राजस्थान की मिट्टियाँ – प्रकार, विशेषताएँ | Top Notes | मृदा का वर्गीकरण

राजस्थान की मिट्टियाँ: राज्य कृषि आयोग के अनुसार राजस्थान में मृदा को 14 भागों में बाँटा है। अमेरिका के वैज्ञानिकों ने वैज्ञानिक वर्गीकरण/नवीन वर्गीकरण के आधार पर राजस्थान की मिट्टियों को 5 भागों में बाँटा है।

राजस्थान की मिट्टियाँ – Rajasthan ki Mittiyan

राजस्थान में मिट्टियों का भौगोलिक वर्गीकरण में प्रमुख मरूस्थलीय रेतीली मिट्टी/बलुई मिट्टी,भूरी मिट्टी,लाल-पीली मिट्टी,जलोढ़ मिट्टी/कछारी मिट्टी, काली मिट्टी/रेगुर मिट्टी, लवणीय मिट्टी,लाल-लोमी मिट्टी/लेटेराईट मिट्टी और पर्वतीय मिट्टी पाई जाती है।

  • भू-पृष्ठ पर मिलने वाले असंगठित पदार्थों की वह ऊपरी परत जो मूल चट्टानों अथवा वनस्पति के योग से बनती है, वह ’मिट्टी’ कहलाती है।
  • मिट्टी वनस्पति के विकास के लिए उसे जीवांश या खनिजांश प्रदान करती है।
  • मृदा शब्द लैटिन भाषा के ’सोलम’ शब्द से बना है, जिसका अर्थ होता है – ’फर्श’
  • मृदा का अध्ययन जिस शाखा में किया जाता है, उसे ’पेडोलाॅजी’ कहते है।
  • मृदा के प्रधान पोषक तत्त्व नाइट्रोजन, कैल्शियम, फाॅस्फोरस और पोटेशियम है।
  • भारत सरकार की सहायता से राजस्थान में प्रथम मिट्टी परीक्षण प्रयोगशाला की स्थापना जोधपुर में वर्ष 1958 में की गई।
  • विश्व मृदा दिवस 5 दिसम्बर को मनाया जाता है।

मृदा निर्माण के कारक –

मृदा निर्माण के मुख्यतः 5 कारक होते है।

  1. जैविक पदार्थ
  2. स्थानीय जलवायु
  3. चट्टान
  4. ऊँचाई और उच्चावच अर्थात् स्थलाकृति
  5. मिट्टी के विकास की अवधि

सेम की समस्या से प्रभावित क्षेत्र

1. इंदिरा गांधी नहर सिंचाई क्षेत्र 

  • राजस्थान में हनुमानगढ़ जिले का बड़ोप्पल सेम प्रभावित क्षेत्र है।

2. चंबल सिंचाई क्षेत्र

सेम की समस्या को दूर करने के उपाय –

1. इंदिरा गांधी नहर सिंचाई क्षेत्र में सेम की समस्या को दूर करने के लिए इण्डोडच जल निकासी परियोजना हॉलैण्ड (नीदरलैण्ड) के सहयोग से 2003 से चल रही है। इस योजना के तहत् यूकोलिप्टिस नामक पेड़ दलदल को रोकने के लिए लगाए जा रहे है।

2. चम्बल सिंचाई क्षेत्र में सेम की समस्या को दूर करने के लिए कनाडा के सहयोग से ’राजाद परियोजना’ चलाई जा रही है।

  • मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना की शुरुआत 19 फरवरी, 2015 को की गई।
  • सूरतगढ़ में मिट्टी की खराब होती गुणवता को जाँच करने हेतु योजना प्रारम्भ की गई थी।
  • इस योजना में केन्द्र सरकार 75 प्रतिशत राशि तथा राज्य सरकार 25 प्रतिशत राशि वहन करती है।
  • राजस्थान में भूमि उपयोग पश्चिम से पूर्व की ओर बढ़ता है।
  • राजस्थान में मिट्टी की उत्पादन क्षमता पश्चिम से पूर्व की ओर बढ़ती है।
  • राजस्थान में मिट्टी के कणों का आकार पश्चिम से पूर्व की ओर घटता है।

