राजस्थान की प्रमुख छतरियाँ: आज के इस आर्टिकल में हम राजस्थान की छतरियाँ (Rajasthan ki Chhatriyan) टॉपिक को अच्छे से पढेंगे, इससे जुड़े महत्त्वपूर्ण तथ्यों के बारे में भी जानेंगे।
राजस्थान की छतरियाँ – Rajasthan ki Chhatriyan
दोस्तो पूर्वजों की मृत्यु के बाद उनके स्मृति चिह्न बनाने की परम्परा बहुत पुरानी है। राजस्थान का शासक वर्ग, सामंत, जागीरदार और धनिक वर्ग काफी सम्पन्न था अतः उनकी मृत्यु के बाद उनकी याद में स्थापत्य की दृष्टि से विशिष्ट स्मारक बनाये गये, जिन्हें छतरियाँ और देवल के नाम से जाना जाता है।
उदयपुर संभाग की छतरियाँ
आहङ की छतरियाँ/महासतियाँ – आहङ (उदयपुर)
- यहाँ मेवाङ के महाराणाओं की छतरियाँ बनी हैं।
- यहाँ महाराणा अमरसिंह प्रथम की छतरी सर्वाधिक पुरानी है।
- अन्य नाम – महासतियां।
महाराणा प्रताप की छतरी – बाण्डोली (चावंड, उदयपुर)
- महाराणा प्रताप की 8 खम्भों की छतरी चावंड के निकट बांडोली गाँव में केजङ बांध की पाल पर बनी है। इसका निर्माण अमरसिंह प्रथम ने करवाया था।
गफूर बाबा की मजार/छतरी – उदयपुर
- इसका निर्माण शाहजहाँ ने गफूर बाबा के सम्मान में जगमंदिर के समीप करवाया था।
- नटनी का चबूतरा – पिछोला झील (उदयपुर)
संत रैदास की छतरी – चित्तौङगढ़
- चित्तौङगढ़ दुर्ग के बने मीरां मंदिर के सामने मीरां के गुरु रैदास की 4 खम्भों की छतरी बनी है।
जयमल राठौङ की छतरी – चित्तौङगढ़ दुर्ग
- अकबर के चित्तौङ आक्रमण के दौरान किले की रक्षा का भार जयमल राठौङ पर ही था। चित्तौङगढ़ दुर्ग में हनुमानपोल व भैरवपोल के मध्य काल पत्थरों से इनकी 6 खम्भों की छतरी बनी है।
कल्ला राठौङ की छतरी – चित्तौङगढ़ दुर्ग
- लोकदेवता के रूप में पूजे जाने वाले कल्ला जी राठौङ की छतरी भी चित्तौङगढ़ दुर्ग में हनुमानपोल व भैरवपोल के मध्य लाल पत्थरों से 4 खम्भों पर बनी है।
पत्ता सिसोदिया की छतरी – चित्तौङगढ़ दुर्ग
- चित्तौङगढ़ दुर्ग के मुख्य प्रवेश द्वार रामपोल के अंदर चित्तौङ के तीसरे साके में आमेट (राजसमंद) के फतेहसिंह सिसोदिया को अकबर के विरुद्ध युद्ध में पागल हाथी ने सूंड में उठाकर पटक दिया था जिससे उनकी मृत्यु हो गयी थी, यहीं पर रामपोल के पास ही इनकी छतरी बनी है।
शृंगार चंवरी – चित्तौङगढ़ दुर्ग
- मूलतः शांतिनाथ जैन मंदिर में 4 खंभों की छतरी बनी है, जिसमें महाराणा कुम्भा की पुत्री के विवाह की चंवरी बनी है।
- रावत की 8 छतरियाँ – बेगूं (चित्तौङगढ़)
- उङना पृथ्वीराज की छतरी – कुंभलगढ़ दुर्ग (राजसमंद)
- महाराणा रायमल के पुत्र कुंवर पृथ्वीराज की 12 खम्भों की छतरी कुंभलगढ़ दुर्ग में बनी है, इस छतरी के वास्तुकार धणषपना है।
- चेतक की छतरी – वलीचा गाँव (राजसमंद)
कोटा संभाग की छतरियाँ –
- 84 खम्भों की छतरी – देवपुरा गाँव (बूँदी)
