रणथम्भौर के चौहान – Ranthambore ke Chouhan | पूरी जानकारी

आज के आर्टिकल में हम रणथम्भौर के चौहान(Ranthambore ke Chouhan) के बारे में विस्तार से जानकारी देने वाले है। रणथम्भौर के चौहान वंश का पूरा निचोड़ दिया गया है, जो आपकी तैयारी के लिए बेहतर साबित होगा।

रणथम्भौर के चौहान – Ranthambore ke Chouhan

  • गोविन्दराज
  • वीर नारायण
  • बागभट्ट
  • जैत्रसिंह (1250-1282 ई.)
  • हम्मीर देव चौहान (1282-1301 ई.)

गोविन्दराज ने 1194 ई. को रणथम्भौर में चौहान वंश की नींव रखी।

गोविन्दराज

  • कुतुबद्दीन ऐबक ने गोविंदराज को रणथम्भौर का राज्य दिया।
  • गोविन्दराज ने 1194 ई. को रणथम्भौर में चौहान वंश की नींव रखी।
  • गोविन्दराज रणथम्भौर के चौहानों का संस्थापक माना जाता है।

वीर नारायण

  • वीर नारायण के समय में दिल्ली के सुल्तान इल्तुतमिश ने रणथम्भौर पर आक्रमण किया। जिसे वीर नारायण ने विफल कर दिया और वह स्वयं इस संघर्ष में लड़ते हुए मारा गया।
  • वीर नारायण दिल्ली के सुल्तान इल्तुतमिश का समकालीन था।

बागभट्ट

  • बागभट्ट बलबन के समकालीन थे।
  • इनके समय में रजिया सुल्तान ने मलिक कुतुबद्दीन व हसन गौरी के नेतृत्व में रणथम्भौर पर आक्रमण किया। तब बागभट्ट ने दिल्ली सल्तनत से अपने राज्य की रक्षा की।

जैत्रसिंह (1250-1282 ई.)

  • बागभट्ट के बाद उसका पुत्र जैत्रसिंह रणथम्भौर का शासक बना।
  • जैत्रसिंह का शासनकाल 1250-1282 ई. तक रहा। इसने लगभग 32 वर्षों तक शासन किया।
  • जैत्रसिंह ने नासिरूद्दीन महमूद द्वारा भेजी गई सेना को रणथम्भौर प्राप्त करने में विफल कर दिया था। लेकिन उसे कर देने के लिए विवश होना पड़ा।

हम्मीर देव चौहान (1282-1301 ई.)

