घना) अभ्यारण्य (भरतपुर) –
- सन् 1956 में इसे अभ्यारण्य का दर्जा मिला।
- 1981 में राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया है।
- इसे वर्ष 1985 में यूनेस्को द्वारा ’विश्व प्राकृतिक धरोहर’ के रूप में शामिल किया गया।
- यह उद्यान गम्भीरी और बाणगंगा नदियों के संगम पर स्थित है।
- इस अभ्यारण्य में लाल गर्दन वाला तोता पाया जाता है।
- साइबेरियन सारस – रूस से आने वाले ये पक्षी इस अभ्यारण्य में आते हैं।
- अभ्यारण्य में स्थित पाईथन पोइन्टस पर अजगर पाए जाते हैं।
- 14 जून, 2004 को विश्व धरोहर जैव विविधता संरक्षण कार्यक्रम के तहत राजस्थान के इस उद्यान को भी चुना है।
मरु राष्ट्रीय उद्यान (जैसलमेर, बाङमेर) –
- मरुभूमि में प्राकृतिक वनस्पति को सुरक्षित रखने व जीवाश्म को संरक्षण प्रदान करने के उद्देश्य से 8 मई, 1981 को 3162 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में राष्ट्रीय मरु उद्यान की स्थापना की गई। क्षेत्रफल की दृष्टि से यह
- अभ्यारण्य राजस्थान का सबसे बङा अभ्यारण्य है।
- इस अभ्यारण्य में गोडावन (ग्रेट इण्डियन बस्टर्ड) पाया जाता है।
- आकल वुड फाॅसिल पार्क इस अभ्यारण्य में स्थित है।
- इसे प्राचीन जीवाश्मों की संरक्षण स्थली कहा जाता है।
सरिस्का अभ्यारण्य (अलवर) –
- सरिस्का अभ्यारण्य अलवर में स्थित है।
- स्थापना – 1955 ई. में ।
- यह बाघों का घर भी कहलाता है।
- इस अभ्यारण्य को 1978 में बाघ परियोजना में शामिल किया गया।
- हरे कबूतरों(नागौरी उच्च भूमि क्षेत्र) के लिए प्रसिद्ध है।
- यहाँ सर्वाधिक मौर भी पाए जाते है।
- इस अभ्यारण्य में कांकनवाङी व क्रासका नामक दो बङे पठार है।
- धोंक – यहाँ की सबसे प्रमुख वन प्रजाति।
- यहाँ टाईगर ड्रेन (होटल) दर्शनीय है।
- यह 492 किमी. के क्षेत्र में फैला हुआ है।
- सरिस्का अभ्यारण्य में 4 मंदिर स्थित है –
(1) पांडुपोल हनुमानजी
(2) नीलकंठ महादेव
(3) भर्तृहरि
(4) तालवृक्ष।
अन्य पर्यटन स्थल –
- बाला किला
- भानगढ़ किला
- कांकन बाड़ी का किला
- भर्तृहरि की गुफाएं
- पांडूपोल हनुमान का मंदिर
- नृत्य करते गणेश जी की मूर्ति
सीतामाता अभ्यारण्य (चित्तौङगढ़) –
- विस्तार – प्रतापगढ़, उदयपुर और चितौडगढ़
- सीतामाता अभयारण्य चित्तौडगढ़ में स्थित है।
- स्थापना – 2 जनवरी, 1979 ई.।
- क्षेत्रफल – 424 वर्ग किलोमीटर
- जल आपूर्ति – कर्ममोई और जाखम नदी से
- उड़न गिलहरी का स्वर्ग
- यहाँ दो सदाबहार जल स्रोतों को लव-कुश के नाम से जाना जाता है।
- ’एरीडीस क्रिस्पम’ और ’जुकजाइन स्ट्रैटामेटिका’ – इस अभ्यारण्य में आरकिड की दो दुर्लभ प्रजातियाँ पाई जाती है।
नोट : राज्य का सर्वाधिक जैव विविधता वाला अभ्यारण्य
- सीतामाता अभ्यारण्य एन्टीलोप प्रजाति के दुर्लभतम वन्य जीव चौसिंगा हिरण के विश्व में सर्वोत्तम आश्रय स्थलों में से एक है।
- चौसिंगा को भेडल भी कहते हैं, देशभर में सबसे ज्यादा भेडल इसी अभ्यारण्य में पाये जाते हैं।
- उङने वाली गिलहरी – सीतामाता अभ्यारण्य में उड़ने वाली गिलहरी पाई जाती है। ये महुआ के वृक्ष पर ज्यादा पाई जाती है
- पेंगोलिन – सीतामाता अभ्यारण्य में पाया जाता है, स्थानीय भाषा में इसे आडा हुला कहते हैं।
- यहाँ पर अत्यधिक मात्रा में दुर्लभ वन, औषधियाँ उपलब्ध हैं।
- सर्वाधिक सागवान के वृक्ष
बस्सी अभ्यारण्य (चित्तौङगढ़) –