- इसका निर्माण राव राजा अनिरुद्ध सिंह के काल में राव देवा द्वारा 1683 ई. से 1695 ई. के मध्य करवाया गया था। यह छतरी तीन मंजिला बनी है मुख्यतः शिव उपासना के लिए निर्मित है। इस छतरी के अन्दर विभिन्न प्रकार के चित्र उकेरे गये हैं जिसमें मुख्य रूप से पशु पक्षियों के चित्र हैं। छतरी पर कामसूत्र ग्रन्थ आधारित चित्र भी बने है।
केसरबाग की छतरियाँ – केसरबाग (बूँदी)
- बूँदी से 4-5 किमी. दूर केसरबाग में बूँदी के शासकों व राजपरिवार की 66 छतरियाँ बनी हैं। जिनमें सबसे प्राचीन छतरी राव दुदा की तथा सबसे नवीन छतरी महाराव राजा विष्णुसिंह की है।
घास फूस की छतरी – बूँदी
क्षारबाग की छतरियाँ – कोटा
- यहाँ कोटा के हाङा शासकों की छतरियाँ हैं।
संत पीपा की छतरी – गागरोन (झालावाङ)
थानेदार नाथुसिंह की छतरी – शाहबाद (बारां)
- 1932 ई. में डाकुओं से मुकाबला करते हुए शहीद हुये थे, इस छतरी का निर्माण कोटा महाराव उम्मेदसिंह ने करवाया था।
भरतपुर संभाग की छतरियाँ –
खाण्डेराव होल्कर की छतरी – गागर सौली (भरतपुर)
अकबरी छतरी – बयाना (भरतपुर)
- बयाना दुर्ग के समीप बनी है। अकबर के शासनकाल में गुजरात विजय के बाद बनाई गई थी।
32 खम्भों की छतरी – रणथम्भौर (सवाई माधोपुर)
- इसका निर्माण हम्मीर देव चौहान ने अपने पिता जैन्नसिंह के 32 वर्षों के शासनकाल की स्मृति में धौलपुर के लाल पत्थरों से 32 खम्भों पर करवाया था। इसे जैत्रसिंह की छतरी/न्याय की छतरी भी कहते हैं। रणथम्भौर किले में बनी होने के कारण इसे रणथम्भौर की छतरी भी कहते हैं। रणथम्भौर किले में बनी होने के कारण इसे रणथम्भौर की छतरी भी कहते हैं।
नटणी की छतरी – सवाईमाधोपुर
कुत्ते की छतरी – रणथम्भौर (सवाई माधोपुर)
- रणथम्भौर अभयारण्य में कुक्कुर घाटी में स्थित है।
एक खम्भे की छतरी – सवाई माधोपुर
राव गोपालसिंह की छतरी – करौली
बोहरा भगत की छतरी – करौली
- कैलादेवी मंदिर के पास बनी है।
जयपुर संभाग की छतरियाँ –
गैटोर की छतरियाँ – जयपुर
- नाहरगढ़ दुर्ग की तलहटी में बना यह जयपुर के शासकों का निजी शमशान घाट है, जिसमें महाराणा सवाई जयसिंह से लेकर महाराजा सवाई माधोसिंह द्वितीय तक के राजाओं और उनके पुत्रों की स्मृति में बनी छतरियाँ है।
सवाई ईश्वरी सिंह की छतरी – जयनिवास उद्यान (जयपुर)
- सिटी पैलेस परिसर में जयनिवास उद्यान में सवाई माधोसिंह प्रथम ने सवाई ईश्वरी सिंह की स्मृति में यह बनवाई थी।
राजा मानसिंह प्रथम की छतरी – हाङीपुरा गाँव (आमेर)।
- आमेर के राजा मानसिंह प्रथम की छतरी है जो आमेर से 2 किमी दूरी पर स्थित हाङीपुरा में बनी है इस छतरी पर बने चित्र जहाँगीरकालीन हैं।
गुसाईंयों की छतरियाँ – मेड गाँव, विराटनगर (जयपुर)
- यहाँ 16 वीं व 18 वीं शताब्दी की बनी 3 छतरियाँ है।