पिता जैत्रसिंह
माता हिरादेवी
पत्नी रंगदेवी
पुत्री देवलदे
गुरु राघवदेव
दरबारी कवि बीजादित्य
उपाधि हठ्ठी हम्मीर
  • हम्मीर देव चौहान जैत्रसिंह का तीसरा पुत्र था। सभी पुत्रों में सर्वाधिक योग्य होने के कारण उसे उत्तराधिकारी बनाया गया। जैत्रसिंह ने अपने जीवनकाल में 1282 ई. में उसका राज्यारोहण कर दिया था।
  • हम्मीर ने शासक बनने के बाद दिग्विजय की नीति अपनाई और अपने साम्राज्य का विस्तार किया। उसने आबू, काठियावाड़, पुष्कर, चम्पा, धार आदि राज्यों को अधीनता स्वीकार करने के लिए बाध्य किया।
  • उसने सर्वप्रथम भीमरस के शासक अर्जुन को परास्त किया। उन्होंने धार के शासक भोज परमार को पराजित किया। इस विजय अभियान में उसने मेवाड़ के शासक समरसिंह को भी पराजित किया था। विजय अभियान के उपलक्ष्य में राजपुरोहित विश्वरूप के नेतृत्व में ’कोटियजन यज्ञ’ सम्पन्न करवाया।
  • जलालुद्दीन खिलजी ने हम्मीर की बढ़ती हुई शक्ति को समाप्त करने के लिए 1290 में झाइन दुर्ग पर आक्रमण और अधिकार कर लिया। झाईन दुर्ग की रक्षा गुरदास सैनी जो चौहान सेना का नेतृत्व कर रहा था, वह मारा गया। दुर्ग पर जलालुद्दीन ने अधिकार कर लिया। झाइन दुर्ग को ’रणथंभौर की कुंजी’ कहा जाता है।
  • झाईन विजय से उत्साहित होकर जलालुद्दीन खिलजी ने 1291-92 ई. में रणथम्भौर दुर्ग पर 2 बार आक्रमण किया। उसने लम्बे समय तक रणथम्भौर दुर्ग पर घेरा डाले रखा, परन्तु वह दुर्ग को जीत पाने में असफल रहा, तब उसने यह कहते हुए घेरा उठा लिया कि – ’’मैं ऐसे कई दुर्ग मुसलमान के सिर के एक बाल के बदले वार दूँ।’’
  • हम्मीर देव चौहान और अलाउद्दीन खिलजी के मध्य संघर्ष का कारण – 1. अलाउद्दीन खिलजी की साम्राज्यवादी नीति, 2. हम्मीर द्वारा मुहम्मद शाह व केहबू्र को शरण देना, 3. अलाउद्दीन की पत्नी चिमना बेगम से प्रेम।
  • अलाउद्दीन खिलजी ने अपने सेनापति उलूग खाँ, नुसरत खाँ और अलप खाँ के नेतृत्व में एक बड़ी सेना भेजी। सेना ने बनास नदी के किनारे पड़ाव डाला। हम्मीर ने अपने सेनापति भीमसिंह व धर्मसिंह के नेतृत्व में सेना भेजी। बनास नदी के किनारे दोनों सेनाओं का युद्ध हुआ और हम्मीर विजयी रहा। विजय के बाद जब हम्मीर की सेना वापिस लौट रही थी, तब धर्मसिंह की टुकड़ी आगे चल रही थी व भीमसिंह की टुकड़ी पीछे चल रही थी।
  • खिलजी की एक सेना अलप खाँ के नेतृत्व में पहाड़ियों में छिपी हुई थी, उस सेना ने भीमसिंह पर आक्रमण किया। हिन्दूवाट घाटी में घमासान युद्ध हुआ और भीमसिंह मारा गया। उलुग खाँ वापस दिल्ली लौट गया।
  • अलाउद्दीन खिलजी ने नुसरत खाँ और उलूग खाँ के नेतृत्व में अपनी सेना रणथम्भौर पर आक्रमण के लिए भेजी। खिलजी की सेना रणथम्भौर जीतने में असफल रही और किले से आने वाले गोले के वार से नुसरत खाँ मारा गया।
  • जब अलाउद्दीन ने एक विशाल सेना लेकर रणथम्भौर दुर्ग पर घेरा डाल दिया। लगभग 1 साल तक घेरा डाले रखने के बावजूद भी अलाद्दीन की सेना को कोई सफलता नहीं मिली। अन्त में अलाउद्दीन ने छल से हम्मीर के सेनापति रणमल व रतिपाल को लालच देकर अपनी तरफ मिला लिया।
  • अमीर खुसरो ने लिखा है कि – ’’दुर्ग में सोने के दो दानों के बदले चावल का एक दाना भी नसीब नहीं हो रहा था।’’
  • लम्बे समय से चल रहे घेरे के कारण रणथम्भौर दुर्ग में खाद्यान्न व गोला बारूद की कमी हो गई थी। 1301 ई. को हम्मीर के नेतृत्व में वीरों ने केसरिया पहनकर अलाउद्दीन की सेना से घमासान युद्ध किया। हम्मीर लड़ता हुआ वीरगति को प्राप्त हो गया।
  • हम्मीर की रानी रंगदेवी और उसकी पुत्री देवलदे ने पद्मला़ तालाब में कुदकर जल जौहर किया। यह राजस्थान का प्रथम साका माना जाता है।
  • इस युद्ध में अलाउद्दीन खिलजी विजयी हुआ। 11 जुलाई, 1301 ई. में रणथम्भौर पर अलाउद्दीन का अधिकार हो गया।
  • अमीर खुसरो ने कहा – ’’आज कुफ्र का गढ़ इस्लाम का घर हो गया है।’’
  • हम्मीरदेव ने अपने पिता की याद में रणथम्भौर दुर्ग में 32 खंभों की छतरी बनाई, जिसे ’न्याय की छतरी’ कहते है।
  • हम्मीर ने अपने जीवन में 17 युद्ध किये, जिनमें से 16 में विजयी रहा।
  • हम्मीर के दरबार में ’बीजादित्य’ नामक कवि था।

निष्कर्ष :

आज के आर्टिकल में हमनें रणथम्भौर के चौहान(Ranthambore ke Chouhan) विस्तार से पढ़ा। हमनें पुरे टॉपिक को अच्छे से कवर किया, हम आशा करतें है कि आप हमारे प्रयास से संतुष्ट होंगे …..धन्यवाद

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