- 1988 में अभ्यारण्य का दर्जा दिया गया।
चम्बल घङियाल अभ्यारण्य –
- राजस्थान सरकार ने इसे 16 जुलाई, 1983 को अभ्यारण्य का दर्जा दिया गया।
- यह अभ्यारण्य कोटा (सर्वाधिक), सवाई माधोपुर, बूँदी, धौलपुर और करौली जिलों में है।
- देश की एकमात्र नदी सेंक्च्यूरी चंबल है।
- चम्बल नदी घङिवालों के लिए सर्वोत्तम प्राकृतिक आवास है।
- इसमें ऊदबिलाव पाये जाते हैं।
- गांगेय सूंस – विशिष्ट स्तनपायी जंतु, इस अभ्यारण्य में पाया जाता है।
- ज्ञातव्य है कि राष्ट्रीय घङियाल अभ्यारण्य तथा जवाहर सागर अभ्यारण्य दोनों ही चम्बल अभ्यारण्य में शामिल है।
कुंभलगढ़ वन्य जीव अभ्यारण्य –
- उदयपुर (सर्वाधिक), राजसमंद, पाली में विस्तृत।
- यह अभ्यारण्य राजस्थान के उदयपुर, राजसमंद और पाली जिलों में फैला हुआ है।
- घंटेल – इस अभ्यारण्य में पाया जाने वाला चौसिंगा हिरण।
- रणकपुर जैन मंदिर – उत्कृष्ट मूर्ति शिल्प के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध, इस अभ्यारण्य में स्थित है।
जयसमंद अभ्यारण्य (उदयपुर) –
- जयसमंद अभ्यारण्य 1957 में स्थापित हुआ है।
फुलवारी की नाल अभ्यारण्य (उदयपुर) –
- इस अभ्यारण्य की पहाङी से मांसी वाकल नदी का उद्गम होता है।
माचिया सफारी अभ्यारण्य (जोधपुर) –
- ’राजस्थान का मृगवन’ कहलाने वाला देश का प्रथम राष्ट्रीय मरु वानस्पतिक उद्यान, कृष्ण मृग और चिंकारा के लिए प्रसिद्ध।
धावाडोली अभ्यारण्य –
- स्थान – जोधपुर
- कृष्ण मृगों के संरक्षण के लिए प्रसिद्ध।
अमृतादेवी अभ्यारण्य (जोधपुर) –
- कृष्ण मृगों के संरक्षण के लिए प्रसिद्ध।
आबू अभ्यारण्य –
- स्थान – सिरोही
- जंगली मुर्गे तथा डिकिल पटेरा आबूएन्सिस पादप (विश्व में एकमात्र आबू पर्वत में ही) पाया जाता है।
- यूब्लेफरिस – इस अभ्यारण्य में पाई जाने वाली राजस्थान की सबसे सुंदर छिपकली।
रामगढ़ विषधारी अभ्यारण्य –
- स्थान – बूँदी
- स्थापना – 1982 ई. में
- क्षेत्रफल – 360 वर्ग किमी.
- यह अभ्यारण्य अजगरों के लिए शरण- स्थली माना जाता है
- यहां धोकङा मुख्य वृक्ष प्रजाति पायी जाती है।
- यह रणथम्भोर के बाघों का जच्चा घर कहलाता है।
- यह राज्य का चौथा टाइगर रिजर्व है।
मुकुन्दरा हिल्स राष्ट्रीय पार्क –
- जनवरी, 2006 में राज्य मंत्रिमण्डलीय समिति ने दर्रा नेशनल पार्क (कोटा) को स्वीकृति दे दी एवं राज्य सरकार द्वारा मार्च, 2006 में इस हेतु गजट नोटिफिकेशन जारी कर राजस्थान के इस तीसरे नेशनल पार्क के लिए रास्ता साफ कर दिया है किन्तु अन्तिम अधिसूचना सम्भवतः वर्ष 2007 में किये जाने की संभावना है।
- रणथम्भौर और केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान बनने के 25 साल बाद राजस्थान में यह तीसरा नेशनल पार्क होगा।
- सितंबर, 2003 में राज्य मंत्रिमण्डल ने ’राजीव गाँधी नेशनल पार्क’ नाम से दर्रा सेंक्चुरी को मंजूरी दी थी। मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने राजीव गांधी की जगह ’मुकन्दरा हिल्स’ के नाम को मौखिक स्वीकृति दे दी है।
- राजस्थान में घङियालों व सारसों की सबसे अधिक संख्या दर्रा में ही है। दर्रा में मुकंदरा की पर्वत शृंखलाओं में आदि मानव के शैलाश्रय और उनके द्वारा चित्रित शैलचित्र मिले हैं।
बंध बरिठा अभ्यारण्य –
- स्थान – भरतपुर
- 1985 में स्थापित, जरखों के लिए प्रसिद्ध।
- इस अभ्यारण्य में ’बोरठा’ नामक प्रसिद्ध झील है।