80 खम्भों की छतरी/मूसी महारानी की छतरी – अलवर
- यह अलवर सिटी पैलेस के पास बनी है इसका निर्माण महाराजा विनयसिंह ने 1815 ई. में मूसी महारानी (महाराजा बख्तावर सिंह की रानी) की स्मृति में करवाया था। यह दो मंजिला छतरी है जिसकी पहली मंजिल लाल पत्थर से व दूसरी मंजिल सफेद संगमरमर से बनी है।
- स्मारक की वास्तुकला की भव्यता ।
- लाल बालू पत्थर से बनी हाथी के आकार की संरचनाएँ।
- स्मारक की आंतरिक संरचना में शानदार नक्काशी ।
टहला की छतरियाँ – सरिस्का (अलवर)
- सरिस्का अभयारण्य क्षेत्र में इन छतरियों पर दशावतार का चित्रण किया गया है जिन पर काले और कत्थई वानस्पतिक रंगों का प्रयोग किया गया है। इनमें मिश्रा जी की छतरी/8 खम्भों की छतरी प्रसिद्ध है।
नैङा की छतरी – अलवर
फतेहगुम्बद छतरी – अलवर
बन्जारों की छतरी – लालसोट (दौसा)
- माना जाता है कि यहाँ प्राचीन बौद्ध स्तूप थे, जिनके स्तम्भ बंजारों की छतरियों में लगे हुए हैं।
- छठी शताब्दी में निर्मित है, इसे 6 खम्भों की छतरी भी कहा जाता है।
जेगीदास की छतरी – उदयपुरवाटी (झुंझूनू)
- शेखावाटी शैली के प्राचीनतम भित्ति चित्रों के लिए प्रसिद्ध है इसका चित्रकार देवा नामक एक चित्रकार था।
राव शेखा की छतरी – परशरामपुरा (झुंझुनूं)
रामदत्त गोयनका की छतरी – डुन्डलोद (झुंझुनूं)
- 1888 ई. में निर्मित है।
सेठ रामगोपाल पोद्दार की छतरी – रामगढ़ (सीकर)
- यह शेखावाटी क्षेत्र की सबसे बङी छतरी है।
- चाँदसिंह की छतरी – गनेङी (सीकर)
अजमेर संभाग की छतरियाँ –
- दाहरसेन स्मारक – अजमेर
- नाग पहाङी के मध्य 1997 में अजमेर यूआईटी द्वारा सिंधुपति महाराजा दाहरसेन का स्मारक बनवाया गया है।
आंतेङ की छतरियाँ – अजमेर
- दिगम्बर जैन सम्प्रदाय की छतरियाँ है।
अमरसिंह राठौङ की छतरी – नागौर
- नागौर दुर्ग में अमरसिंह राठौङ की 16 खम्भों की छतरी बनी है।
लाछां गुजरी की छतरी – नागौर
जय्यपा सिंधिया की छतरी – ताऊसर (नागौर)
जगन्नाथ कछवाहा की छतरी – मांडल (भीलवाङा)
- आमेर के जगन्नाथ कछवाहा की समाधि पर राजनगर के सफेद संगमरमर से 32 खंभों की विशाल छतरी बनी है जिसमें एक ही पत्थर से बना 5 फीट का शिवलिंग है यह छतरी हिन्दू और मुस्लिम स्थापत्य का अनूठा उदाहरण है।
गंगाबाई की छतरी – गंगापुर (भीलवाङा)
- महादजी सिंधिया की पत्नी गंगाबाई उदयपुर से आ रही थी तो गंगापुर में उनकी मृत्यु हो गयी थी, उन्हीं की स्मृति में यह छतरी बनी है। इसका निर्माण महादजी सिंधिया ने करवाया था।
राणा सांगा की छतरी – मांडलगढ़ (भीलवाङा)
- मेवाङ के महराणा सांगा की 8 खंभों की छतरी है। इसके निर्माता जगनेर (भरतपुर) के अशोक परमार हैं।
जोधसिंह की छतरी – बदनोर (भीलवाङा)
- 32 खम्भों पर निर्मित है।
अमरगढ़ की छतरियाँ – बागोर (भीलवाङा)
बदनौर की छतरियाँ – भीलवाङा
रसिया की छतरी – टोंक