मिट्टी में लवणीयता या क्षारीयता की समस्या

  • मिट्टी में खारेपन की समस्या को ही लवणीयता या क्षारीयता की समस्या कहते है। मिट्टी के ऊपर सफेद लवणीय बालू जम जाती है, जिसको ’रेह’ कहा जाता है। जालौर, बाड़मेर एवं पाली के पश्चिमी क्षेत्र में क्षारीय मिट्टी को ’नेहड़ या नेड़’ कहा जाता है।
  • सिंचाई के दौरान उपयोग में लिए जाने वाले जल में लवण तथा सोडियम कार्बोनेट की मात्रा अधिक होती है तो मिट्टी क्षारीय हो जाती है। इसे साधारण बोलचाल की भाषा में ’भूरा ऊसर’ कहते है।
  • शुद्ध मिट्टी का PH मान 7 होता है।
  • 7 से अधिक PH मान वाली मिट्टी को ’क्षारीय मिट्टी’ कहते है।
  • मिट्टी की क्षारीयता की समस्या को कम करने के लिए जिप्सम का प्रयोग किया जाता है। मिट्टी की क्षारीयता की समस्या दूर करने हेतु ग्वार व ढेंचे की फसल को काटकर खेत में दबा देते है।
  • 7 से कम PH मान वाली मिट्टी को अम्लीय मिट्टी कहा जाता है।
  • मिट्टी की अम्लीयता को कम करने के लिए चूने का प्रयोग किया जाता है। इसके अतिरिक्त धमासा व सुबबूल आदि खरपतवार को मिट्टी में मिलाने से भी यह समस्या कम हो सकती है।

लवणीयता और क्षारीयता के प्रमुख कारण

राज्य में मिट्टी में लवणीयता और क्षारीयता के प्रमुख कारण निम्न है –

  • पानी का सवाधिक जमाव होने से लवण का ऊपर आ जाना।
  • अधिक सिंचाई से भूमि के नीचे के लवणों का सतह पर आ जाना।
  • पानी के सर्वाधिक समय तक ठहराव के कारण।
  • कूओं का पानी खारा होने से सतह पर नकम की परत जमना।
  • मिट्टी में मौजूद लवणों का सतह पर जम जाना।

मृदा अपरदन के मुख्य कारण

  • जनसंख्या वृद्धि
  • झूमिंग कृषि प्रणाली के अन्तर्गत वनों को काटकर कृषि योग्य क्षेत्र बनाना
  • अनियंत्रित पशुचारण
  • अवैज्ञानिक ढंग से कृषि करना
  • सर्वाधिक तेज गति से हवाओं का आना

मृदा संरक्षण के उपाय

  • सर्वाधिक वृक्षारोपण करना।
  • पशुओं की अनियंत्रित चराई पर नियंत्रित करना।
  • फसलों को बदलकर बौना।
  • शुष्क प्रदेशों में वृक्ष कतार या रक्षक मेखलाए बनाना।
  • पहाड़ी क्षेत्रों पर कृषि के लिए समोच्य पद्धति का उपयोग करना।

राजस्थान की मिट्टियों का वर्गीकरण

राजस्थान की मिट्टियाँ(Rajasthan ki Mittiyan)

(1) मिट्टियों का वैज्ञानिक वर्गीकरण –

अमेरिका के वैज्ञानिकों ने वैज्ञानिक वर्गीकरण/नवीन वर्गीकरण के आधार पर राजस्थान की मिट्टियों को पाँच भागों में बाँटा है।

(2) मिट्टियों का भौगोलिक वर्गीकरण

(3) कृषि विभाग के अनुसार मृदा का वर्गीकरण

राज्य कृषि आयोग के अनुसार राजस्थान में मृदा को 14 भागों में बाँटा गया है, इसमें प्रमुख मिट्टियाँ इस प्रकार है –

मृदा का प्रकार जिले में विस्तार
कैल्सी ब्राउन मरुस्थली मृदा जैसलमेर एवं बीकानेर
जिप्सीफेरस बीकानेर
रेवेरिना गंगानगर
सिरोजम गंगानगर
नवीन जलोढ़ मृदा अलवर, भरतपुर, सवाई माधोपुर, जयपुर, डीग, खैरथल, दौसा
पीली-भूरी मृदा जयपुर, टोंक, सवाईमाधोपुर, गंगापुर सिटी, भीलवाड़ा, शाहपुरा, चित्तौड़गढ़, उदयपुर
लाल-लोमी डूँगरपुर एवं बाँसवाड़ा

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