गजनेर अभ्यारण्य (बीकानेर) –
- बटबङ पक्षी (इम्पीरियल सेन्डगाउज) के लिए विश्व प्रसिद्ध है, इसे ’रेत का तीतर’ भी कहते हैं।
तालछापर अभयारण्य (चूरू) –
- काले हिरणों व प्रवासी प़क्षी कुरजां की शरणस्थली, इनका एक साथ पाया जाना एकमात्र इसी अभ्यारण्य की विशेषता है।
- मोचिया साइप्रस रोटन्डस – वर्षा के मौसम में उगने वाली एक विशेष प्रकार की नर्म घास।
वनविहार अभ्यारण्य (धौलपुर) –
- आगरा, धौलपुर, मुम्बई राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित है। इसमें सांभर पाये जाते हैं।
जमुवा रामगढ़ अभ्यारण्य (जयपुर) –
- इसमें काला हिरण, स्याहपोश तथा प्रवासी चिङियाएँ पाई जाती हैं।
जंतुआलय
जयपुर जन्तुआलय – 1876 ई. में स्थापित यह जन्तुआलय राजस्थान का सबसे पुराना जन्तुआलय है। यह राजस्थान का सबसे बङा जन्तुआलय भी है। यह मगरमच्छ एवं घङियालों के कृत्रिम प्रजनन केन्द्र के रूप में विख्यात है।
उदयपुर जन्तुआालय – गुलाब बाग में सन् 1878 ई. में स्थापित।
बीकानेर जन्तुआलय – सन् 1922 ई. में स्थापित।
जोधपुर जन्तुआलय – 1936 ई. में स्थापित यह जन्तुआलय दुर्लभ पक्षी गोडावन के कृत्रिम प्रजनन केन्द्र के रूप में विख्यात है।
कोटा जन्तुआलय – 1954 ई. में स्थापित यह जन्तुआलय राजस्थान का सबसे नवीन जंतुआलय है।
उद्यान –
जयनिवास उद्यान, जयपुर – इस उद्यान के मध्य जयपुर के इष्ट देवता गोविन्द देव जी का मन्दिर स्थित है।
जल उद्यान – आमेर महलों के नीचे बने जलाशय ’मावठा’ के मध्य ज्यामितीय पद्धति पर बना उद्यान।
रामनिवास उद्यान – इस उद्यान की स्थापना रामसिंह द्वितीय द्वारा की गई। इस उद्यान में अल्बर्ट म्यूजियम स्थित है।
राम बाग – केसर बङारण का बाग, जयपुर को कहते है।
नाटाणी का बाग – जयपुर में स्थित यह बाग वर्तमान में जय महल पैलेस होटल में परिवर्तित कर दिया गया है।
छत्र विलास उद्यान – कोटा में स्थित है। सन् 1894 में महाराव उम्मेद सिंह ने इस उद्यान में याद घर का निर्माण करवाया था। वर्तमान में छत्र विलास उद्यान को उम्मेद क्लब के नाम से जाना जाता है।
FAQ – राजस्थान में वन्य जीव अभ्यारण्य
राजस्थान में कुल कितने वन्य जीव अभ्यारण है(2024)?
उत्तर – राजस्थान में वर्तमान में कुल 27 वन्य जीव अभ्यारण्य है।
राजस्थान का नवीनतम वन्य जीव अभ्यारण्य कौनसा है?
- राज्य का नवीनतम वन्य जीव अभ्यारण्य सरिस्का ‘अ’ है।
- इसको अभ्यारण्य का दर्जा 20 जून, 2012 को दिया गया।
- राज्य का सबसे छोटा अभ्यारण्य भी सरिस्का ‘अ’ है ।
राजस्थान का सबसे छोटा वन्य जीव अभ्यारण्य कौनसा है?
- राज्य का सबसे छोटा अभ्यारण्य भी सरिस्का ‘अ’ है ।
राजस्थान में कितने जंतुआलय है?
वर्तमान में राजस्थान में पाँच जन्तुआलय है।
- जयपुर जन्तुआलय – 1876 ई.
- उदयपुर जन्तुआालय – 1878 ई.
- बीकानेर जन्तुआलय – 1922 ई
- जोधपुर जन्तुआलय – 1936 ई.
- कोटा जन्तुआलय – 1954 ई.
राजस्थान में राष्ट्रीय उद्यान कितने हैं
राजस्थान में वर्तमान में तीन राष्ट्रीय उद्यान है –
- रणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान,
- केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान
- मुकन्दरा हिल्स राष्ट्रीय उद्यान
राजस्थान का 27 वां वन्य जीव अभ्यारण कौन सा है
- राज्य का 27 वां नवीनतम वन्य जीव अभ्यारण्य सरिस्का ‘अ’ है।
- इसको अभ्यारण्य का दर्जा 20 जून, 2012 को दिया गया।