जोधपुर संभाग की छतरियाँ –
जसवंत थङा – जोधपुर
- इसका निर्माण महाराजा सरदारसिंह ने अपने पिता जसंवतसिंह द्वितीय की स्मृति में 1906 में करवाया था। मेहरानगढ़ किले की तलहटी में एक पहाङी पर बना है।
- इसे राजस्थान का ताजमहल कहा जाता है।
मामा-भांजा की छतरी –
- ये धन्ना गहलोत और भीयां चौहान नामक वीरों की छतरी है, जो आपस में मामा-भान्जा थे। इन्होंने जोधपुर नरेश अजीतसिंह के प्रधानमंत्री एवं अपने स्वामी मुकुंद चंपावत की हत्या का बदला ठाकुर प्रतापसिंह उदावत से लेकर स्वामीभक्ति का परिचय दिया तथा अपना आत्मबलिदान दिया था। उनकी स्मृति में महाराजा अजीतसिंह ने इस 10 खम्भों की छतरी का निर्माण मेहरानगढ़ दुर्ग में लोहापोल के पास करवाया था।
कीरतसिंह सोढ़ा की छतरी –
- जोधपुर दुर्ग के भीतर जयपोल के पास जसोल ठाकुर के प्रधान पुत्र कीरतसिंह सोढ़ा की छतरी का निर्माण राजा मानसिंह ने करवाया था। इसे ’करोङों के कीर्ति धणी की छतरी’ के नाम से भी जाना जाता है।
सेनापति की छतरी –
- जोधपुर में नागौरी गेट के पास स्थित यह छतरी जोधपुर नरेश मानसिंह के सेनापति इन्द्रराज की है।
गोरा-धाय की छतरियाँ –
- जोधपुर के पुराने स्टेडियम के पास दो छतरियाँ बनी है जिनमें से एक 6 स्तम्भ की है व दूसरी 4 स्तम्भों की है जिनका निर्माण अजीतसिंह ने धायमाता गोराधाय की स्मृति में करवाया था।
गोरा-धाय – मण्डोर के मनोहर गोपी गहलोत की धर्मपत्नी गोरा टांक ने अपने पुत्र का बलिदान कर, मेहतरनी का स्वांग कर मारवाङ के बाल महाराजा अजीतसिंह को सन् 1679 ई. में दिल्ली के शाही पहरे से बचाया था। गोरा का जन्म 4 जून, 1646 ई. को हुआ व स्वर्गवास 20 मई 1704 ई. को हुआ। इन्हें ’मारवाङ की पन्नाधाय’ कहा जाता है।
जोधपुर के राजाओं के देवल – मंडोर (जोधपुर)
- मंडोर बाग में स्थित राजाओं के स्मारक देवल के नाम से प्रसिद्ध है, यहाँ पर जसवंत सिंह द्वितीय से पूर्व के शासकों की छतरियाँ बनी हैं। यहाँ सबसे बङी व सबसे सुन्दर छतरी महाराजा अजीत सिंह की है। मंडोर में राजाओं के अलावा भी कुछ छतरियाँ बनी हैं, जो मंडोर की छतरियाँ कहलाती हैं।
- मंडोर में ही पंचकुण्ड नामक स्थान पर राव चूण्डा, राव रणमल, राव जोधा व राव गांगा की छतरियाँ है। इनमें से सबसे प्राचीन छतरी राव गांगा की है।
- राव मालदेव के समय मारवाङ के शासकों की छतरियाँ पंचकुण्ड की बजाय मंडोर में बनने लगी।
इसी स्थान पर बनी अन्य छतरियों में निम्न प्रमुख हैं –
पंचकुंड की छतरियाँ – मंडोर (जोधपुर)
- मंडोर के पास पंचकुड नामक स्थान पर जोधपुर की रानियों की 49 छतरियाँ बनी है जिसमें रानी सूर्य कंवरी की 32 खंभों की छतरी सबसे बङी है। महाराजा मानसिंह की भटियाणी रानी की छतरी भी है।
ब्राह्मण देवता की छतरी –
- मेहरानगढ़ दुर्ग के तांत्रिक अनुष्ठान में जिस ब्राह्मण ने आत्म बलिदान दिया, उसकी छतरी मंडोर के पंचकुड के निकट स्थित है।
कागा की छतरियाँ –
- जोधपुर से 5 किमी. दूर ऋषि काग भुशुंडी की तपोभूमि जहाँ ऋषि के तप से भगवती गंगा प्रकट हुई थी। कागा की छतरियों में जोधपुर नरेश विजयसिंह द्वारा निर्मित शीतला देवी का मंदिर है।
प्रधानमंत्री की छतरी – जोधपुर
- महाराजा जसवंत सिंह की प्राण रक्षा हेतु उनके प्रधानमंत्री राजसिंह कुंपावत ने आत्मबलिदान दिया था, उनकी स्मृति में कागा की छतरियों में यह छतरी बनवाई गई थी। लाल पत्थरों से बनी 18 खम्भों की छतरी है।
दीवान दीपचंद की छतरी – जोधपुर
- यह छतरी कांगा की छतरियों में शीतला माता मंदिर के पास बनी है।
बख्तावर सिंह की छतरी – मंडोर (जोधपुर)
- अलवर के महाराजा बख्तावर सिंह जयपुर के नरेश जगतसिंह के साथ जोधपुर के शासक मानसिंह से युद्ध करने गये थे, जहाँ पर वीरगति को प्राप्त हो गये थे, उन्हीं की याद में मंडोर में यह छतरी बनी है।
नोट – बख्तावर सिंह की एक अन्य छतरी अलवर में भी है।
20 खम्भों की छतरी/सिंधवियों की छतरी – जोधपुर
- जोधपुर शासक भीमसिंह के सेनापति अखैराज सिंधवी की छतरी है।
अहाङा हिंगोला की छतरी – जोधपुर
जैसलमेर की रानी की छतरी – जोधपुर
महामंदिर छतरी – जोधपुर
आसकरण राठौङ की छतरी – सालवा (जोधपुर)
- वीर दुर्गादास राठौङ के पिता आसकरण की छतरी है।
बङा बाग की छतरियाँ – जैसलमेर
- यहाँ जैसलमेर के भाटी शासकों की छतरियाँ हैं। महारावल जैतसिंह ने यहाँ 1528 ई. में जैतसर सरोवर तथा बङा बाग का निर्माण करवाया।
- महारावल जैतसिंह की छतरी भी यहीं बनी है।
पालीवालों की छतरी – जैसलमेर
- मूमल की मेढ़ी – लोद्रवा (जैसलमेर)
- काक नदी के किनारे स्थित है।
राव चन्द्रसेन की छतरी – सारण की पहाङियाँ (पाली)
महाराव मानसिंह की छतरी – अचलगढ़ (सिरोही)
बीकानेर संभाग की छतरियाँ
देवीकुंड सागर छतरियाँ – बीकानेर
- बीकानेर से 5 किमी. दूर देवीकुंड सागर के पास बीकानेर के शासकों का निजी शमशान घाट है यहाँ राव जैतसिंह के समय से राजाओं, रानियों, पासवानों और उनकी संतानों की छतरियाँ बनी है। इनमें से सबसे पुरानी छतरी राव कल्याणमल की है ।
- रायसिंह व सूरसिंह की छतरियाँ लाल पत्थर से बनी है।
- सबसे बङी और सुन्दर छतरियाँ राजा करण सिंह और अनूपसिंह की है। राव बीकाजी व महाराजा रायसिंह की छतरियाँ भी हैं।
- महाराजा गंगासिंह व सार्दुलसिंह की छतरियाँ – बीकानेर
- राव कल्याणमल की छतरी – बीकानेर
- तेस्सितोरी की छतरी – बीकानेर
- साधु गिरिधापति की छतरी – कोलायत (बीकानेर)
- राव जैतसी की छतरी – हनुमानगढ़
निष्कर्ष :
आज के इस आर्टिकल में हमनें राजस्थान की छतरियाँ (Rajasthan ki Chhatriyan) टॉपिक को अच्छे से पढ़ा, इससे जुड़े महत्त्वपूर्ण तथ्यों के बारे में भी जानकारी दी।